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" (मंत्री)
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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ११, १२ देहलीमें स्थिर रक्खा जा सके,देशकी वर्तमान अशान्त पुनः स्थानपरिवर्तन किया जा सकेगा। परिस्थिति तथा व्यापारादिकके मंदेने भी लोगोंकी प्रस्तावक-राय ब० साहू जगमन्दरदासजी, चित्तवृत्तिको ऐसे कामोंकी तरफसे हटा रक्खा है और
नजीबाबाद (कोषाध्यक्ष) 'अनेकान्त' पत्रके प्रकाशनका जो महत्वपूर्ण कार्य इस अनुमोदक-साहू श्रेयांसप्रसादजी, नजीबाबाद समय आश्रमकी तरफसे हो रहा है वह दूसरे कम समर्थक १ बा भोलानाथजी मुख्तार,बुलन्दशहर खर्चके स्थान पर रहकर भी किया जा सकता है। तब
२ ला०पन्नालालजी,देहली (सहायक मंत्री) समाजकी इस असहयोगदशामें पाश्रमको देहली जैसी खर्चीली जगहमें रखना मुनासिब मालूम नहीं होता। इस प्रस्तावके अनुसार अब आश्रम अपनी उस और इस लिए यह उचित जान कर तजवीज किया
जान कर तजवाज किया जन्मभूमिको जा रहा है जहाँ पर उसके विचारोंका जाता है कि फिलहाल आश्रमका स्थान-परिर्वतन सर- जन्म हा था और उसकी स्कीम तय्यार की गई थी। सावा जि०सहारनपुरमें कर दिया जाय, जहाँ कि अधि- नवम्बरके तीसरे या चौथे सप्ताहमें यह वहाँ जरूर धाता पाश्रमके पास घरके काफी मकान है और दूसरे पहुँच जायगा । अतः नवम्बरके बादसे आश्रम-सम्बंधी भी कितने ही खर्च वहाँ कम हो जायेंगे। बादको देशमें संपर्ण पत्रव्यवहार करौल बारा-देहली की जगह शान्ति स्थापित होने पर जहाँ कहीं इस आश्रमकी सरसावा जि. महारनपुर के पते से किया जाना अधिक उपयोगिता जान पड़ेगी और जहाँ जनताके चाहिये । सहयोगका यथेष्ट आश्वासन मिलेगा वहाँ पर इसका
अधिष्ठाना 'ममन्तभद्राश्रम
शरद सहाई है [लेखक-श्री पं० मुन्नालाल जी 'मणि' ] स्वच्छ वस्त्र पहिरें पै, हृदय न स्वच्छ धरै
वेष-भूषा माहिं भी, विदेशताई छाई है। करत बराई एक, दूसरे की भाई भाई
लड़त लड़ाई सर्व, आर्यता विहाई है। पर-प्रभुताई देख, नेक न सुहात जिन्हें ___ हीनताई देख चित्त अति हर्षाई है। ऐसी कीचताई अरु, छाई गरदाई जब .
कहो मित्र ! कैसे तब, शरद सुहाई है। naai
aanaas malas