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________________ 32 न पक्ष सेवाश्रयणेन मुक्तिः कषायमुक्तिः किल मुक्तिरेव ॥" 'मुक्ति न तो केवल दिगम्बर होने में है और न श्वेताम्बर बनने में; न वह कोरे तर्कवाद में रक्खी है और न तत्त्ववाद में ही पाई जाती है; पक्षसेवाका आश्रय लेनेसे भी मुक्ति नहीं मिलती; मुक्ति तो वास्तव में कपायमुक्ति का ही नाम है और इसलिए वह क्रोधमान-माया-लोभादिकसे छुटकारा पाने पर ही मिलती है । ' "आपदां कथितः पन्थाः इन्द्रियाणामसंयमः । तज्जयः संपदां मार्गो येनेष्टं तेन गम्यताम् ॥ ‘आपदाओंका—दुःखोंका - मार्ग है इन्द्रियों का असंयम, और इन्द्रियों को जीतना -- उन्हें अपने वशमें रखना - यह संपदाओं का मुखोंका मार्ग है। तुम्हें इनमें से जो मार्ग इष्ट हो उसी पर चलो - अर्थात दुःख और मुसीबतें चाहते हो तो इन्द्रियोंके गुलाम बने रहो और नहीं तो संयमसे रह कर उन पर विजय प्राप्त करो ।' ― हिन्दी जिसने राग-द्वेष - कामादिक जीते सब जग जान लिया, सब जीवों को मोक्षमार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया । बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा या उसकी स्वाधीन कहो, भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो ॥ - 'युगवीर' + + + अपनी सुधि भूल आप आप ज्योंशुक नभ चाल विसर दुख उपायो, नलिनी लटकायो । - दौलतराम "कन्था ! रणमें जायके किसकी देखें बाट ? साथी तेरे तीन हैं हिया, कटारा, हाथ ॥' + + + + "जो तू देखे अन्धके आगे है एक कूप । तो तेरा "चुप बैठना है, निश्रय रूप ।। " अनेकान्त + + + "मनके हारे हार है मनके जीते जीत।" ܕܕ + + + । प्रबल धैर्य नहीं जिस पास हो, हृदयमें न विवेक निवासहो श्रम हो, नहिंशक्ति विकाशहो, जगतमें वहक्योंननिराशहो । । - 'युगवीर' [ वर्ष १, किर जिनके दिलमें यह यक्तीं' है कि, ख़ुदा खुद हम हैं । यह यक़ीं जानो, वही यादेख़ुदा रखते हैं । - मंगतराय उर्दू X “बहुत ढूँढा मगर उसको न पाया । अगर पाया तो खोज अपना न पाया ।। " + + + सबको दुनियाँ की हविस र ख्वार किये फिरती है । कौन फिरता है ? यह मुर्दार लिये फिरती है । - मंगतराय + + + भागती फिरती थी दुनियाँ जब तलब करते थे हम। हमें नफरत हुई वह बेक़रार आने को है । - स्वामी रामतीर्थ + + + "पर्दे की आर कुछ वजह पहले जहाँ नहीं । दुनियाँ को मुँह दिखाने के क़ाबिल नहीं रहे ||" + + + E इतनी ही दुश्वार अपने ऐब की पहचान है । जिस क़दर करनी मलामत और को आसान है ॥ - 'हाली' आबरू १० क्या है? तमन्नाएवफ़ा ११ में मरना । दीन क्या है? किसी कामिल १३ की परस्तिश १४ करना - 'चकबस्त' फ़रिश्ते से १५ बहतर है इन्सान बनना 1 मगर इसमें पड़ती है मेहनत ज़ियादा || - 'हाली' + + + जब मिटाकर अपनी हस्ती १६ सुर्मा बन जाएगा तू । हलकी निगाहों में समा जाएगा तु ।। - 'दास' + + आगाह अपनी मौत से कोई बशर१९ नहीं । मामान सौ बरस के हैं पलकी ख़बर नहीं | १ विश्वास, २ तृष्णा, 3 खराब, ४ चाह-उच्छा, ५ मातुरअधीर, ६ संसार में ७ योग्य, कठिन, ६ निन्दा, १० इज्जतप्रतिष्ठा, ११ भलाईकी अभिलाषा, कर्तव्य पालन, १२ धर्म, १३ प्राप्तपुरुष, १४ उपासना, १५ देवता, १६ वर्तमान पर्यायका अस्तित्व, १७ दुनिया, १८ जानकार, १६ व्यक्ति,
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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