________________
४४
अनेकान्त
महाकवि रन्न
[ले०, श्रीयुत् पं० बी० शांतिराजजी शास्त्री ]
यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि, इस पृथ्वीमंडल में जो कुछ भी जैनधर्मका अस्तित्व है उसमें पूर्वाचार्यों द्वारा रचित प्रन्थरत्न ही मुख्य कारण हैं। हमारे पूज्य पूर्वजोंने जिस तरह संस्कृत तथा प्राकृत भाषा ग्रन्थ रचकर जैनधर्मके प्रचारका परिश्रम उठाया है, उसी तरह उन्होंने प्रान्तीय भाषाओं में भी अनेक ग्रन्थरत्न लिखकर जैनधर्म के प्रसारका महान कार्य किया है । कर्णाटक तथा तामील भाषाकी श्रात्मा जैन विद्वानोंकी कृतियाँ ही हैं, और यह कूपमण्डुककी तरह मैं ही नहीं कह रहा हूँ; किन्तु उन भाषाओंके धुरन्धरोंकी भी यही सम्मति है ।
कर्णाटक में जैनधर्मका जो कुछ भी गौरव है उसमें मुख्य कारण कर्णाटकीय जैन विद्वानोंकी कृतियाँ ही हैं । जैन विद्वानोंने इस भाषामें असंख्य अमूल्य ग्रन्थ रचे हैं । यदि जैनसाहित्यको कर्णाटक भाषासे अलग कर दिया जाय तो कर्णाटक भाषाका स्वरूप ही न रहेगा, ऐसी ही सम्मति उस भाषाके जैनेतर विद्वानोंकी है, वास्तवमें कर्णाटक भाषाके कालिदास, तुलसीदास और सूर, जैन विद्वान् ही हैं। और इस बातका खास प्रमाण पम्प, पोन्न तथा रन्नकी जयन्तियाँ हैं, जो कि जैनेतर विद्वानोंने समय समय पर मैसूर तथा धारवाड़ आदि स्थानों पर मनाई हैं। कर्णाटक भाषा के विषयमें ये तीनों कवि रत्नत्रय गिने जाते हैं । पम्पके आदि पराण, पोन के शान्तिनाथपुराण तथा रन्नके अजित -
[वर्ष १, किरण १
नाथपुराणके मर्मज्ञ ही कर्णाटक भाषाके प्रौढ विद्वान गिने जाते हैं। इसी लिये कर्णाटक भाषाकी उच्च कक्षाकी पढ़ाई में जैनप्रन्थोंने ही सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया है ।
कर्णाटक के प्राचीन उद्भट विद्वानोंने प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोगका अतीव सुन्दर सुललित भाषामें वर्णन किया है। गोम्मटसार की टीका भी इस भाषा में उपलब्ध है और उसीके आधार पर संस्कृतटीका लिखी गई है । व्याकरण, छन्द और अलंकारादि की सर्वोत्कृष्ट कृतियाँ भी जैन विद्वानोंकी ही रचना हैं। मैसूर सरकार जैनकृतियों को धीरे धीरे प्रकाशित करा रही है, जो कि एक सन्तोष की बात है ।
कुछ समय पूर्व मैसूर यूनिवर्सिटी में युनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार श्रीयुत श्रीकण्ठय्याजी एम्० ए० बी० एल० की अध्यक्षता में श्री रन्नकविकी जयन्ती मनाई गई थी - कर्णाटक के महान् विद्वानोंने एकत्र होकर रन्न का गुण गान किया था । उसी समय रन्नकृत “गदायुद्ध” नामकी कृतिके अभिनय के द्वारा युनिवर्सिटी के छात्रोंने, रंग भूमिमें दर्शकों के मनोंको मुग्ध कर, आशातीत सफलता प्राप्त की थी, और विमर्शात्मक निबंधोंद्वारा कर्णाटक- जनता पर रन्नकी कृतिका महत्व प्रकट करनेके लिये एक प्रस्ताव भी पास हुआ था ।
तनुसार श्रीयुत श्रीकण्ठय्या एम०ए० बी० एल०, रंगराग एम० ए०, दोरे सामय्यंगार एम० ए० बी०