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________________ ६२८ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ११, १२ यही छोड़कर भला वह क्यों कलिंग जाता ? अतः साथ ही गिना जाता था । कराँची आज सिन्धुदेशका थेरावलीका इस सम्बन्धका कथन विश्वास करने मुख्य नगर है। किन्तु ७वीं शताब्दिमें वह कच्छ में योग्य नहीं कहा जा सकता। गिना जाता था । अतः इस विषयमें कोई शङ्का करना (४) चौथी दलीलके उत्तरका समावेश मुनिजीने फिजूल है । तीसरी आलोचना में किया है। अतः हमारे उपर्युक्त 'उत्तरपुराण' मूलमें कौशाम्बीके राजाका नाम उत्तरमें ही उसका उत्तर गर्मित है। 'शतानीक' ही है । मालम होता है, मुनिजी ने उक्त (५) पाँचवीं पालोचनामें मुनिजी 'उत्तरपुराण'को पुराण देखन की तकलीफ नहीं उठाई है और उसको प्रामाणिक इतिहास प्रन्थ नहीं मानते और इसलिये बिना देखे ही अप्रामाणिक ग्रंथघोषित कर दिया है। उस में शोभनराजका नाम न मिलना कुछ भी आपत्ति- शायद मुनिजी इस क्रियाको अनुत्तर-दायित्व पूर्ण और जनक नहीं समझते । यदि उत्तरपुराणकी अधिकांश बेजा नहीं समझते हैं । खैर, कुछ हो; हम पाठकों को बातोंको आप सप्रमाण मिध्या सिद्ध कर देते तो बताये देते हैं कि उत्तरपुराण भी कौशाम्बीके राजाको भापका यह कथन कोई मान्य भी करता ! किन्तु मात्र 'शतानीक' ही बताता है । हमने जिस समय 'भग आपके कहनेमे कमसे कम मैं तो उसे अप्रामाणिक ग्रंथ वान महावीर" लिखा था उस समय कवि खुशालचंदमाननके लिए तैयार नहीं हूं। मुझे तो उसकी खास कृत उत्तरपगणका हिन्दी अनुवाद ही हमने देख। खास बातें इतिहासकी दृष्टिस तथ्यपूर्ण प्रतीत हुई हैं। था । उसमें “सार" नाम संभवतः छन्द की पूर्तिके मुनिजी उसके उदायनको कच्छ देशका राजा बतानं लिये लिख दिया गया होगा। इस अवस्थामें जब कि पर आपत्ति करते हैं; किन्तु इसमें आपत्ति करने को एक दिगम्बर शास्त्र अन्य भारतीय साहित्य की तरह कोई स्थान ही शेप नहीं है, क्योंकि श्वेताम्बर शान कौशाम्बीके राजा का नाम शतानीक लिखता है। तब उन्हें सिन्धु-सौवीर का राजा घोपित करते हैं जिसमें यदि उसके किसी अन्य प्रन्थमें उसी राजाके लिये कोई सोलह देश गर्भित थे और अन्यथा यह प्रमाणित है अन्य नाम हो तो उसे उस गजाका दूसरा नाम मान कि कच्छ देश मिन्धके ही अंतर्गत उसी तरह था जिम लना क्यों बेजा होगा ? थंगवलीके शोभनरायका नाम तरह सौवीर । तिम पर कच्छके अथ समुद्र-तट- भी यदि किसी अन्य श्वेताम्बरीय प्राचीन ग्रंथमें होता वाले देशके भी हैं। इस दशा में उत्तरपुराणमें सिन्धः और उसका समर्थन संस्कृत साहित्यमे उपयुक्त प्रकार सौवीर को कच्छ देश लिखा गया तो वह कुछ भी हो जाता,तो हमें उसे स्वीकार करनेमें कोई आपत्ति न येजा नहीं है । सातवीं शताब्दीमें जब हन्त्मांग यहाँ होती । उत्तरपुराण-वर्णित राजा चेटक के पुत्रों से यह श्राया था तो उसने कच्छ देशको एक विस्तृत देश किसीका दूसरा नाम है; यदि यह बात उक्त प्रकार करांची तक फैला पाया था और वह सिन्धु देशके १ विषये वत्सवासाख्ये कौशांबीनगराधिपासोम१. उत्ताध्यययनसूत्रटीका-हिन्द टल्म पृ०८। वंशे शतानीको देव्यस्यासीन्मगावती ॥६॥, प६७५। २. कनिंघम, एन्शिपेन्ट जॉगरफी माव इन्डिया पृ. २४६- २. "भगवान महावीर" को अब हम संशाधित रूपमें पुनः प्रगट करने की प्रावश्यकता महसूस करते हैं। ३७
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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