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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ८,९,१० पंप, होन्न, जन्नुग, सुमनोबाण का स्मरण किया है। प्रथम ग्रन्थ 'पूज्यपादचरिते' १७९२ में रचा गया है। ___ 'पूज्यपादचरिते' सांगत्यमें है। इसमें १५ संधियाँ रामकथावतार १७९७ में छह मासके अंदर पूर्ण हुआ।
और १९३२ पद्य हैं। जहाँ तहाँ कुछ वृत्त कंद(छंद) भी सन् १८०४ में पैमाइश करने के लिये मैकेंजी हैं । इसमें पूज्यपादजीका चरित्र बतलाया है । साथ ही, साहब। लक्ष्मणराय के साथ कनकगिरि पहुँचे वहाँ जैन मतानुसार लोकाकार, श्रुतावतरण आदि बातोंका उन्होंने कविसे प्रश्न किया कि आपके पास कोई स्थलभी कथन किया है । ग्रंथावतारमें 'विजयजिन' की स्तु- पुराण है ? उस समय कवि ने स्व-रचित 'पूज्यपाद ति की गई है। तदनन्तर कवि, सिद्ध, सरस्वती, वृष- चरिते' उन्हें सुनाया। उसे सुन कर मैकेंजी साहब भसेनादि गणधर, ज्वालामालिनी, पद्मावती, दशपर्व- कवि को कमरहल्लि में स्थित अपने डेरे पर साथ साथ धर, एकादशांगधारी, कविपरमेष्ठी, समन्तभद्र, सिद्ध- लिवा ले गये और तीन रात उन से कुछ प्राचीन वृत्तां सेन, जिनसन, गणभद्र, गोवर्धन, देवकीर्ति, अकलंक, को सुना। मैकेंजी साहव वहाँ से कलिले, मैसूर, विद्यानंद और भट्टाकलंक इनकी भी स्तुति की गई है। पट्टण,इलिबालआदि स्थानोंमें उन्हें घुमाते हुए नागवाल
१. देवचन्द्र (१७७०-१८,१) तक साथ ले गये । देवचंद्र दो मास तक उनके साथ इन्होंने 'रामकथावतार' तथा 'राजावलीकथे' ना- ही साथ रहे और रात्रि समय में मैकेंजी साहब का मक ग्रंथ लिखे हैं । और 'राजावलीकथे' में यह उ- पूर्व प्रपंच, जातिभेद आदि विषयों को सुनाते रहे । लेख किया है कि-"मैंने पूज्यपादचरिते, सुमेरुशतक, कवि जब तक उनके साथ रहा, तब तक उसे प्रतिदिन यक्षगान,रामकथावतार, भक्तिसारशतकत्रय,शास्त्रसार- एक हण x मैकेंजी साहब से दैनिक खर्च मिलता लघुवृत्ति, प्रवचन-सिद्धान्त, द्रव्यसंग्रह, द्वादशानप्रेक्षा रहा। मैकेंजी साहब कवि से सभी वृत्तों को सुन कर, कथासहित, भ्यानसाम्राज्य, अध्यात्मविचार आदि पं. राज्य के प्रान्तों को विभक्त कर, प्रत्येक गाँवका नक्शा थोंको कर्णाटक तथा संस्कृत भाषामें अति सुलभ शैली तैयार करा कर, जाति, कुल, घर, जन आदि प्रत्येक में लिखा है।" इससे मालूम होता है कि उक्त ग्रंथोंके वस्तु की गणना लिखा कर जब लौटने लगे तब वे कर्ता भी आप ही हैं । इनमेंसे पहलेके चार और शेष कवि को भी अपने साथ ले जाना चाहते थे । परन्तु गन्थों में दो एक कन्नड़के ज्ञात होते हैं । इनका निवास- कवि के अनेक प्रकार कहने-सुनने से तथा उनके स्थान कनकगिरि (मलेपूरु) था । मलेपुरके पार्श्वनाथ धर्मोपध्याय के आगमन से मैकेंजी साहब ने उनके ही इनके कुलदेव हैं। इनके विषयमें राजावलीकथे में द्वारा उक्त सभी पूर्ववृत्तोंको कागज पर लिखा कर और इस प्रकार लिखा है:-इनका पितामह देवचंद्र, पिता कविके 'पूज्यपादचरिते' को अपने पास रख कर उन्हें देवप्प, माता कुसुमाजम्म,भाई चंद्रपार्य और पद्मराज। वापिस भेज दिया। देवचंद्र को वापिस भेजते समय लिखा है कि पनराजने अनेक गन्थ बनाये हैं । कविन देखा, पाराज १७६२ । १७७० में जन्म लिया । और वह अपनी चौदह वर्षकी ।
Colin Mackenzie who conducted the अवस्था से ही करणिकागगण्य ( Best account- Survey of Mysore. ant) कहलाकर कविता बनाने लग गया था। इनका ४ दक्षिण देशका नाण्य (2)भेद ।