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आश्विन, कार्तिक, वीरनि० सं० २४५६ ] तत्वार्थसूत्रके व्याख्याकार और व्याख्याएँ
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तत्त्वार्थसूत्र के व्याख्याकार और व्याख्याएँ
[ लेखक - श्रीमान पं० सुखनालजी ] A-7 VAT
चिक उमास्वातिनं तत्त्वार्थमत्र में अपनी दृष्टिवाचक प्रमाण जैन दार्शनिक विद्याका जो स्वरूप स्थापित किया है क्योंका त्यों स्वरूप कुछ आगे चल कर क़ायम नहीं रहा । उस सत्रके श्रभ्यामियो और उसके व्याख्याकारी ( टीकाकारों) ने अपनी शक्ति के अनुसार अपने अपने समय में प्रचलित विचार धाराओं में से कितना ही अंश लेकर इस विद्यामे सुधार, वृद्धि, पूर्ति और विकास किया है; इससे पिछले दो लवों में 'तत्वार्थमत्र के प्रणेता उमाम्वाति' और 'तत्त्वा
मूत्र' का परिचय दिये जाने के बाद, इस लेख द्वारा तत्त्वार्थशास्त्र की वंशलम्पसे फैली हुई व्याख्याश्री ( टीकाओं और उन व्याख्याओके कर्नाश्रीका भी कुछ परिचय कराया जाना उचित जान पड़ता है। उसी का यहाँ पर प्रयत्न किया जाता है।
(क) व्याख्याकार
तत्वार्थकं व्याख्याकार श्वेताम्बर दिगम्बर दोनों ही सम्प्रदायोंमें हुए हैं; परन्तु इसमें क्षेत्र यह है कि मूल सूत्र पर सीधी व्याख्या सत्रकार उमाम्वाति के मिवाय दूसरे किसी भी श्वेताम्बर विद्वानने लिखी हो ऐसा मालूम नहीं होता; जब कि दिगंबराय सभी लेखकोंने सूत्रों के ऊपर ही अपनी अपनी व्याख्या लिम्बी है | श्वेताम्बरीय अनेक विद्वानोंने सूत्रों पर के भायकी व्याख्याएँ की है, जब कि दिगंबरीय किमी भी प्रसिद्ध विद्वान्ने सूत्रों पर की व्याख्या ( भाग्य के ऊपर लिखा हो ऐसा मालूम नहीं होता। दोनों मम्प्रायोंके
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इन व्याख्याकारों में कितने ही ऐसे विशिष्ट विद्वान हैं कि जिनका स्थान भारतीय दार्शनिकों में भी चमकता है. इसमें प्रायः वैसे कुछ विशिष्ट व्याख्याकारों का ही यहाँ संक्षेप में परिचय देनेका विचार है।
उमास्वाति
तत्वार्थमत्र पर भाष्य रूपसे व्याख्या लिखने वाले खुद सत्रकार उमाम्बानि ही है, जिनका परिचय तस्वार्थसूत्र के प्रांना उमाम्वानि' शीर्षक प्रथम लेव मे दिया जा चुका है (देख्यो, अनेकान्त कि० ६७ पृष्ठ २८५ ), इसमें इनके विषय में यहाँ जय लिम्वना कुछ रहना नहीं ।
गन्धहस्ती
'ती' विशेषणको लिए हुए दो व्याख्याकार जैन परम्पराम प्रसिद्ध है एक दिगंबराचार्य समन्नभद्र और दूसरे श्वेताम्बराचार्य सिद्ध सेन दिवाकर । इनके विषय में गन्धहस्ती' शीर्षक जो लेन भने कान्नकी थी किरण में प्रकट हुआ है उसे यहाँ पर पढ़ना चाहिये ।
सिद्धसेन
नस्वार्थ भाष्य के ऊपर श्वेताम्बराचायों की रची हुई दो पूर्ण वृतियाँ इस समय मिलती हैं। इनमें एक बड़ी और दूसरी उससे छोटी है। बड़ी वृतिके रचने वाले सिद्धसेन ही यहाँ पर प्रस्तुत हैं। ये सिद्धसेन विन्नगणिके शिष्य सिंहमूरिके शिष्य भाम्बामिके शिष्य थे, यह बात इनकी माध्यवृत्तिके अन्त में दी हुई प्रशस्ति