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अनेकान्त
वर्ष १, किरण ८, ९,१०
सौंपू।"
दूसरी ओरसे गर्दभिल्ल राजाको अपने पर आने __ सरिके वचन पर विश्वास रख कर इस राजाने वाले आक्रमण की खबर मिली । उसने भी अपना अन्य ९५ राजाओंको बला कर उनके साथ प्रयाण मैन्य तैयार करके सामने ही आकर पड़ाव डाला । किया । सिंध नदीसे उतर कर वे सौगष्ट ' में आये। एक रविवारके दिन दोनों सैन्योंमें यद्ध हया। यहाँ पहुँचत ही वर्षाकाल आ पहुँचा । इस लिये का- इस युद्धमें 'साखी' राजाके अनुयायियोंने अपने अंट लकाचार्यकी श्राजानुसार मब लोगोंने अपने अपने पराक्रमका भान कराया । गर्दभिल्लका सैन्य भागने पड़ाव डाले । चातुर्मास समाप्त होने पर मब आगे लगा, और गर्दभिल्ल स्वयं नगरके दरवाजे बंद कराकर बढ़े। उन्होंने लाटदेशमें प्रवेश किया और वहाँ के गढ़में घुस गया । कालकाचार्यका सैन्य नगर को घंग राजा बलमित्र और भान मित्र को भी, जो कि डाल कर वहॉ ही पड़ा रहा। कालकाचार्यके भानजे थे, माथ लिया।
बहुत दिनों तक गर्दभिल्लके मैन्यका एक भी मनाए
किल पर दिखाई नहीं दिया। मारा वातावरण शान्त • सिंधु नो पार कर गोगः करने का उल्लेम्य मूल
- प्राकृत में भी है:
मालम होता था । इसके बाद एक 'सावी' गजाक "उत्तरियो सिंध नई कमेण माग्ठमंडलं पत्ता"।।१५।।
1. पटनम, आचार्यन उपयोग लगा कर देग्या, और फिर मिनी का वहां पर पदाव डाला, दमका नसाकृत
इन लोगोंको चनाया कि 'गर्दभिल्ल गजा एक गर्दा में नहीं है। परन्तु प्रान्त कथानकी है।
विद्याकी साधना कर रहा है, दग्या ता, क्या किल पर "ने ढकगिरिसमीवे ठिया दिणे कहवि मतवमा ॥" कोई गर्दभी दिग्वाई देती है ?' देग्वनेस मालम हुआ प्रांत-दगिरि क निकट 3. ने माला या। कि-एक स्थानमें एक गर्दभी मुग्व फाड़कर खड़ी है।
- इस ग्थिानामें उनके पास का दाग हो गया. इस लिये आचर्यश्री ने इसका रहस्य ममझाते हुए कहाःकालकाचार्य ने शामनवीको महायनाम मवर्णागिद्रि' काग जब इस गजाकी गर्दभी विद्या सिद्ध होगी तब यह करके यकी कठिनाई दर की. या दिखनाया गया है।
. गर्दभी शब्द करेंगी, और राजाका जो कोई भी शत्र +लमित्र और भानमित्र कोलाट देश (भ 11 ) में माथी लिया । गा उल्लंग्य गरका प्राकृतान । प्राकृत
__ उन शब्दाको सुनगा, उमको म्यूनकी उल्टियाँ होगी. कथानकम ने। उनका परिचय उनके युक्राजक तौर पर कराया और वह पृथ्वी पर गिर कर मर जायगा।'
बलमित्त-भानमित्ता प्रामीअवनीइ गय जवराया। नियमाग्गिजत्तिनगा नत्थगो कालगायरियो।
मालवमें पचन क बाद, युद्धक पहलमा प्राचार्यन एक
दनको भेज कर राजा गाभिमा कहलाया कि- हेमजन् , अब बलभित्र और भानुभित्र ने वानिगा न. ३.३ में ४१३
भी सारवती' को मुक्त कर , क्योंकि ज्यादा तानने मेट जान तक राज्य किया था, गह बात उपलहार दिये। राप्रॉक राज्य है।" . कृत कथानकमें यह बात नही है । प्राकृतः इम कयनक कालसे स्पष्ट होती है। इसके बाद लगभग ५३ वा होने पर काल- सकन करने वाली गाथा यह है:काचार्यने शक लोगोंको लेकर उन पर कमाई की । उममें बलमिन भौर भानुमिन को साथ ले जाना भरभक्ति मालूम होता है। "दूयमह पेमइ गुरू, अज्जवि नरनाह, सरसई मंच। शायद यह फना शक लागोंके लाने के पहले बनी हो। अइ ताणियं हि तुट्टा फुट्टइज्ज देव ! अइभरियं ।। ६९ ॥