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________________ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ८,५,१० क्रमको बतलाइये ।' तब उस ज्वालिनी देवीने एलाचार्य आर्या छंदों तथा गीतादि छंदोंमें इस ग्रंथकी रचना की जीको मंत्रका माग रहस्य व्याख्या करके ममझाया है। इसमें हेलाचार्यका कहा हुआ अर्थ हीग्रन्थपरावर्तन और फिर भी उनकी भक्तिके वश वह मंत्र उन्हें बतौर (शब्दादिपरिवर्तन) के द्वारा निबद्ध हुआ है । यह ग्रंथ मिद्धविद्याके दे दिया और माथ ही यह कह दिया कि सकल जगतको अपूर्व विस्मयजनक तथा जनसमूह आप होमजपके बिना भी जिस किमीका माधनविधि के लिये हितकारी है। अतः इमको सुनो।' म : यह मंत्र देंगे वह भी मिद्धविद्य हो जायगा। इस कथनके पिछले दा पा इस प्रकार हैं:और यदि नहीं दोगे तो जो सिद्ध करना चाह वह ग्म क्लिष्टग्रंथं प्राक्तनशास्त्रं तदिति स चमि निधाय । गगीक उद्यानवनमें, जिनमंदिरमें, नदी किनारं,पुलिन पर, गिरिशिग्वर पर अथवा अन्य किमी निर्जन्तुक तनेन्द्रनन्दिमुनिना ललितायोक्त्तगीतायः॥२६॥ स्थान पर स्थित होकर द्रव्यमनमें अधिष्ठितभाव मनके हेलाचार्योक्तार्थ ग्रन्थपगवर्त्तनेन रचितमिदम् । द्वारा एक लक्षप्रमाण मंत्रक जाप कर के और दम सकलजगदेकविम्मयजननं जनहितकरं शृणत।। ७ हजार संख्या प्रमाग होम करके मिद्धिको प्राप्त करें' गमा कहकर वह देवी अपने स्थान को चली गई। इस परिचयमं यह स्पष्ट जाना जाता है कि यह ___ एलाचार्यन तब वहीं बैठे हुए उस दुष्ट ब्रह्मराक्षस शस्त्र और भी अधिक प्राचीन है और इसकी प्रथमसृष्टि का दहनाक्षराक द्वारा दंदह्यमान चिन्तवन करके रात .. हलाचार्य'के द्वारा हुई है, जिन्हें 'एलाचार्य' भी कहते चिल्लाते हुए को निकाल बाहर किया। एक ही भूत हैं । इंद्रनंदिने महज़ भाषादिक अथवा शब्द-छन्दादिकदहनस्वरूप र र र र बीजाक्षरका ध्यान करके जब के परिवर्तन-द्वाग उमं कुछ सरल बना कर यह नुतन ग्रह निर्घाटित हो जाता है तो शेप दम निग्रहांक संस्करण उपस्थित किया है। इमीम ग्रन्थकी सब लिये ऐसा कौनमा ग्रह है जो असाध्य हो ? काईमी मंधियाम गथका विशपण 'हलाचार्यप्रणीताथ' दिया नहीं । अस्तु दवा के आदशमं कम मुनिमहागज तब है, जिसका एक नमूना इस प्रकार है:'चा.लनामन' नामक शास्त्र की रचना की। वह इति हेलाच र्यप्रणीनार्थ श्रीमदिन्द्रनन्दिशास्त्र उनके शिष्य गाङ्गमुनि को प्राप्त हुआ; फिर योगीन्द्रविर्गचितग्रंथसन्दर्भ ज्वालिनीमते मंत्रिक्रमशः नील ग्रोव, गजावाख्य, आया ना तरब्बा लक्षणनिरूपणात्रिकारः प्रथमः। और क्षुल्लक विन्वट्ट को उसकी प्राप्ति हुई ।टम गम्परि- इस मंत्रशास्त्रम , मंत्री, २ गह, ३ मुद्रा, ४ मंडल, पाटीम वह अविच्छिन्न मंप्रदायक द्वारा चना अाया। मा ५ कटनेल, वश्ययंत्र, ७ सुतंत्र, ८ म्नपनविधि, नीराश्रोग तब उसका ज्ञानकन्द पाचार्यको हा। रन्धान जनविधि और साधनविधि नामक दम अधिकार है, जिनी क्रमशः विषयका वर्णन किया गया है। इनमें से अपने पुत्रसमान गादि मुनिको उपदशमहित कुछ का परिचय 'अनेकान्त'की अगली किरणमे दिया 'ज्वालिनीमन' की व्याख्या की। इन दाना मुनियां जायगा,और उनसे पाठकों को कितनीही नईबातेमालम (कन्दपाचार्य और गणनन्दी) को पासम इन्द्र नान्द हांगी और यह समझमें आसकंगा कि मंत्रसाधन करने मुनिने उस शास्त्रका सूत्ररूप (शब्दशः) तथा अर्थ रूप- वालामंत्री कैमा होना चाहिय-कौन इस मंत्रसाधनमे मविशेष अध्ययन किया। प्राक्तनशास्त्र क्लिष्ट प्रन्थ का पात्र तथा कौन अपात्र है,-ग्रहोंक कितनं भेद हैं, है, ऐमाविचार कर उमा दनाद' मुनिने ललिन- कैसे पुरुष-स्त्रियोंको ग्रह लगते हैं और किस ग्रहके ल 'माधनविधिना' पद पर निःमान माधनकोरेगा गर्नम क्या चेष्टा होती है, इत्यादि। निगीदी है। जुगलकिशोर मुग्तार
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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