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স্মনাল
[वर्ष १, किरण ८, ९, १० राशि, १८ लग्नभाव, १९ द्रेकाण, २० दृष्ट, २१ अ- शिकारपुर के शिलालेख (९९०) से मालूम होता निष्ट , २२स्त्री जातक, २३ निर्वाण, २४ नष्ट जातक। है कि इन्होंने 'सुकुमारचरित' लिखा है, इसकी एक
__. दिवाकरनन्दि (१०६२) अपूर्ण प्रति हमें मिली है जो बहुत जीर्ण है । इसमें 'नगर' के शिलालेख के ५७ वें पद्य से मालूम गजा सुरदत्त, रानी 'यशोभद्रा' के पुत्र 'सुकुमार' का होता है कि इन्होंने तत्वार्थसत्र पर एक कनड़ी टीका चरित्र लिखा है। इसके प्रत्येक आश्वासके अन्न में लिखी है। इसका नाम 'तत्त्वार्थमृत्रानुगत-कर्णाटक- यह गद्य हैलघवृत्ति' है। मूलकर्ता का नाम गृध्रपिच्छाचार्य इदु समस्तविनयेजनविनमिन-श्रीवर्द्धमान लिखा है । वृत्ति के प्रारंभ में यह श्लोक है। मुनीन्द्रवंद्य-परमजिनेन्द्रश्रीपादपद्मवरप्रसादोत्पनत्वा जिनेश्वरं वीरं वक्ष्ये कर्णाटभापया। नसहनकवीश्वर-श्रीशान्तिनाथ-प्रणीन-सुकुमारतत्त्वार्थसत्रसत्रार्थ मन्दबुद्धयनुरोधतः ॥ चारित्र दोलअन्त में नीचे लिखा हुआ गद्य है
६ वादिकुमुदचन्द्र (ल०११००) "इदु सकलागमसंपन्न-श्रीमचंद्रकीतिभट्टा- उन्होंने 'जिनसंहिता'नामक प्रतिष्ठाकल्प पर कनड़ी रकपअनन्दिसिद्धान्तदेव-श्रीपादप्रसादासादिन- व्याख्यान लिखा है । उसके प्रारंभमें यह श्लोक हैसमस्तसिद्धान्तामृतपारावार-श्रीमदिवाकरणंदिभ- श्रीमाघनन्दिसिद्धान्तचक्रवर्तितन भवः । ट्रारकमुदींद्र-विरचिन-तत्वार्थसत्रानुगतकर्णाटक कुमुदेन्दुरहं वच्मि प्रतिष्ठाकल्पटिप्पणं ।। लघुवत्तियोल-"
और अन्त में लिखा है___इनका 'उभयसिद्धान्तरत्नाकर' विरुद था । इनके
___"इति श्रीमायनंदिसिद्धान्त चक्रवर्तिसुतचतु. गुरु का नाम 'चद्रकीति' भट्टारक था। नगर और सारब के शिलालेखों में इनकी स्तुति की गई है । ये
विधपाण्डित्यचक्रवर्ति-श्रीवादिकुमुदचन्दपण्डितपट्टण के स्वामी 'नोकन' के गरु थे और 'सकल चन्द्र'
देव-विरचिते प्रतिष्ठाकल्पटिप्पणे-" नामक इनका एक शिष्य था।
इससे मालूम होता है कि ये माघनन्दि सिद्धान्त ___५ शान्तिनाथ (१०६८)
चक्रवर्ती क पुत्र थे और 'चतुर्विधपाण्डित्यचक्रवर्ती' की इनके दण्डनाथप्रवर, परमजिनमतांभोजिनीराजहंस, सरस्वतीमुखमुकुर, सहजकवि आदि सम्मान- देवचन्द्र के 'गमकथावतार' (१७१७ ) से मालूम सूचक विशेषण थे । ये 'भवनकमल्ल लक्ष्मण राजा' होता है कि कुमुदचंद्र ने एक गमायण भी लिखी है । (१०६८-७६ ) के मंत्री, 'वर्द्धमान' व्रती के शिष्य. इनका समय लगभग ११०० हाना चाहिए। 'गोबिन्दराज' के पत्र, 'कन्नपार्य के छोटे भाई और बालचन्द्र ने (ल० ११७० ) अपनी तत्त्वार्थतात्पवाग्भूषण 'रेवण' के बड़े भाई थे। इनके उपदेश से यवत्ति' कुमुदचन्द्र भट्टारक को प्रतिबोधित करने के लक्ष्मण राजा ने बलिग्राम में शान्तितीर्थश्वर-चैत्यालय लिए बनाई, ऐसा लिखा है । जान पड़ता है कि वे बनवाया था।
कुमुदचन्द्र भट्टारक इनसे पृथक् हैं ।
पदवी से