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________________ माश्विन,कार्तिक, वीरनिःसं०२४५६] तस्वार्थस्त्रकं व्याख्याकार और व्याख्याएँ देखनमें नहीं पाया । प्रस्तुन सिद्धमनकी भाग्यवत्तिमें । और दमरी यक्ति यह है कि यदि दमग टीकाइन हरिभद्रका अथवा उनकी कृनियोंका उल्लंम्ब भी महरिभद्रन अपनी वान उदधत की हा अर्थान मंसप अभी तक दम्वनमें नहीं आया। इससे अधिक मम्मा- करके लिम्वीही ना वह दूसरी टीका मिदमन'की बड़ी वना ऐमी जान पड़ती है कि याकिनीमन हरिभद्र और वनिना मम्भवश्रीराबानमा प्रस्तुत 'मिद्धमन' ये दाना या ना समकालीन हो और दंग्य चोक सिद्धमन और हारभन न दानाक, या इनके बीच में बहुत ही बांदा अन्नर होना चाहिये। समयके बीच कोई म्याम अन्तर नहाना चाहिये ।इम प्रशस्तिमें लिग्वे मुनाबिक प्रस्तुन सिद्धमनकं प्रा महगा अपनं ममकालीन अथवा महन. पर्वकालीन मर (सरि) यदि मलवादि-न 'नय चक्र के टीकाकार सिद्धमनकी वही वनिमम मैकडो पन्धाक बनन्ध 'सिंहमारि' ही हो तो ऐसा कह सकते है कि नय चक्रकी रचयिना याकिनीमन हरिभद्र अपनी बात बनावे । उपलब्ध सिंहमार-कृत टीका मानवी शताब्दी लगभग श्रथान उममें उदधन करें.यह बान भाग्यम ही माना की कृति होनी चाहिये। जा सकती है। हरिभद्र हरिभद्र' नामक अनंक श्राचार्य है। प्रस्तुत ऊपर बनलाई हुई तत्त्वार्थभाग्यकी छोटी वृत्ति जो है हरिभद्र कदाचिन विम. म पशमीन' का टीका रचने वाले हरभदहाही मी कल्पना अभी तक मुद्रित नहीं हुई वह हरिभद्रद्वाग प्रारम्भिन होने पर भी किमी भी कारणवश उनम अधरी ही रह है। क्योकि 'प्रशमर्गन' वाचक रमाम्बातिका नि. इमममी कम्पना की जा सकती है कि नही हार गई है । यह हरिभद्र कौन ? यह एक प्रश्न है. । नि । का अवल कन करने हुए गमा नि सन्दह जान पड़ता भद्रन उमाम्बानिको मर्ग कति नन्वायंभाग्य पर टीका निकी होगी । यदि यह कल्पना मायना प्रस्तुत है कि इम वृत्तिका रचर्चायना याविनीमन, हरिभद्र न हरभद्र बारहवीहवीशलालीक विद्वान मा होना चाहिये । इम सम्भावनाकी पष्टि में इस समय कह मकन है । परन्तु इसके महज विरुद्ध जाने वाली दो युक्तियाँ दी जा सकती है । पहनी यक्ति यह है कि उनकी वृत्तिम अध्यायके अंतम हरिभद्राश्नायो' मी भी एक यक्ति है, और वह यह कि विक्रम म. ऐसा लिम्बा हुआ है. यदि प्रस्तुत निकार याकिनी में चिन प्रवचनमागद्धार की वनिमें उमके कना सन हरिभद्र हो तो वे इतने योग्य नथा म्वतन्त्र ग्रंथ- • नया च नन्चायमूलटीकायां मिटम:' कार के तौर पर प्रसिद्ध हैं कि उनके विषयममी धा- । ५. ३२५) मा कह कर एक. उबंग्य करने । गहरी रणा करना जग अधिक जान पड़ता है कि उन्होंने दो बानं दबनी है, एक ना मूलटीका इस कथन में किसी दूसरी व्याख्या में अपनी व्याख्या उद्धन का मूलपदम मभ्बन्ध रखने वाली. और दमग यक ममीप ही हरिभद्राका उहब कम किया होगा । २० ५ "तस्याभन परवादिनिजयपटः मैहीं दधानां। नाम्ना व्यन्यन हिमर इनि च मानाम्बिलाथांगमः।" ५ विस्तृत पश्चिपक लिय , in faar नि । - नवमाध्यम प्रणस्निातक कल्यामाविजयी लिपीनामा 91.2
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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