SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 421
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४४२ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८,९,१० पाने वाले आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक विषयके रचनाका उद्देश्य निरूपणका उद्देश भी मोक्ष के अतिरिक्त दूसरा कुछ कोई भी भारतीय शास्त्रकार जब अपने विषयका भी नहीं । जनदर्शन के शास्त्रभी इसी मार्गका अबलंबन शास्त्र रचता है तब वह अपने विषयनिरूपण के अं कर रचे गये हैं । वाचक उमास्वातिने भी अन्तिम उद्देश तिम उद्देश्यरूप में मोक्ष को ही रखता है; पीछे भले मोक्षका ही रख कर उसकी प्राप्तिका उपाय ४ मिट्ट ही वह विषय अर्थ, काम, ज्योतिष या वैद्यक जैसा करने के लिये स्वयं वर्णनार्थ निश्चित की गई सभी आधिभौतिक दिखाई देता हो अथवा तत्त्वज्ञान और वस्तुओं का वर्णन तत्त्वार्थमें किया है। योग जैसा आध्यात्मिक दिखाई पड़ता हो। सभी मुख्य रचना-शैली मुख्य विषयों के शास्त्रों के प्रारम्भ में उस उस विद्या पहलेसे हो जैन आगमोंकी रचनाशैली बौद्ध पिटके अन्तिम फलस्वरूप मोक्ष का ही निर्देश हुआ है कों जैसी लम्बे वर्णनात्मक सूत्रोंके रूप में चली आती और उस उस शास्त्र के उपसंहार में भी अंत को उस थी और वह प्राकृत भाषा में थी । दूसरी तरफ़ ब्राह्मण विद्या से मोक्षसिद्धि होने का कथन किया गया है। विद्वानों द्वारा संस्कृत भाषा में शुरू की हुई संक्षिप्त वषिकदर्शन का प्रणेता कणाद' अपनी संक्षिप्त ( छोट छोटे ) सूत्रों के रचनेकी शैली धीरे धीरे प्रमेय की चर्चा करने से पहले उस विद्या के निरूपण बहुत ही प्रतिष्ठित हो गई थी। इस शैली ने वाचक उको मोक्ष का साधनरूप बतला कर ही उसमें प्रवतेता मास्वाति को आकर्षित किया और उसी में लिखने की है । न्यायदर्शन का सत्रधार 'गोतम' प्रमाणपद्धति प्रेरणा की । जहाँ तक हम जानते हैं वहाँ तक जैनसंप्रज्ञान को मोक्ष का द्वार मान कर ही उसके निरूपणमें दाय में संस्कृत भाषा में छोटे छोटे सूत्रों के रचयिता प्रवृत्त होता है २ | सांख्यदर्शन का निरूपण करने सबसे पहले उमास्वाति ही हैं। उनके पीछे ही ऐसी वाला भी मोक्ष के उपायभूत ज्ञान की पूर्ति के लिय सत्रशैली जैन परम्परा में अतीव प्रतिष्ठित हुई और अपनी विश्वोत्पत्तिविद्या का वर्णन करता है ३ व्याकरण, अलंकार, आचार, नीति, न्याय आदि अब्रह्ममीमांसा के ब्रह्म और जगत विषय का निरूपण नंक विपयों पर श्वेताम्बर, दिगम्बर दोनों सम्प्रदायके भी मोक्ष के साधनकी पूर्ति के लिये ही है । योगदशन विद्वानों ने उस शैली में संस्कृत भाषाबद्ध ग्रन्थ लिखे । में योगक्रिया और दूसरी बहुत सी प्रासंगिक बातोंका ----- - - ४ वा उमास्वाति की तत्त्वार्थ रचने की कल्पना 'उत्तराध्ययन' वर्णन मात्र मोक्षका उद्देश्य सिद्ध करनेके लिये ही है। र के २ अध्ययन की आभारी है ऐसा जान पड़ता है । इस अध्य भक्तिमागियों के शास्त्र भी, जिनमें जीव, जगत और रन का नाम 'मोक्षमार्ग' है; इस अध्ययन में मोक्ष के मार्गो को ईश्वर आदि विषयोंका वर्णन है, भक्ति की पुष्टिद्वारा सूचित कर उनके विषयरूप से न तत्त्व ज्ञ न का विलकुल संक्षेप में अन्तमें मोक्ष प्राप्त कराने के लिये ही हैं। बोडदर्शन निरूपण किया गया है । इसी वस्तु को वा० उमास्वाति ने विस्तार कर उसमें समग्र आगम के तत्वों को गॅथ दिया है। उन्होंने अपने के क्षणिकवादका अथवा चार आर्यसत्यों में समावेश के सूत्रग्रन्थ का प्रारम्भ भी मोक्षमार्गप्रतिपादक सूत्रसे ही किया है। १ देखा, १, १, ४ कणादसूत्र । २ देखो, १,१, १न्याय- दिगम्बर सम्प्रदाय में तो तत्त्वार्थसूत्र ‘माक्षशास्त्र' के नाम से प्रति सूत्र। ३ देखो, का०२ ईश्वरकृष्णाकृत सांख्यकारिका । प्रसिद्ध है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy