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________________ पारिवन, कार्तिक, वीरनि० सं०२४५६] इतिहास इतिहास [ लम्बक - श्रीमान पं० नायरामजी पमा ] कछ समयसे जैनसमाज में भी इनिहामकी चर्चा घटना बढ़ाकर प्रकट की जाती है और बड़ी भारी से होने लगी है। दिगम्बर और ताम्बर घटना बिलकुल सामान्य बना दी जानी है, उसी मत मंगनों ही सम्प्रदायके विद्वानोका ध्यान इस ओर या सम्प्रदायकी उससे सबसे अधिक हानि होती है। आकर्षित हुआ है और वे इस विषय के छोट मांटे क्योंकि एक सत्य घटनास मनुष्य जी शिक्षा ग्रहण लेख तथा ग्रन्थ लिम्बन लग है । पत्रों में अक्सर इस कर सकता है, वह शिक्षा उमके अनुयायियोंकी नही विषय के लेग्य भी प्रकाशित होने गहन है परन्तु हम मिलने पानी । जिन कारण-कलापोंके मिलनेका देखन है कि अधिकांश जैन लग्वक इनिहामके अमली परिणाम बग होना चाहिए, झटं इनिहासम उनका उद्देश्यका न ममझ कर उस बलपूर्वक धार्मिक या मा परिणाम असा विदिन होता है और न उस प. म्प्रदायिक कनाम घमाट ले जाने का प्रयत्न करत है. विश्वास करने वाले 'बबन' बोका 'प्राम' बान का जो कि सर्वथा अनाचन है। इतिहाम सत्य घटनाांका आशा करने लगते है। इसके सिवाय इतिहास प्रकाशक है। किमी मत या मम्प्रदाय । कारण वह नंग्यक जानना है काला गं निम्नधिविपला मत्य का उल्लङ्घन न कर मकना । इमाना इतिहाम च पथ्यो'. मम अनन्त और पवा वान लवकका-चाई वह स्वयं किमी मन या सम्प्रदायपर विम्नन है.टमाना मेरे पानपरभा कोईतिहामिय विश्वास करनवालाहा-यह कनव्य है कि वह ना मगरपान रहना-नnatनमबर घटना जिस समय श्रार जिम पम घटित हुई हा पकट हा बिना न रहेगा और नब मंगगणना मत्यका में उमी समय और टमी रूप में प्रकाशित करे। मरने वालों में की जायगी म लिग भा सत्यका पाषण करना ही उमका मबमे पहा कनव्य मल का मान किमी मय घटना भयथान्य है । किसी मत या सम्प्रदायकी अपना म मन्यका पकाशित करनका प्रयन ना . सबम अधिक एकनिए उपामक होना चाहिए। उमं कल्पना कीजिए कि मान पावमा व पालं जानना चाहिए कि किसी प्रकार के पक्षपातम किमी मा जैनाचार्या या जो पर विद्वान या घटनाको अयथार्थ रूपमे प्रकाशित करना इतिहास का और उसके पागिनत्य के प्रकाशित करने वाले इस समय हत्या करना है। उमे विश्वास होना चाहिए कि म मा कोथ मिलने । अपनं यकी दुर्वनना . ही इतिहासका जीव है और सजीव इतिहामही मनाय वश उसने किमी ममय कोई दृप्रनि की पी. पा को सुमार्ग बतना मकना है. जो कि इतिहास पढ़ने का साधारण लिया था. और जनधर्मकेता सबसे प्रधान लाभ है। वास्तवम दम्बा जाय तो जिम कई मंच है उनमें शत्रुता बढानकी काजिश की थी। मन या मम्प्रदाय माहम पह का कोई छोटीमा एक अपरिगामी मामा धर्ममाहा काम कम
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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