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पाश्विन, कार्तिक, वारनिःसं०२४५६] तत्वार्थस्त्रक व्याख्याकार और व्याल्याएं भाष्यमें - शब्द के विषयमें लिखा है कि 'सम्यक' भी भाष्य की अपेक्षा सवामिति अर्वाचीन है ऐमा निपात है अथवा 'सम' उपमर्गपूर्वक 'अञ्च' धातुका ही मालम पड़ता है । जो एक बान भाष्यमें होती है रूप है; इमी विषयमे सर्वार्थसिद्धिकार लिखत है कि उसका विस्तन करके-मके ऊपर अधिक चर्चा कर 'सम्यक्' शब्द अव्यत्पन्न अर्थात व्यपत्ति-हिन अग्बंड के-सामिद्धिम निम्पण किया गया है । व्याकहै अथवा व्यत्पन्न है-धातु और प्रत्यय दंनी मिल शाम और जनता दशनीकी जिननी चचा मवा कर न्यत्पत्निपूर्वक मिद्ध हश्रा है । 'अञ्च' धातु का मद्धिम है उतनी भाप्यमे नही । जैन परिभाषाका.
य लगाया जाय नब मम । अनि मक्षिमहान हप भी. जो स्थिर विशीकरण और इस गति में भम्यक' शब्द बनता है । 'मम्यक शब्द- वनव्यक। जो पृथकर गण सामद्धिम है वह भाष्यम विषयक निरूपण की उक्त दो शैलियोमे भाग्यकी कमती कमी है। भागको अपेक्षा मासिद्धिकी अपेक्षा सर्वार्थमिद्धिकी स्पष्टता विशेष है। इसी प्रकार नाकिकना बढ़ जाती है. और भाप नही एम वि. भाध्य मेला शटकी व्यत्पत्तिविपयम सिफ सातवाना शामिला ममें जार जान इतना ही लिखा है कि 'दर्शन' 'शि धातुका रूप है.. और दर्शनान्तरका घडन जोर पकड़ना है । ये मध जब कि मर्वार्थमिद्धिम 'दर्शन' शब्द की व्युत्पनि नान वान मामिद्धि को अपना भाग्यकी प्राचीनताको प्रकारसं स्पष्ट बतलाई गई है । भाज्यमं 'जान' श्रीर मिद करती है। 'चारित्र' शब्दांकी व्यत्पत्ति स्पष्ट बननाई नहीं; जब साम्प्रदायिकता उक्त दो पानीको अपेक्षा कि मर्वामिद्धिम इन दोनों शब्दों की व्यपान नीन माम्प्रदायिक नाकी बान अधिक महत्व की है । कालप्रकारसे स्पष्ट बतलाई है और बादको उमका जैनदाए- नत्र, चलाकवलाहार, अचलकाय और श्रीमान से समर्थन किया गया है। इसी तरहम ममाममे दर्शन जैसे विषयोन नात्र मनभदका रूप धारण करने के बाद और जान शब्दामम पहले कौन श्राव और पीछे कौन और इन बानी पर माम्प्रदायिक श्राम बंध जाने के श्रात्रे यह सामासिक चचा भायम नहीं; जब कि बान हामवामिद्धिम्बिी गई है, जब कि भाज्यम सर्वार्थसिद्धिमें वह स्पष्ट है। इसी तरह पहले अध्याय यह साम्प्रदायिक अभिनिवेशका नन्त्र दिवाई नहीं के दूसरे सत्रके भाष्य में 'नव शब्नक मिफ दो अर्थ दना । जिन जिन थानाम स्तु वताम्बर माम्प्रदायक सचित किये गये है; जब कि मामिद्धिम इन दोनों माथ दिगम्बर सम्प्रदायका विगंध है उन सभी बाना प्रोंकी उपपत्ति कीगई है और इशि' धानुका श्रद्धा का मामादक प्रगतान मत्रांम फरफार करके अर्थ कैम लेना, यह बात भी दशाई गई है, जो भाग्य
या . ... . .. । में नहीं है।
- इत्यानिकी ममिदक गाय का भार । अर्थविकाम - अर्थ की ट्रिम दम्बिये ना मामय मा ना ययन न भाग -
नक मल प्रकारम मिदन का दिया कि म कर मन्त्र २. उदाहरण के तौर पर नुलन कर 1..1 ... पाट वृद्ध ममितिकारक द्वारा निगा किन! 12 . मोर २.१ त्यति मत्रोंक' भय मोरमसमिटि। महाव्य बम विषय प्रमी मावित मोर निभास