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कार्तिक, वीर निर्वाण सं० २४६५]
चाणक्य और उसका धर्म
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नरक का अतिथि न बने, इस विचारको लेकर दुष्कालकी वजह से वहाँ पर जब साधुओं को चणीने पीड़ा का खयाल न करते हुए लड़के के भिक्षा दुर्लभ होने लगी-निर्वाह न होसका-तब दाँतों को रगड़ दिया और यह समाचार भी उसने आचार्य महागजने अपने शिष्य समुदायको वहाँ साधुओंको कह सुनाया। इस पर वे बोले-दाँतों से सुभिक्ष वाले देशमें भेज दिया और आप वहीं के रगड़ देनेस अब यह बानाक चिम्पान्तरित पर रहे । उनमें से दो क्षुल्लक साधु गुरुभक्तिवशात गाजा होगा। अर्थात् दुसरेको राज्यगद्दी पर बैठा वापिस लौट आये और गुरु संवाग रहते रहे। कर राज्य-ऋद्धि भागेगा । चणी ने उस बालकका इनको भी जब भिक्षा दुर्लभ हो गई और गुरुभक्ति नाम 'चाणक्य' ग्कावा । चाणक्य' भी विद्या में बाधा पड़ने लगी, तब ये दिव्यांजनके प्रयोग समुद्रका पारगामी श्रावक हुआ और वह श्रमणो- द्वारा अदृश्य करकं सम्राट चन्द्रगुप्तकी भोजन पामक हानके कारण बड़ा मन्तोषी था । एक थाली से आहार लेाते थे और गुरु-भक्ति करते कुलीन ब्रह्मगग की कन्याक साथ उमका विवाह थे। इमप्रकार कुछ दिन व्यतीत होगए । एक हुआ था" *
दिन चाणक्यने चन्द्रगुप्तको दुबला देखकर सोचा चाणक्यने नंदवंशका नाश क्या किया ? कि क्या कारण है जिससे चन्द्रगुप्त दुबला होता कैम किया ? किन पायांस चन्द्रगुप्तको राजा जाता है । माथही यह भी सोचा इनकी थाली में बनाकर मगधकं माम्राज्यको विस्तृत बनाया ? में रोज आहारका लोप होजाता है, उसका भी और किन-किन तरीकांस माम्राज्यका शासन
क्या कारगा है ? अन्तको उन्होंने अपनी तरकीब सूत्र संचालित किया ? इन सब बातोंका भी में जान लिया कि यहाँ दी शुल्लक जैन साधु माते अच्छा वर्णन श्री हेमचन्द्राचार्यन अपने उक्त परि- हैं. और वे थाना में से भोजन ले जान है । उस शिष्ट पर्व में किया है। उमी ममय बारह वष का मगय जैनधर्मक, प्रनि भक्ति हानक कारण एक बड़ा भाग अकाल भी पड़ा था। अकालम चाणक्य उनका बचाव करते हुए चन्द्रगुप्त में प्रजाको हीखानके लिए अच्छा नाह नहीं मिलता. कहतह:तब माधुओं की भी भिक्षाम कठिनताका हान। स्वा- "हो. ये ना आप के पितृगगा है। आपके भाविक है। इस प्रसंगका वर्णन करते हुए मूरि. ऊपर इनकी यही कृपा है, जो ये ऋषिवंश धारगण जी महाराज लिम्बते हैं:
कर आपकं पाम पाते हैं, ऐमा कह चाणक्यने उन __ "इधर जब वह बारह वर्षका दुभिक्ष पड़ने माधुओं को वहां से विदा किया।" लगा तब सम्थित नामक एक आचार्य अपने शिष्य याद में चाणक्य प्राचार्य महाराज पाम परिवार के माथ चन्द्रगुप्रक नगग्ग रहने थे। प्राकर उन क्षुल्लक माधुओंके अन्यायको प्रगट
• मूल श्लोक इस लेखक परिशिष्टमे १ दिये हैं। वहीं करना हुश्रा प्राचार्यको उपालम्भ देने लगा। मष देखो इलोकन १९४ मे २०१तक।
वाना सुनकर प्राचार्य महाराज ने प्रत्युत्तर दिया: