________________
आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, वीरनि०सं०२४५१] क. साहित्य और जैनकवि
४८३ मैकेंजी साहब ने उन से कहा था कि एक मास के इस प्रकार अनेक विषयोंसे सुशोभित होनेसे यह प्रन्थ अंदर कर्णाटक देश की सभी ऐतिहासिक बातों को अधिक उपकारी है । जैन कवियोके चरित्र लिखते ससंग्रह कर यदि हमारे पास लाओगे तो हम तुम्हें बड़ा मय 'कर्णाटक कविचरिते' में भी अनेक स्थानों पर भारी वेतन दिला देंगे। साहब ने कवि को वापिस इस गून्थसे कुछ अंशोका अनुवाद किया गया है। इस भेजते समय लक्ष्मणराय के द्वारा कुंपनी * के पञ्चीस ग्रन्थमें मैसूर राजाओंकी वंशावली भी संग्रहीत है। रुपये भी दिलाये थे। उस समय से कवि इन कथाओं रामकथावतार-यह चंप रूप गन्थ है । इसमें को बराबर संग्रह कर रहा था। परंतु सरदार बहादुर श्राश्वास १६ और श्लोक ६८०० हैं । नागचंद्र कृत 'राअर्थात् मैकेंजी साहब के बहुत दूर चले जाने के मचंद्रचरित' का कथाभाग ही इसमें कुछ विस्तार से कारण कवि उन्हें अपनी इस कृति को अर्पण नहीं कर वर्णित है । उस गन्थसे अनेक पद्य इसमें अनुवादित हैं। सका । इस 'राजावलीकथे' को मैसरके राजा मुम्मड़ि कविने अपने इस ग्रन्थके विषयमें इस प्रकार लिखा कृष्णराजा ओडेयर के आश्रित वैद्यसरि पंडित के है:- 'इस रामकथा को सर्वप्रथम आदिदेव ऋषभप्रोत्साहन से कवि ने शक वर्ष १७६० अर्थात १८३८ में स्वामीके समवसरणमें श्रादि चक्री भरतेश्वरको पुरुलिखा । इनके द्वारा लिखित ग्रन्थों की श्लोकसंख्या परमेश्वर ने मृदु-मधुर-श्राव्य नव्य-दिव्य भाषामें निरूअनष्टप छन्द में २५००० होती है। राजावलीकथे को पण किया । परम्परा तीर्थसंतानसे चली आई उसी मुम्मड़ि कृष्णराजा आंडेयर को समर्पण करने के कथाको पश्चिम तीर्थकर श्रीवर्धमान स्वामीनं सर्वभाषालिये तीन चार साल तक उद्योग करने पर भी कवि स्वभावमे श्रेणिक महामंडलेश्वरको बतलाया। फिर समर्थ नहीं हो सका । अंत का १८४१ में चामराज की गुरुपरम्पगसे व्यक्त उसी कथाको कूचिभट्टारक, नंमहिषी देवी राबे ने इस 'राजावलीकथे' के सार को दिमुनि, कविपरमेष्ठी, रविषेणार्य, वीरसेन, सिद्धमेन,
आमूलागू भले प्रकार से सुन कर तथा संतुष्ट हो कर पद्मनंदी, गुणभद्र, मकलकीनि आदि आचार्यों ने प्र. कवि को वस्त्र-ताम्बलादिस सन्मानित किया,और इस पनी अपनी कृतियों में प्रकट किया । उक्त प्राचार्यों के में मैसूर राजाओं की परम्परा को संग्रह करने के लिये
द्वारा कथित उमी रामकथाको चामुण्डराय, नागचंद्र, कहा । कवि ने उन की आज्ञाका पालन कर इमे उन्हें
माघनंदि मिद्धांनि, कुमुदेंदु, नयसन आदिन अपने अ. ही अर्पण कर दिया।
पने पुराण, रामचरित्र, कुमुदेंदु-रामायण, पुण्यानव
कथामार आदि कृतियोंमें वर्णिन किया। इन्हीं गन्थों राजावलीकथे—यह प्रायः गद्यरूप कृति है;
से 'गमकथासार' को संग्रह कर अभिनव पम्पकी कफिर भी यत्र तत्र इसमें कितने ही श्लोक अथवा पद्य
विताको आदर्श मान कर कर्णाटक भापामें मैंने इम मिलते हैं। इसमें ११ अधिकार हैं । इन अधिकारों में
'आदि रामकथावतार' गन्थ की रचना की है। प्रन्थके जैनमत-संबंधी अनेक इतिहास, अनेक राजाओंके जी
अंतमें इतना और लिखा है कि-' मुनिपति-परम्परा वनचरित्र तथा कतिपय कवियोंके विषय वर्णित हैं।
मे आगत इस कथन को लेकर श्रीमूलसंघ बलात्कार * कम्पनी का अपभ्रंश मालूम होता है।
गणके श्रीमाघनंदी सिद्धांतचक्रवर्ती के पुत्र चतुर्विध