________________
अनेकान्त
[वर्ष१, किरण उनका प्रहण व पालन करते रहें और कोई भी रोगी न साधारण इसकी अनिवार्य आवश्यकता को नहीं भूलें, हो । वास्तव में
और उठते-बैठते, सोते-जागते, खाते-पीते, हर समय धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम् ।
इस पर अमल करते रहें. जिससे व्याधियोंको स्वयं रोगास्तस्यापहारः श्रेयसो जीवितस्य च ॥ निमन्त्रित करके मन चाहा कष्ट न उठावें । अर्थात् धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों . अब
.. अब मैं 'स्वास्थ्यरक्षा' अर्थात् नित्य आरोग्य का मल आरोग्य और योगी बने रहने के वे उपयोगी नियम, जो श्री वैद्यशिरोमणि श्रेय और जीवन को हरने वाले हैं । भावार्थ- वाग्भट्टने, जिनके 'अष्टांगहृदय' प्रन्थमें मंगलाचरणके धर्म, धन, मनोकामना एवं मोक्ष की प्राप्ति का प्रधान प्रारम्भिक श्लोक में जैनत्व कूट कूट कर भरा हुआ मूल आरोग्य है । सांसारिक-दुखों से छूटने का एक
है और जो उनके जैन होने का ज्वलन्त उदाहरण है, मात्र उपाय मोक्ष है, और आयर्वेदके सिद्धान्तानसार सूत्ररूपमें ओतप्रोत किये हैं, सर्व साधारण की हितमोक्ष प्राप्ति की कुली आरोग्य में ही संनिहित है। यह दृष्टि से प्रकाशित करता हूँ, और इसी तरह समय समय तो निश्चित वात है, और उपचारसे मानना पड़ेगा कि, पर 'अनेकान्त' पत्र-द्वारा पाठकों की सेवा करता दुःखका अत्यन्ताभाव तथा अनुपम-सुखकी प्राप्ति मोक्ष है, शारीरिक दुःख और मानसिक-विकारोंसे छुटकारा नित्यं हिताहार-विहार-मेवी पाए बिना दुःखोंका अत्यन्ताभाव नहीं होसकता, और
ममीक्ष्यकारी विषयेष्वसक्तः । दुःखोंकी अत्यन्त निवृत्ति बिना मोक्षकी प्राप्ति असम्भव है, और मोक्षकी प्राप्ति बिना मनुष्य भवकी यात्रा
दाता समः सत्यपरः क्षमावान् निष्फल तथा अपूर्ण ही रह जाती है, जिससे बार बार
प्राप्तोपसेवी च भवत्यरोगः ॥ जन्म-मरणके दुःख उठाने पड़ते हैं । आशा है, अब
-अष्टांगहृदय। पाठक समझ गए होंगे, कि ऐहिक तथा पारमार्थिक
अर्थात्-जो प्रति दिन हित आहार और हित सब सुखोंका मूल आरोग्य है।
विहार करते हैं, ऐहिक तथा पारमार्थिक कार्योंमें हेययदि आप इस आरोग्यरूपी अमूल्य-रलके पारखी आदेयका विचार कर ठीक आचरण करते हैं, भोगबन कर इसके अनन्त गुणोंको दीर्घ-दृष्टि-द्वारा-परीक्षा विलास में आसक्त नहीं रहते, दान देनेकी प्रकृति रखते करेंगे, तो आपको इसकी सदाशयता, महत्ता, एवं हैं, समताभाव धारण करते हैं, सत्यवादी तथा क्षमाशील प्राह्यता का भान होगा। इसका प्रकाश-आलोक होते हैं और प्राप्तपुरुषों (सजनों) की सेवा किया करते करनेके लिए प्रत्येक पुस्तकालय, छात्रालय तथा सार्व- हैं-उनके गुणोंका अनुसरण करते हैं-वे सर्वदा ही जनिक स्थानोंमें, जहाँ प्रत्येक व्यक्तिकी दृष्टि पड़ती हो, नीरोग रहते हैं । 'स्वास्थ्यरक्षा' इन चारों अक्षरोंको मोटी लेखनी द्वारा मोने के पानीसे अंकित करना चाहिए, ताकि सर्व
(अपूर्ण)