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आश्विन, कार्तिक, वीरनिःसं०२४५६] अनेकान्त पर लोकमत ८५६० लक्ष्मीनागयण कचतुर्वेदी, हेडमास्टर पकी और अनेकान्त' की चिराय की भावना करता . 'श्रीगोदावन जैनस्कूल'. छोटी सादडी-- हा जैनधर्मावलम्बियोंमे इसको जीवित रखने तथा " आपके 'अनेकान्न' के कुष्ट अङ्क अवलोकन
, फन फलने देने की जोरदार अपील करता हूँ ताकि
- जैनधर्म के मचे और स्वाभाविक सिद्धान्तोका प्रचार करने का सौभाग्य प्राप्रहा । यह पत्र अपने ढङ्गका
तथा स्वपर कल्याण हो।" एक ही है। सभी लोग्ब गयेपणापर्ण और पठनीय रहते
८. श्री मूलचन्द्र नी जैन वैधशासी, एम.पी. हैं। ऐसा पत्र जैन जनना ही के लिये नहीं अपितु सब
प..कुचामन - भारतीयोंके लिये आवश्यक था । मचगु व यह त्रुटि
__ श्रापक 'अनकान्त' की ५ किरणें मैंने देखी। ग्वटकती थी। आपने इम प्रभावकी पनि कर नी श्रा
इसके मभी लेम्व और कविताएँ मारपर्ण एवं हृदयदर्श कार्य किगा इसके लिय श्राप धन्यवाद के पात्र हैं।
पशिनी होती है। आपके इम 'अनेकान्न'मर्यका ठीक प्रत्यक पठित व्यक्तिको इमका ग्राहक बन अपनी ज्ञान
रम ममय उदय हाजिब कि उसके उज्यकी - वृद्धि कर पापणा उत्माद बढ़ाना उचित है।"
त्यन्त आवश्यकता भी । मेंहदय चाहता हूँ कि इम ८३ ६० पचन्दनी काशन', मिवनी- के विशा. और विश्वव्यापी प्रकाशमें जैनों अगाथ
नंकान' यथा नाम नथा गगा निकला। माहित्य और दशनका प्रचार हो कर वह विश्वके प्राजनहिनैप:' के न होने पश्चात कोई पत्र न रहा, णियोको पथ-प्रदर्शक बने । ना जैनधर्मकी महानागा बाज न पणापूर्ण लग्यो
जैनियोंमें यद्यपि पत्रोंकी कमी नहीं, किन्तु माहिद्वारा प्रकाश माना । किसी भी जातिका माहित्य र.
लिक पत्रका प्रभाव बहन गर्मम खटक रहा था। अनेसका जीवन है । माहित्य की भोर निद्वानांकी अभिमान
कान्त', श्रापक महान व्यक्तित्वममम्बद्ध होने कारगा,
अवश्य ही उस अभावकी पनि करंगा जिमने जैनोंके नविषयक पत्र-पत्रिकायों द्वारा महजही पत्र की जा सकती है । 'अनकान्त' रूपी श्रमोदय एकान्ना
अलभ्य माहित्यको प्रचारमें आनम गक ग्वया है।" न्धकारको विनष्ट कर मंमार के सन्मय जैनधर्म गौरव ८५ डाक्टर टी.टी.वान, म.पनवाडी (पेलगाम'-- को स्थापन करेगामी श्राशा मी आज नककी
I losed all the insides of your किरणें दम्ब कर होनी है।
oblemman अमंकाम्स, Andam very
murthple turn to congratulate you There. श्राप जैसे विद्वान अनुभवी तथा मननशीन लकि
in bridentury of pare and happi क सम्पादकत्व में इस पत्रका जन्म जैगिंगारा वही
184 1|| Outlumble magazine मेकाम्स शाना, ना अपने अनाकागादिन नया 4th hotbhar duty of every jain to लाय माहित्यको प्रकाश दंग्यने के लिये प्रयत्न ulth. अनेकाn in each and every उत्सुक है । मामाजिक मी-छा-लेदर और त त में में में Dirt of the world Long live अनेकान!" यह पत्र वच कर जैसमाहिन्यकी सुगंवा कर उम मैन आपकं उत्तम पत्र 'अनेकान्न' के सपअंक सरस्वती भंडारकर श्रीवद्धि करेगा ऐमी मेग मनी भा. पढ़े हैं और मुझे आपको धन्यवाद देते हुए पड़ी वना है । आज नक प्रकाशित लम्ब योज पूर्ण, गंभीर प्रमनना होनी है। आपके बहुमूल्य पत्र 'अनेकान' में तथा प्रषणायक्त ही नहीं वग्न जेनंतर विद्वानों के लिए सुम्ब और शान्तिका बजाना गुम है । प्रत्येक जैनका
वस्तु नथा जैनधर्म माहित्यामनका पान करनेकी यह नम कर्तव्य है कि यह 'अनंकाम' को संसार सुइच्छा उत्पन्न करने वाले प्रतीत होते हैं। अन्नमें श्रा- में मवत्र फैलाए । 'बर्मकान्त' चिरजीवित हो।'