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________________ अनेकान्त [वर्ष २, किरण १ विस्तार के भय से मैं यहाँ उसका उल्लेख नहीं की सुबन्धुने उपलोंके ढेरमें आग लगाकर जला करूँगा। ऐमाही उल्लेख तथा विवेचन नन्दिसूत्र दिया। जलता हुआ चाणक्य (समभाव होने से) और उसकी टीकामं और उत्तराध्यन सूत्रकी उत्तमार्थको प्राप्त हुआ। टीका भी पाया जाताहै । सुज्ञ वाचक वहाँम (४) मरणसमाहि ग्रंथग पृ० १२९ पर लिखा देख सकते हैं। (३) पयण्णासंग्रहके अन्तर्गत 'संथारापयण्णा' गब्बर पाओ वगो सुबुद्धिना णिऽघिणेण चाणको । में, जो कि जैनधर्मक महान उपासकोंकी ममाधि दड्ढोणय संचलिमो साहुधिई चितणिज्जाउ ॥४७८॥ पूर्वक मृत्युक उल्लेखोंको लिये हुए है, तीन गाथाएँ अर्थात-चाणक्य उपलोंके ढेर पर प्रायोप निम्न प्रकारसं पाई जाती हैं, जिनसे मंत्रीश्वर गमन संन्यास ( अनशन ) लेकर बैठा हुआथा चाणक्यका परमहितीपासक जैन होना स्पष्ट है-- उम निर्दयी सुबुद्धि (सुबन्धु ) ने आग लगाकर पाटलिपुत्तम पुरे, चाणको णाम विस्सुओ आसी। ___ जला दिया । जलता हुआभी चाणक्य अपने व्रतसे सम्बारंभणिअत्तो, इगिठीमरणं अह णिवणणो ॥७॥ चलायमान न हुआ। उसने समभाव नहीं छोड़ा। भणुलोमपूभणाए, अह से सत्तू जमो डहर देह । सो तहवी डज्झमाणो, पडिवण्णो उत्तम अटुं ॥७४।। ऐसी धीरता जीवन में उतारनी चाहिये । गुट्ठयपाभोवगओ, सुबंधुणा गोबरे पलिवियम्मि । (५) तेरहवीं शताब्दी के महाविद्वान और डभतो चागको, पडिवण्णो उत्तम अटुं ॥५॥ प्रसिद्ध इतिहासकगर श्रीहेमचन्दाचार्यजी अपने इनमें बतलाया है कि :-पाटलीपुत्र नगरमें 'परिशिष्टपर्व' के आठवें सर्गमें चाणक्यका परिचाणक्य नामका प्रसिद्ध (विश्रुत) विद्वान (मंत्री) चय इस प्रकार देते हैं:हुआ। जिसनेमब मावद्यकर्मका त्याग करके जैनधर्म __ "इधर गोल्लदेश में एक चणक' नामका गाँव सम्मत इङ्गिणी मरण का साधन किया। अनुकूल था, उस गाँव ग चणी नामका एक ब्राह्मण रहता पूजा पहान सं उसके शत्रु ( सुबन्धु ) ने उसका था और चणेश्वरी नामकी उसकी पत्नी थी, चणी शरीर जलाया । शरीरके जलते हुएभी चाणक्यनं उत्तमार्थका-अपने अभिमत समाधिमरणको-. और चणेश्वरी दोनों ही जन्मसे श्रावक (जैनी) थे। - एक समय जबकि अतिशय ज्ञानवान् जैन मुनि प्राप्त किया। (समभाव होनेस) गांबाडामं प्रायोप उनके घर पर आकर ठहरे हुएथे, 'चणेश्वरी' गमन संन्यास (अनशन) लेकर बैठे हुए चाणक्य ने एक दांतों-सहित पुत्रको जन्म दिया । उस * गाथा नं०७३ को मौजूदगोमें इस गाथा की स्थिति कुछ बालक को लेकर चणी साधु याक पास आया संदिग्ध जान पड़ती है; क्योकि इसमें उत्तमार्थ प्राप्तिको उसी और उस बालकम साधुओं को नमस्कार कराकर पातको व्यर्थ दोहराया गया है। हो सकता है कि न. ७४ की उसके दन्त-सहित पैदा होनका हाल कह सुनाया। गाथा प्रक्षिप्तहो। यह गाथा दिगम्बरीय प्राचीन ग्रन्थ 'भगवती ज्ञानी मुनि बोले-भविष्य में यह लड़का राजा भाराधना' में 'गट्ठय' की जगह 'गो?' पाठभेदके साथ ज्यों की स्यों पाई जाती है। -सम्पादक होगा । राज्य जनित प्रारम्भसं मेरा पुत्र
SR No.538002
Book TitleAnekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1938
Total Pages759
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size105 MB
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