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________________ जेसलमेर के मं०कं ग्रन्थ-फोटू जेसलमेर के भण्डारोंके प्राचीन ग्रंथोंके फोटू [ लेखक - श्री० मुनि हिमांशुविजयजी, न्याय तीर्थ; अनुवादक - पं० ईश्वरलाल जैन विशारद ] 2. आश्विन, कार्तिक, वीरनि०सं०२४५६] साहित्यकी वृद्धि और रत्तणके, लिये मध्यकाल में 'मारवाड़' ने अत्यधिक ख्याति प्राप्त की है। उसमें भी 'जेसलमेर' का नाम इस कार्यमें सबसे बढ़ गया हैअनेक विषयके संस्कृत, प्राकृत, मागधी, अपभ्रंश शौरसेनी, पाली, गुजराती, मारवाड़ी और हिन्दी भाषा के प्राचीन ग्रंथ जेसलमेर के पवित्र भण्डारोंमें उपलब्ध हैं । जेसलमेर के इन भण्डारोंमें ऐसे अजैन ग्रन्थ भी उपस्थित हैं, जो अन्यत्र कहीं नहीं मिलते । पहले तो जेसलमेर के भण्डाराधिकारी भी औरों की तरह अत्यंत संकुचित चित्त वाले थे, जिस कारण से साहित्य सेवियों को उन पवित्र ग्रंथोंका दर्शन भी बहुत दुर्लभ था; परन्तु जमानेकी हवासे वह संकुचितता कम होती जा रही है, जिससे हजारों माइल दुरसे यूरोपियन और भारतीय विद्वान् मारवाड़ जैसे शुष्क प्रदेशमें मुसाफरी की विडम्बना सह कर भी उत्कण्ठा और नम्रतापूर्ण हृदयसे जेसलमेर आकर प्रन्थोंके दर्शन करते हैं, प्रशस्ति, ग्रन्थ, प्रन्थकर्ताका नाम आदि लिख कर ले जाते हैं, और उस पर साहित्यके सुन्दर सुन्दर लेख लिखते हैं । साहित्यसेवी 'ओरियन्टल गायकवाड़ सिरीज' को भी यह कार्य अत्यावश्यक लगा और इसीलिये इस संस्थान साहित्य के महान् विद्वान् श्रीयुत् श्रावक चिमनलाल जी, दलाल एम. ए. को जेसलमेर भेज कर कई एक सुन्दर ग्रंथोंकी टिप्पणी कराई थी, और बादमें उनकी अकाल मत्यु हो जाने पर सेन्ट्रल ६०५ लायब्रेरीके जैन पण्डित श्रावक लालचंद भगवानदास जी गान्धीने उन टिप्पणियोंको व्यवस्थित कर उन पर संस्कृत भाषा में इतिहासोपयोगी एक टिप्पण लिखा था उस टिप्पण को 'जेसलमेर - भाण्डागारीय-प्रन्थानां सूची' नामसे उपर्युक्त सिरीजन अपने २५ वें प्रन्थके तौर पर सन १९२५ में प्रकट किया है। जेसलमेर के ताड़पत्र पर लिखे हुए प्रन्थों में से ११ ग्रंथोके (जो अत्यन्त जी हो गये हैं) कंमेरा द्वारा फोटू लिये गये है। फोटोमा फर भाई भगवानदास हरजीवनदास भावनगरी है। उन सभी ग्रंथोंक फोटुओका दर्शन मुझे बम्बईके चातुमांस में ( ई. सन १९०७ में ) 'श्री मोहनलाल जैन सेन्ट्रल लायब्रेरी' में हुआ सब मिला कर फोटू ऑफी २५४ घंटे हैं और उनका मूल्य २०० ) ० है । अजर साफ नज़र आते है। उनमें नीचे लिये हुए १४ प्रन्थ हैं। १ द्रव्यालङ्कारवृत्ति प्रस्तुत कृति श्रीहेमचन्द्राचार्यकं शिष्य प्रबन्धशनकारक महाकवि रामचन्द्र सूरि और गुलचन्द्र-रचित न्याय तथा सिद्धान्तविषयकी है । 'स्याद्वादम आदि प्रन्थोंग 'तथा च द्रव्यालङ्कारकारी' इत्यादि, वाक्योंमें इन प्रन्थकारों और ग्रंथका उल्लेख आया है। प्रमेयके विषय में इस ग्रंथसे अच्छा प्रकाश पड़ता है; परन्तु दुःखकी बात है कि इस मंथके तीन प्रकाशमें से पहला प्रकाश जेसलमेर के भण्डारों की उपलब्ध नहीं, अन्तिम दो ही प्रकाश यहाँ हैं । साहित्यसेवियोंसे मेरी
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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