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आषाढ, श्रावण, भाद्रपद वीरनि० सं० २४५६ ]
आचार्यश्री जब जा रहे थे. तब मार्गमें एक गाँवके मैदान में कतिपय कुमार गेंद बल्ला खेल रहे थे । उन की बहुमूल्य गेंद कुऍमें गिर गई। इस कारण से युवक कुएँ के पास आकर अपनी गेंद निकालनेकी चिंता में बैठे थे । वहाँ से निकलते हुए आचार्यश्रीने प्रश्न किया - " कुमारो ! तुम लोग क्या देख रहे हो ?" कुमागे ने अपनी प्यारी बहुमूल्य गेंद की बात निवेदन की । श्राचायश्री ने कहा कि - ' तुम घर से धनुर्बाण । एक यूवक धनुर्बाण ले आया । श्र चार्यश्री ने गोबरयुक्त जलता हुआ घास डाल कर
खींचा और एक बाण गेंदको लगाया, फिर दुमरा वारण पहले बाण में लगाया, तीसरा दूसरे में । इस प्रकार क्रमानुसार बाण लगा कर कुएँ के तल में पडी हुई गेंद को बाहर निकाला है ।
कालकाचार्य
आनंद से हँसते हुए कुमारांने आचार्यश्री की विद्या की प्रशसा की, और घर जाकर अपने अपने पिता श्री
यह बात कह सुनाई। बात फैलने फैलते बादशाहके अर्थात् वहाँ के 'साही' अथवा 'सावी' राजा के
न तक पहुँची । गजाने अपने पुत्रोको भेज कर कालकाचार्यको श्रादरपूर्वक अपने दरबार में बुनाया ।
म र निस दशमें वे रहते थे । उस दशका नाम उन्होंने जाति क • पर स्क्ग्बा था । (दग्बा, मनु० १०-४४) प्राक्न सगकुल (कुल) कहा गया है। वह वस्तुत ठीक है ।
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फोन. लालमप ने वन "दर नीमयुग +नपुर तक इन मागणी (जाही जाओ सब में दिया है।
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सूरिजी ने राजाको आशीर्वाद दिया। साखी राजा आचार्य के कलाचातुर्य प्रसन्न होकर उनको बहुमानपूर्वक अपने पास रक्खा ।
कालकाचार्यन वहाँ रह कर ज्योतिष-निमित्तादि विद्याओ से राजाको चमत्कृत करते हुए बहुत दिन व्यतीत किये।
"शाहनशाही, जो कि शक, अर्थात् मिथियन लोग स्वामी
। उनके पास कालकाचार्य गये थे।" १० ४३ ।
एक दिनकी बात है । इस 'साही' राजाके पास एक दृतने आकर राजाके सामने एक कचाला (कटोरा) छुरा, और एक लेखपत्र रक्खा। राजा पत्रका पढ़ कर स्तब्ध हो गया, उसका चेहरा उतर गया और काला पड़ गया । राजाकी यह स्थिति देख कालकाचार्य बोले "राजन | तुम्हारे स्वामी की भेट आई है, उसको देख कर तुम्हे तो हर्षित होना चाहिये था, परन्तु यहाँ नो विपरीत दिखाई देता है, यह क्या ? आप यकायक स्तव्य क्यों हो गये ?।"
राजा ने उत्तर दिया- 'अहो महापुरुष | आज मुझे मृत्युभयका महान कारण उपस्थित है । हुआ कालकाचार्य बोले- 'किस प्रकार ?"
क्रुद्ध
होकर
"
राजा न कहा - "हमा स्वामीन वृद्ध यह श्राज्ञापत्र लिखा है कि तुम्हारा मस्तक काट कर इस कटोरे में रख कर शीघ्र भेजो। यदि तुमने इस आज्ञा का उल्लघन किया तो तुम्हारे सारं कुटुंब के माथ तुम्हारा क्षय होगा।' यह हुकम मुझ को ही नहीं, किन्तु अन्य समस्त 'माखी' राजाको भी भेजा गया है।"
कालकाचार्य को अपनी कार्यमिद्धिके लिये यह प्रसंग मालूम हुआ । उन्होंने राजाकी हिम्मत दी और कहा कि - 'आप सब इकट्ठे होकर मेरे साथ
अचूक
* प्राकृत मूल कथानकों इस गि.ी हुई गेंद क विषयमें कोर्ट भी चलो । हिन्दुकदेश में चल कर उज्जैनीके गर्दभिन्
- खनी है ।
राजाको उच्छेद कर, उस राज्यका विभाग कर मैं तुम्हें