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अनेकान्त
वर्ष १, किरण ११, १२ (आकर्षण), ताडन, अक्षिस्फोटन, प्रेषण, दहन, भेदन, कर छेदन, दहन आदि सम्बंधी जो पद भी मंत्री बोबंधन (मुष्ठिप्रहण आदि), ग्रीवाभंजन, अंगछेदन हनन, लता है वही मंत्र हो जाता है। और शेष दो में कहा है मज्जन और आप्यायनका विधान करके उनके मंत्र कि ज्वालनीमतका जानने वाला भले ही मालामंत्रको दिये गये हैं तथा मुद्राएँ भी बनलाई गई हैं और उनम न पढ़ो, विधिपूर्वक देवीकी साधना भी न करो और ग्रहोंका निग्रह हाना लिग्या है । माथ ही, यह भी बत- चाहे वह देवीके अर्चन, जाप्य, ध्यान, अनुष्ठान और या है कि जिम प्रकार शब्द, चाबक, अंकुश और पैगें होमसे भा रहित हो फिर भी वह जो पद बोलता है से घोड़-हाथी हाँ के जान हैं उसी प्रकार बधजनों के वही मंत्र हो जाता है !! अम्तु; इन दमों पद्यों और इन सम्बोधन पर दिव्य और अदिव्य सभी ग्रह नाचते हैं। के बादक १८ पद्योंकी-जिनमें कुछ मंत्रबीजों आदि बुद्धिमान पुरुप उत्तम मंत्रांके नीक्षण वाग्वारगोम दुष्ट का वर्णन है-स्थिनि ग्रंथप्रनिमें कुछ संदिग्ध जान प्रहक हृदय और कानको भेद कर जो जो चिन्तवन पड़नी है क्योंकि ग्रंथप्रतिक अंतमें, प्रन्थकी ३६८ पद्यकरता है वह वह सब इम भमंडल पर प्रस्तुत हो जाता मंग्याकी गणना करनं हुए, इम अधिकार (परिच्छेद) है । इस पिछले कथन के दो पद्य इस प्रकार हैं :- की पद्यसंख्या ६८ बनलाई गई है और अधिकार में शब्दकशाडूशचरणैहयनागाश्वादिनायथायान्तिः ८३ द ग्वाम्बी है । अनः ५६ के बाद ८३ नकके इन २८
पद्याम १२ पद्य ही मूल ग्रन्थके हैं, शेप मब क्षेपक है। दिव्यादिव्याः सर्वे नत्यन्ति तथैवमंबोधनतः।। ५।। .
" वे मूल पद्य कौनसे हैं ? यह इम अनुवाद वाली दहली चायतीक्षणवरमंत्रभिन्वादुष्ट ग्रहम्य हृदयंकणा। की गन्थनि परस परं तौर पर नहीं जाना जा सकता। यद्यचिन्तयतिबधस्तत्तचोद्यं करोतु भुवि ॥ ५६ ।। इसके लिये दूसरी मूल प्राचीन प्रतिके दम्वनकी जरू
इसके बाद दस पद्याम जिनमेस प्रत्यक वाक्यका चौथा चरण "यक्ति पदं नदेव मंत्र: स्यात" है, चौथ मंडलाधिकारमें गहोंका उन्नाटन, निगह तथा मंत्रीका कुछ महत्व ख्यापित किया गया है और अनेक गंदनादिक कगन लिये वक्षके नीचे, प्रेतगृहमें, चतुरूपसे यह बतलाया गया है कि वह जो पद बोलना है. पथ में, गामके मध्यभागमें अथवा नगर के बहि माग वही मंत्र हो जाता है । ' नमूने के तौर पर इनमम नीन में मंडल बनानका विधान किया गया है और 'नवपच इस प्रकार हैं :
बंड', 'मर्वतोभद्र' आदि अनेक मंडलांक बनानकी विधि छेदनदानप्रेषणभंदनताडनसबंधमान्ध्यमन्यद्वा । प्रादिक दी गई है । इम अधिकार के ४४ पा है। पाजिनायतदुक्त्वाय-क्ति पदंतदेवमंत्र:स्यात् । ५६ पाँचवें कटतैलाधिकार में बहुनसी दवाइयोंके संयोग न पठतु मालामंत्रं देवींसाधयतु नैव विधिनेह । से एक 'भूताकम्पन' नेल तय्यार करनेकी विधि दी है भीमालिनीमतोयक्ति पदंतदेवमंत्रस्यात् ६॥ और फिर उसे 'स्वङ्गरावण' विद्यामन्त्रम हजार बार देव्यर्चनजपनीयध्यानानुष्ठानहोपर्गहनोऽपि । मंत्रित करनेको लिखा है । इस प्रकारसे सिद्ध हुए तेल श्रीघालिनीमनझा यक्ति पदं तदेव मंत्र: स्यात् ६५ को मुंघनिसे शाकिनी, अपस्मार, पिशाच और भुतगह
पहले पत्र में बतलाया है कि 'पार्श्वजिनाय' कह नाशको प्राप्त हो जाते हैं तथा विष निर्विपतामें परिणत
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