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________________ ५३४ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८, ९, १० करनेकी आदत डालनी चाहिए। जातिके जैनियोंकी भी यही दशा है । कोई मन्दिर ___ हमको विश्वास है कि थोड़ेसे अपवादोंको छोड़ बनवाता है, कोई प्रतिष्ठा करवाता है, कोई रथ बनवाता कर जैनियोंमें जितना दान होता है, वह सब मानके है, कोई तीर्थों पर पहली दश धर्मशालाओंके रहने पर भी एक और नई धर्मशाला बनवाता है, कोई मंडों लिए ही होता है। यदि इनमें इतनी विवेक बुद्धि होती, मसंडोंको लड्ड खिलाता है, कोई बड़ी बड़ी ज्योनारें यदि ये इतना विचार सकते कि वास्तविक मान किस करता है, कोई पिताके श्राद्धमें ब्राह्मणोंको रुपया या कहते हैं और वह कौन कौन कामोंके करनेस मिलता मोहरोंका दान करता है, और कोई रायसाहबी गयहै, तो उनके इस मानपूर्वक दानसे भी समाजकी कोई बहादुरी पानंके लिए सर्कारी अफसरोंके हाथोंमें भी हानि न थी । वे वास्तविक पुण्य बन्धस अवश्य ही वं. दानका र दानकी रकम दे देनमें कुंठित नहीं होता। इस ममय जैनधर्म और जैनममाजकी उन्नति चित रहते, पर समाजका तो उनके दानसे उपकार ही करने के लिये जो संस्थायें खल रही हैं और जिन म. होता । परन्तु दुर्भाग्यसे वे 'मान' की परिभाषासे भी कड़ों संस्थाओंके खालनकी जरूरत है, यद्यपि उनमें अपरिचित हैं और इसलिए गतानुगतिकतास, अभ्या- द्रव्य देनस रथप्रतिष्ठादि कार्यों से भी अधिक मान ससे और देखा देखीसे वे जिसे मान समझते हैं, उसी- मिलता है-भारतके एक छोरसे लेकर दूसरे छोर तक की आशासे बगबर चाहे जिस काममें मपया खर्च उसका नाम हो जाता है; पर ये पुरानी मशीनें तो अ । पने ग्राम-नगर या उसके आसपासके लोगोंके अथवा किया करते हैं । इसका फल यह होना है कि प्रति वर्ष ___ अपनं चापलसोके दिये हुए मानका ही मान समझती लाखों रुपया खर्च होने पर भी जैनसमाज या जैनधर्म- हैं। वह देशव्यापी मान जिन कानांसे सुन पड़ता है, को कुछ भी लाभ नहीं पहुँचता है । इन मशीनोंका व कान ता इन्हें विधातानं दियं ही नहीं । इन मशीनोइससे कुछ मतलब नहीं कि हमारे दिये हुए टिकटका के यदि कान होतं, तो श्राज जैनसमाजका आश्चर्यजक्या उपयोग होगा और जिन्हें हम देते हैं, व वास्तव में नक कायापलट हो जाता। उसके लेनके पात्र हैं या नहीं। ___ जैनधर्म और जैनसमाजकी वर्तमान अवस्था बड़ी ही शोचनीय है । उसे देखकर सहृदय पुरुषोंक हृदय____एक परवार या गोलापूरव धनिक इस बात के वि- पर बडी चोट लगती है। भगवान महावीर जैसे ज्ञानचारने की जरूरत नहीं समझना कि जहाँ में रहता हूँ, सूर्योके उपासक और महात्मा सिद्धसेन, समन्तभद्र वहाँ नये मन्दिरकी आवश्यकता है या नहीं; पगने जैसे विद्वानों के अनुयायी आज घोर अन्धकारमें डूब मंदिगेंकी पजा और मरम्मतका इन्तज़ाम है या नहीं हुए हैं । धर्म-कर्मका ज्ञान तो बहुत बड़ी बात है, सौमें बस्तीमें दस बीस लड़के ऐसे भी हैं या नहीं जा पढ़ना ९० तो अक्षरशत्रु बने हुए हैं; जो पढ़त लिखते हैं, ___ उनकी अच्छी शिक्षाका प्रबन्ध नहीं; जो उच्च शिक्षा लिखना जानते हों, या धर्मका रहस्य समझत हों; प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें कोई सहायता देने वाला बस्तीके गरीब भाइयोंकी क्या दशा है और कमसे कम नहीं, विदेशी विद्याओंके पढ़नेमें पाप समझा जाता है। मेरे कुटम्बी सुखी हैं या नहीं। वह यह सोचता है कि सियोकी दुर्दशाका तो कुछ ठिकाना ही नहीं; मूर्खतामेरी प्रतिष्ठा कैसे बढ़े, मुझे लोग बड़ा कैसे समझे पूर्ण लोकरूढियोंन और सैकड़ों कुरीतियोंने उन्हें जर्जर और एकाध पण्डितजीकी सम्मति लेकर मन्दिर बन- कर दिया हैउनका नैतिक चरित्र अधोदशाको पहुँच वान और रथ चलाकर सिंघई, सवाई सिंबई, सेठ या चुका है। बल, साहस,अध्यवसायका उनमें नाम नहीं; श्रीमंत सेठ बननेके लिए तय्यार हो जाता है । दूसरी उनके धर्मग्रंथ भंडारोमें पड़े पड़े सड़ रहे हैं, पुरानी .
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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