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एकान्तेऽघटमानत्वाद् वस्तुतत्त्वस्य सर्वथा । अनेकान्तस्ततः कान्तः स्वीकार्यः कान्तमिच्छता ॥
-'अनेकान्ती'।
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समन्तभद्राश्रम, करौलबारा, देहली। पौष, संवत १९८६ वि०, वीरनिर्वाण मं० २४५६ mmmmmmmmmmmmmmmise
* अनकान्त-माहात्म्य * जण विणा लोगम्स वि वयहारो सव्वहा ण णिवा।। तस्स भवनकगुरुणो णमो अणेगंतवायस्म ॥
-सिद्धसनाचार्य 'जिमकं बिना-जिमकी शिक्षा प्रभावमें-लोकका भी व्यवहार बन नहीं सकता-भले प्रकार चल नहीं सकता-उस भुवनेकगुरु-१ लोकके अमाधारण गुरु-अनकान्तवादको नमस्कार हा ।
परमागमस्य बीज निषिद्ध जात्यन्ध-सिन्धर-विधानम्। सकलनयविलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ।।
-अमृतचंद्र मुरि 'जो परमागमका बीज है-जैनागमका प्राण है-, जिमने जन्मान्ध-४ पुरुषोंके हस्तिविधानका-एकान्तवादिदर्शनोंकी मिथ्याधारणारूप विवान, का-निषेध कर दिया है-हाथी ( अनेकान्तात्मक पदार्थ) के एक एक" अंगको ही टटोल कर उसीको समूचा हाथी (पदार्थ) प्रतिपादन करने म्प!
उनके भ्रमका संशोधन और समाधान कर दिया है और जो संपूर्ण :नयोंसे विभूषित-उनकी विवक्षा-उपेक्षाको लिये हुए-पदार्थोके-प्रति• पाच विषयोंके-विरोधको दूर करने वाला है, उम 'अनकान्त' को मैं, नमस्कार करता हूँ।'
'जीव' इत्यपि पाठः । (rennunarMUNNnnnn
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