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________________ उर्दू-. ५६८ अनेकान्त वर्ष १, किरण ११, १२ हिन्दीगग उदै भोगभाव लागन सुहावनस, "बद न बोल जेरे गर्दै गर कोई मेरी सुने । विना गग ऐम लागै जैसे नाग कारं हैं। है यह गम्बदकी सदा जैसी कहे वैसी सुने । राग ही सौं पाग रहे ननमें मदीव जीव, x x -'जौक' गग गये श्रावत गिलानि होत न्यारे हैं । "कमीना४ काम करनेमे जो डर जाए वहादुर है। रागौं जगतरीति झठी मब माँची जान, "बनी-आदमकी खातिर जान दे वह बेबहादुर है ।" गग मिटै मुझन अमार ग्वेल सारे हैं। रागी-विन रागीके विचारमें बड़ी ई भेद, हम करते हैं आदत की गुलमाना-अताअतः । जैसे 'भटा पच काहू काहको बयार है। इसलाहपजीर इसलिये आदत नहीं होती। ___ x x -भधरदास । x x -'हाली' दंग्य कुमंगनि पायक होहिं सुजन सविकार । "यही है इबादत१० यही दीना-ईमाँ। गिनिजांग जिमि जल गरम चंदन होत अँगार । कि काम आए दुनिया में इन्साँपन्क इन्साँ ।" X X X ___ x x -वन्दावन। जो कह नेरी ज़बाँ नकश ३ दिलों पै हो जाय । जा रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकन कुमंग । कोल' में अपने अमल में वह अमर पैदा कर ।। चन्दन विष व्यापन नहीं लपटे रहन भुजंग ॥ x -'प्रहार' x ___ x -हीम । x इन्साँ की शगाता५ मुतअल्लिका है अमल में । मंवन कीजे धूप का प्रातः ग्वले शरीर । मीराम में नामीम शगान नहीं होती। बंध डालने गंग को रवि किरणों के तीर । x x -'अशंक'। ___ x x -'हाली' आईना:दग्वा अगर पीरी में याद आया शबाब परिश्रमी लोग दुखी न होन, परिश्रमी ही जगदुख खोत। . सुदेव भी संबक है उन्हींका, मनप्य ता है, श्रमहीन फीका।। , आगे मग्न और थी अब और ही सग्न हुई ।। x x -अमीर' x x - दरबार्गलाल । इल्मा-तवाजो-हुनगं-दादा यादहकः । जो घमना है पिकवन्द बीच,नो त्याग र काककति नीच।। जिस शख्समें ये वफल नहीं वह वश नहीं। किंवा यही है तुझको बताना विभपाणं मानं पंडिनानां'। x -'शेर' xxx राहन-४ जिस कहने वह महननका मिला५ है। ज्यों ममुद्रमें पवन तें, चहुँदिशि उठन नरंग। ____ आगमतलबी-६ मूजिबे-राहत नहीं होती। त्यौं श्राकुलतामों खित, लहैं न ममरम रंग ॥ x x x x -हाली' -वृन्दावन । "मरजा मांग नहीं अपने ननके काज । १ - भागभानक नीचे. : आवाज़. नीच , मानवपर उपकारक काग्ने ननिक नाव लाज ॥" नमानक लिए ६ ममूल्य मानी. दामवंक म्पमें मानX X X पालन. ६ सुधारको ग्वीकार करने वाली. १० उपासना. ११ धर्मव सुखी रहैं सत्र जीव जगतक, कोई कभी न घबरावे, अदान. १२ मनुव्यक. १३ अस्ति. १४ वचन. १.. मजनता. १६ बैर-पाप-अभिमान छाई जग, नित्य नये मंगल गावे। गम्बद्ध. १५ दाय-विरासत. १८ दर्पणा. १६ श्रद्धाव था. २० यौवन घर-घर चर्चा रहे धर्मकी, दुष्कृत दुष्कर हो जावें, २१ क्यिा, विनय, कला, न्याय मौर ईश्वम्मरणा. २२ गुणा. ज्ञान-चरित मतकर अपना,मनुज-जन्म-फलसबपावें॥ २३ मनुन्य. २० मुख. २५ उपहार-पारितोषिक. २६ मालस्यमें । पर मुखकी इच्छा. २७ मुखका कारया। att
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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