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________________ आश्विन, कार्तिक, वीरनि० सं०२४५६] दलित-कालका इतिहासकी भाषामें और माहित्य की भाषा में भेद इतिहासमें इन बातोंका विशेष महत्व नहीं बल्कि उस होना है। जहाँ साहित्यकी भाषा अलङ्कार और प्राड- समयके धार्मिक, सामाजिक और राजनैतिक जगतकी बापूर्ण होती है, वहाँ इनिहामकी भाषा मीधीमादी, क्या अवस्था थी, लोगोके विश्वास कैस थे, कौनसे मर्यादित और तुली हुई होती है । हमारे इतिहासलेख- धर्म की प्रधानता और प्रचारबहुलता थी. उनके रीतिकोंका ध्यान इस ओर बहुत कम है। वे जब किसी रिवाज, आहारविहार, वेषभषा आदि कैसे थे, धार्मिक जैनाचार्य यः जैनगजाका इतिहाम लिम्वत हैं, तब स्थिति कैसी थी, नागें और प्रामोंकी क्या अवस्था, इनिहाम निम्वना छोड़कर अन्यक्ति और पाडम्बर थी विदशियांम कहो नक सम्बन्ध था, उस समय जो पूर्ण काय लिम्बने लगते हैं ! यह न होना चाहिए। यद्धादि हुए उनके वास्तविक कारण क्या थे, युद्धादि इनिहामका प्रत्येक वारय और प्रत्येक शब्द जंचा-तुना के कारण प्रजाकी शान्ति कहाँ तक भंग होती थी, मर्यादित ..ना चाहिये। __ मंघशक्ति कैसी थी, विद्याचर्चा कितनी थी और वह इनिहामो अनुमानसे बहुत काम लेना पड़ता है। किम तरह चलती थी, लोगों में स्वार्थत्याग, पराथपरता, परन्तु उम अनमानकी भी कुछ मीमा हानी चाहिए। देशभक्ति श्रादिक भाव कैमे थे, इत्यादि बातोंका वां में पढ़ा है कि उनके लेखकानं यदि इनिहाममें विशेषनाके माध विचार होना चाहिए। कहीं पर कोई प्राचीन प्रतिमा पा ली और उममें कोई इतिहामका यही भाग लागांके लिए विशेष पथप्रदर्शक मन-संवन लिम्वा न पाया, तो बम उन्होंने उमी ममय होता है, परन्तु हम लोगांका ध्यान इसी ओर बहुत लिग्ब माग कि 'यह प्रतिमा अनमानमें चौथ कालकी कम जाता है । मालम होनी है '' मला. यह भी कोई अनुमान है" म अनमानाम इतिहासलेखकाको बचना चाहिए। लगभग १७ वापरले लिम्व हा लखका माति. परि. किमी व्यक्तिका समय, उमकी रचना और उस नितमपबिदिनमामि जामनेकान्मक लिए तम्या का पागि इत्य आदि लिम्ब देना ही इनिहाम नहीं है गई *. दलित-कलिका * [लेग्यक-५० मूलचन्दजी जैन 'बन्मल' ] हाय विधि ! कैमा दृश्य दिखाया ' प्राची में रवि उदिन हुआ था, हृदय-मगरह मुदिन हुआ था.-- खिलनको थी-किन्तु-कालने केमा पलटा खाया। हाय विधि । कैमा एश्य दिखाया !! निदेय, अय-शन्य-मानवन, मेरे जीवन के दानव ने, - तोह मुझे, करघुनधमग्नि, पदनलसे ठगया ! हाय विधि : कैमा दृश्य दिखाया ! प्रभा-हीन पद-पलिन पड़ी हूँ, मृत्यु-धार पर अड़ी खड़ी हूँ,हा दुर्देव ! कालचकर में तने खबघुमावा! हाय विधि ! कैमा एव दिखाया !!
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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