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________________ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८,९,१० नामक एक कवि था। फिर भी बहुमत से 'कविराज एवं जैनेतर विद्वानोंको भी इस विषय पर विचार करने मार्ग के लेखक नृपतुङ्ग ही सिद्ध होते हैं । ऐतिहासिक का अच्छा अवसर प्राप्त हो सके। प्रमाणों से सिद्ध हो चुका है कि यह ग्रंथ ईसवी सन् 'कविराजमार्ग' के रचियताने अपनी कृतिमें कनि८१४ से ८७७ तकके मध्यवर्ती समयमें रचा गया है। पय प्राचीन ग्रंथों तथा कवियोंका भी उल्लेख किया है। यही नृपतुङ्ग राजाका राज्यकाल है, जिसका समर्थन परन्तु वे ग्रंथ अभी तक उपलब्ध नहीं हुए हैं । विद्वानों धारवाड़ जिले के सीरूम-शास ( Indian Antiq. का मत है कि कर्णाटकसाहित्यका प्रारम्भ काल इसम Vol.XII, P 216 से होता है । नपतुंगका अमोघ- भी पूर्व कम से कम ई० सन् २०० से ४०० तक था; वर्ष और अतिशयधवल नाम भी था। यह राजा महो- क्योंकि मन् १६०४ में भट्टाकलंक ने अपने 'कर्णाटकदय संस्कृत आदिपुराणके रचयिता भगवजिनसेनाचार्य शब्दानशासन' में लिखा है कि तत्त्वार्थ महाशास्त्रका के शिष्य थे । ऐसा उक्त जिनसनाचार्य के शिष्य गुण- व्याख्यानरूप ९६००० श्लोकपरिमित 'चडामणि भद्र के 'उत्तरपुराण' से जाना जाता है। इनकी गज- नामक एक प्रन्थ कन्नड़ भाषा में रचा गया है । इम धानी मान्यखेटपुर थी। बल्हर साहब का कथन है कि चूड़ामणि ग्रंथके लेखक श्रीवर्धदेव हैं, जिनकी प्रशंसा हैदराबादमें जो मलखेड़ नामक स्थान है वही यह मान्य- महाकवि दण्डीने भी की है । दण्डीका समय छठी खेटपुर है (Indian Antiq To. XII, P.:215). शताव्दी होने से चूड़ामणिके कर्ता श्रीवर्धदेव भी छठी नृपतुंग अमोघवर्षने ६२ वर्ष तक राज्यशासन करके अंत शताब्दि के विद्वान थे । इम के अतिरिक्त पाँचवीं शमें स्वयं ही उमे त्याग दिया था। इनके राज्यत्यागकी ताब्दीमें स्थित गंगगज 'दुर्विनीत' का नाम भी प्राचीन यह बात इन्हीं के द्वारा रचित 'प्रश्नोत्तररत्नमाला' कवियों की श्रेणी में आता है। ग्रंथ से मालूम होती है * । इनका बहुत कुछ वर्णन अब तक भारतवर्षमें संस्कृत,प्राकृत-पालीके अतिकई दिगम्बर जैन संस्कृत ग्रंथोंकी प्रागुक्तियों और रिक्त दूसरी भाषाओं के जो भी ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं प्रशस्तियों में पाया जाता है। परंतु मंजेश्वरम्के प्रसिद्ध उनमें कर्णाटकभाषा-सम्बन्धी 'कविराजमार्ग' नाम ऐतिहासिक लेखक पं० गोविन्द पै जीका कहना है कि की कृति ही प्राचीनतर है । हिन्दी के 'पृथ्वीराजगसी' राजा नृपतुंग जैनी नहीं थे। इस विषय में उनका एक एसा भटाक नक ने माने उक्त शब्दानुशासनमें प्रकट न... विस्तत लेख बेंगलर से प्रकाशित होने वाली प्रख्यात किया। 'इन्द्रनन्दि-श्रतावतार' और 'राजावलिकथे' में इस 'चूड़ामणि' कर्णाटक-साहित्य-परिषत्पत्रिका के वर्ष १२, अंक ४ में टीका का कर्ता 'तुम्बुलूगचार्य' को लिखा है-ग्रन्थपरिमाण भी प्रकाशित हुआ है । अतः इस विषयमें विशेष खोजकी ८४००० दिया है-और श्रवणबेलगोल के ५४ वे शिलालेख में श्रावश्यकता है । मित्रवर पै जीसे हमारा सविशेष अ- श्रीवदव को जिस 'चूडामणि' ग्रन्थका को बतलाया है उस 'सेव्यनरोध है कि श्राप उम लवको काव्य' लिखा है, (वह कोई टीका ग्रन्थ न ) और इससे दोनों ग्रंथ तथा उनके कर्ता भिन्न जान पड़ते हैं-ग्रंथ के माम-साम्य से प्रकाशित करने की कृपा करें, जिससे उत्तरीय जैन दोनोंका का एक मान लेना उचित प्रतीत नहीं होता । इस विषय * विवेकात् त्यक्तराज्येन राज्ञेयं रक्तमालिका। का विशेष जानने के लिये देखो, 'स्वामी समन्तभद्र' पृ०१६० से। रचिताऽमोघवर्षेण सुधिया सदलंकृतिः ।। -सम्पादक
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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