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________________ समाज पौष, वीर नि०सं० २४५६] हमारी शिक्षा जैनसमाजकी शिक्षाकी अन्य का कोई उल्लेखनीय स्थान नहीं है । हम अपनी शिक्षा-संबंधी इस स्थिति पर सम्भव समाजोंकी शिक्षासे तुलना है सहसा कुछ हर्ष प्रकट करने लग जायँ । किन्तु जैनममाजकी शिक्षाकी भारतकी अन्य समाजों वास्तवमें हर्ष या गर्व की कोई बात नहीं है । कारण ? की शिक्षासे तुलना करके दिखाना भी लाभदायक हम जैन समाजमें उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों का प्रायः होगा। अतः नीचे उसके अंक दिये जाते हैं। अभाव ही पाते हैं । उच्चकोटिके शिक्षित तो उसमें कहीं पीरात शिक्षित बिरले ही मिलेंगे। इस अधिक संख्याका कारण केवल जैन समाजका व्यापारी-धनी होना और धर्मके वास्ते ___ कुल पुरुष । स्त्री कुछ पूजा पाठादि पढ़ना है। इसके अतिरिक्त उसमें ममस्त नारत ७.०५१ । १२.३ । १.८०३ अन्य धर्मावलम्बियोंके ममान पिछड़ी हुई जातियाँ (Backward communities ) भी कम हैं । इनमें हिन्दू ६.४३९ ११.५१ १.३६८ अधिक संख्या उन्हीं शिक्षितोंकी है जिनको यातो बहीआर्य १८.५६३ २९.०५ ८.०७६ खाता आता है या नामादि लिखना आता है । हमारे ब्रह्मा ७८.६८ ६९.३४ ८८.०२ अपने विचारमें यह कोई संतोपजनक हालत नहीं है। ५.३८८ ९.३९७ १.३८ शिक्षामें हमारी उन्नति २९.०१९ ४८.४२ ९.६१८ बराबरकी इस छं.टी शिक्षित प्रतिशत जैन २९.६३५ ५१.६२ ७.६४८ । सी तालिकासे हमारी मुसलमान ४.४८२ पुरुप ' स्त्री शिक्षामें कीहुई उस उन्न- सन् ८.११७ .७५ तिका पता लग जायगा ईमाई २८.५ । ३८.९५ १८.०५ जो हमने सन १९०१ | १९०१ ४६.८६ १.७८४ पारमी ७३.०५ । ७८.९१ ६७.१९ से १९२१ तक की है । । १९११ | ४९.५ ३.९९ अर्थात गत बीम वर्षों १९२१ ५१.६२ ७.३४९ इस कोष्टक को देखनेसे मालूम होगा कि शिक्षामें में की है । सन् १९०१ सर्व प्रथम ब्रह्मो, द्वितीय पारसी, तीसरे जैन, चौथे में पुरुप ४६.८६ प्रतिशत शिक्षित थे जो मन् १९११ में बौद्ध और मुसलमान सबसे पीछे हैं । यह तो सामूहिक ४९.५ और १९२१ में ५१.६२ प्रतिशत हो गये । त्रियाँ (Collective ) विवरण हुआ । पुरुषोंकी शिक्षामें सन १९०१ में १.७८४ प्रति शत शिक्षिता थीं, वे सन् पारसी सबसे आगे और मुसलमान सबसे पीछे हैं। १९११ में ३.९९ प्रति शत हो गई और सन् १९२१ में और जैनियों का नम्बर तीसरा है । स्त्रीशिक्षामें ब्रह्मो ७.६४९ प्रति शत होगई। पुरुपोंकी अपेक्षा त्रियों में सबसे आगे और मुसलमान सबसे पीछेहैं और जैनियों उन्नति का क्रम-वेग अधिक है। किन्तु जब हम इस मिख बौद्ध
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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