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________________ आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, वीर०सं०२४५६ उमास्वाति का तत्त्वार्थसत्र सा उमास्वातिका तत्त्वार्थसूत्र [लेखक-श्रीमान पं० सुखलालजी] 'शत्त्वार्थसत्र के प्रणेता उमास्वाति' शीर्षक लेख में, जो २ संस्कृत भाषा-काशी, मगध, विहार ' 'अनकान्त' की गत किरण में प्रकाशित हुआ है, आदि प्रदेशों में रहने तथा विचरने के कारण और यद्यपि, उमास्वातिका विचार करते हुए, उनके 'तत्त्वा- कदाचित् ब्राह्मणत्व जाति के कारण वा० उमास्वाति ने र्थसूत्र' का कितना ही परिचय दिया जा चुका है परंतु अपने समय में प्रधानता भोगने वाली संस्कृत भाषाका इस लेख में उसका कुछ विशेष परिचय देना इष्ट है। गहरा अभ्यास किया था। ज्ञानप्राप्ति के लिये प्राकृत इसी से-तत्त्वार्थशास्त्र का बाह्य तथा आभ्यन्तर भाषा के अतिरिक्त संस्कृत भाषा का द्वार ठीक खुलने सविशेष परिचय प्राप्त कराने के लिये-मूल ग्रन्थ कं से संस्कृत भाषा में रचे हुए वैदिक दर्शनसाहित्य और आधार पर नीचे लिखी चार बातों पर विचार किया वौद्ध दशनसाहित्य को जानने का उन्हें अवसर मिला जाता है- १ प्रेरक सामग्री, २ रचना का उद्देश्य, ३ और उम अवसर का यथार्थ उपयोग करके उन्होंने रचनाशैली और ४ विषयवर्णन । अपने ज्ञानभांड प्रेरक सामग्री ३ दशनान्तरों का प्रभाव - संस्कृत भाषाजिस सामग्रीने प्रन्थकार को 'तत्त्वार्थसत्र' लिखने द्वारा उन्हान वैदिक और बौद्ध साहित्य में जो प्रवेश किया, उसके कारण नई नई तत्कालीन रचनाएँ देखी, की प्रेरणा की वह मुख्यरूपसे चार भागों में विभाजित । उनमें से वस्तुएँ तथा विचारसरणियाँ जानी, उन सब की जाती है। का उनके ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा । और इसी प्रभाव १ आगज्ञान का उत्तराधिकार-वैदिक ने उन्हें जैन साहित्य में पहले से स्थान न पाने वाली दर्शनों में वेद की तरह जैनदर्शन में आगम प्रन्थ ही ऐसी मंक्षिप्त दार्शनिक सूत्रशैली तथा संस्कृत भाषा में मुख्य प्रमाण माने जाते हैं. दूसरे ग्रन्थों का प्रामाण्य ग्रन्थ लिखने की प्रेरणा की। आगम का अनुसरण करनेमें ही है। इस आगमज्ञान प्रतिभा-उक्त तीनों हेतुओं के होते हुए का पूर्व परम्परा से चला आया हुआ उत्तराधिकार भी यदि उनमें प्रतिभा न होती तो तत्वार्थ का इस ( वारसा) वाचक उमास्वाति को भले प्रकार मिला स्वरूप में कभी जन्म ही न होता । इससे उक्त तीनों था, इससे सभी आगमिक विषयों का ज्ञान उन्हें स्पष्ट हेतुओं के साथ प्रेरक सामग्री में उनकी प्रतिभा को तथा व्यवस्थित था। स्थान दिये बिना नहीं बनता ।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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