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आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, वीरनि०सं०२४५६]
अनेकांत पर लोकमत
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'अनेकान्त' पर लोकमत
६८ संपादक 'अग्रवाल-सधारक' आगरा-- Every number contains a lot of substan
tinl food for thought: only I wonder if इस पत्रका उद्देश्य जैनधर्मके गढ तत्त्वोंको वो- You could make its lungunge simpler
and easier, so that a larger number of जना और प्रचार करना मालूम होता है। इसके लखोंकी गम्भीरता, उपयोगिता और हितोपदेशता dissertations contained in it. I am glnd
people might benelit by the illuminating सराहनीय है। जो लोग कि वास्तवमें जैनधर्म पर to see that up to the present time कुछ गम्भीरता और विचारपूर्ण लेख पढ़ना चाहतं you have to upulously kept above all हैं वे इस अवश्य पढ़ें । जैन-सम्प्रदायके जितने puty recriminations found in so many पत्र निकलते हैं उनमें इसका स्थान उच्च है। other papers. It is as it should ve, for हमारी हार्दिक इच्छा है कि पत्र दिनों दिन उन्नति Ahinsa is the soul of Jainism. If you
continue to preach the truth is you करता रहे और अपने उद्देश्यमें सफल हो।"
have done so far, you will bave set up ६६ श्री. बाबा भागीग्थजी वर्णी, बम्पा- Muniquri standaul in the world of pulसागर ( झाँसी)
le journals. I wish you a lous life of __ " मेरा मन लगा वास्तव म्पस ता 'अनकान्त'svire in the count of your religion में । जैनियोंमें तो इसके ममान कोई भी पत्र ind of your community. नज़र में नहीं आता है। . . .हमार्ग तो अन्तरंगस "मैं आपके बहुमूल्य पत्र (अनेकान्त) के करीऐसी भावना है कि ऐमा महान पत्र हमेशाके के करीब मब अंक पढ़ गया हूँ। आपनं बराबर ऊँची
वास्ते चिराय होवे, जैनियोंको ऐमी समझ आवे" साहित्यिक समवृत्ति को स्थिर रखा है । हर एक अंक ७. सेठ परमानन्दजी एम. ए., इनकमटैक्स विचार के लिये वास्तविक खाद्य लिये हुए है; मात्र मुझे __ आफीसर, देहली
__आश्चर्य होता यदि आप इसकी भाषाको और भी " I have read nearly ail numbers of अधिक मान तथा सुगम बना सकतं, जिससे इसके your valuable Magazine You have all दीप्तिमान निबंधोंसे जनता अधिक लाभ उठा सकती।मैं along naintaived a high literary level. यह देख कर प्रसन्न हूँ कि आपने इस वक्त तक संपूर्ण