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________________ ४९८ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८,९, १० हिन्दी उदे-- जोई दिन कटे सोई प्राव में अवश्य घटै, इक खाकके हैं पुतले भारत-सप्त हैं सब । बंद बंद बीते जैसे अंजली को जल है । गर ये अछूत हैं तो हम भी अछूत हैं सब । देह नित छीन होत नैन तंज-हीन होत, x x -'वर्क'। जोबन मलीन हात छीन होन बल है ।। बाक़ी है दिल में शेख के हसरत गनाह' की। आवै जरा नेरी तजै अन्तक अहेरी आवे, काला करेगा मुँह भी जो दाढ़ी सियाह की ।। ' पर भी नजीक जात नर भौ निफल है। ___ x x -'जौक' । मिलकै मिलापी जन पुछत कुशल मेरी, है तजस्सस शर्त याँ मिलने का क्या मिलना नहीं? ऐसी दशा माहीं मित्र! काहे की कुशल है? पर कहीं दुनियाँ में सादिक-श्राश्ना मिलता नहीं । x -'अमीर' ___x x -भूधरदास । यह लिबास हयात५ फानी है । "त जानके भी अनलप्रदीप, पतंग! जाता उसके ममीप। नकशे-बर-आवे-जिन्दगानी है। अहो! नहीं है इसमें अशुद्धिः विनाशकाचे विपरीतबुद्धिः। - -'सौदा'। जो नोको काँटा बवै ताहि बोय त फल । इन्साँ गुहर है इल्मोफन१० उसमें है श्राबोताब१ । नोको फल के फल हैं वाको हैं निरमूल || व-आबरू है आदमी को इल्म गर नहीं। ____ x x -'शेर'।। x x -कबीर । बात सच्ची कही और उंगलियाँ उट्टी सब की। मुर्दा वही कहाना, जो नर पुरपार्थहीन होता है। सच में 'हाली' कोई रुसवाई सी रुसवाई१३ है ।। अथवा भीम, नपुंसक,कायर इत्यादि नाम हैं उसके ।। ___ x x -'हाली' । x x -दरबारीलाल ।। गुर्बतनमीब' हैं हम खुद अपने ही वतन५५ में । चाहत है धन होय किमी विधि नौमब काज मरे जियराजी। जल जाएँ शाख पर जो वे फन हैं चमन ६ में ।। गेह चिनाय करूँगहना कछु,व्याहि सुनासुन बांटिय भाजी।। x x -'बर्क' । चिंतत यौं दिन जाहिं चले,जम आनि अचानक दंत दगाजी। कितने मुफलिस हो गये कितनं तवंगर१८ होगये। ग्वेलतखेल खिलारिगयरहि जाय कपीशनरंजकीबाजी'। खाक में जब मिल गये दोनों बराबर हो गये । ___x x -भधग्दाम । x x -'जौक'। "मक्खी बैठी शहद पै पंव गये लिपटाय । मर्कशा को बारो-दहर में नेकी का फल कहाँ। हाथ मलै श्रम सिर धनै लालच बुरी बलाय ।।" देखा कि मर्व में कभी होता समर नहीं।। x x -'शेर' । "पूत कपत तो क्यों धन मंचै? पन मपूत तोक्योधन मंचै? १२ठा. २ पाप. ३ गोज. ४ सबा मित्र. ' जीवनाला x x x मोर नश्वर ७ जीवनजल पर चित्र-मा है. ८ मनुष्य. । फैले प्रेम परस्पर जगमें, मोह दर पर रहा करे । माती. १० विद्या और कना-कौशल. ११ चमक दमक. १२ वै. अप्रिय-कटुक-कठोर शब्द नहिं कोई मुखस कहा करे। इजत-अप्रतिष्ठित. १३ अवज्ञा प्रतिष्ठा. १४ दीनताको प्राप्त. १ बनकर सब 'यग-वीर' हदयसे देशोन्नति-रत रहा करें। परदेश. १६ बारा-उपक्न. १७ निनि-गीव. १८ मतीर-धनाय. वस्तुस्वरूप विचार खुशी से सब दुख-संकट सहा करें। १६ कारसे सिर ऊँचा किये हुए. २० समयोपकन. २१ पक्ष x x -'यगवीर'। विशेष. २२ फल.
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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