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________________ वैशाख, ज्येष्ठ, वीरनि०सं०२४५६] तत्त्वार्थसत्रके प्रणेता उमास्वाति ४०५ कंडकंड प्रामके निवासी थे और उमास्वाति विहार में पट्पाहुडकी भमिका भी पढ़वा लीजियेगा ग्रमण करने वाले । रनके संबन्ध की कल्पना भी एक श्रुतसागर ने आशाधरके महाभिषेक की टीका नरहसे असंभव है। संवत १५८२ में समाप्त की है। अतएव ये विक्रमकी सोलश्रतावतार, आदिपुराण, हरिवंशपराण, जम्बुद्वीप- हवीं शताब्दीक हैं। तत्वार्थकी वत्तिके और षट्पाहुडका पजनि आदि प्राचीन ग्रंथोंमें जो प्राचीन आचार्य परं- तथा यशम्तिल कटीकाके कर्ता भी यही हैं । दूसरे श्रुतपग दी हुई है उसमें उमास्वाति का बिलकुल उल्लेख मागर के विषय में मुझे मालम नहीं।" नहीं है । श्रुतावतारमें कुन्दकुन्द का उल्लोव है और उन्हें एक बड़ा टीकाकार बतलाया है परंतु उनकं आगे मुख्तार जगलाकशारजाका पत्र या पीछे उमास्वाति का कोई उल्लेख नहीं है । इंद्रनन्दि "आपके प्रश्नों का मैं सरसरी तौर से कुछ उत्तर का श्रुतावतार यद्यपि बहुत पुराना नहीं है फिर भी दिये देता हूँ :iगमा जान पड़ता है कि, वह किमी प्राचीन ग्चनाका १ अभी तक जो दिगम्बर पट्टालियाँ गन्थादिकों रूपान्तर है और इस दृष्टिसे उसका कथन प्रमाग को- में दी हुई गर्वावलियोंमे भिन्न उपलब्ध हुई हैं ने प्रायः टिका है। 'दर्शनसार ९९० संवत का बनाया हुआ है, विक्रमकी १२वीं शताब्दी के बाद की बनी हुई जान उसमें पद्मनन्दी या कुन्दकुन्द का उल्लेख है परंतु उमा- पडती हैं, मा कहना ठीक होगा। उनमें सबसे परानी म्बाति का नहीं । जिनसेनके ममय गजवार्तिक और कौनमी है और वह कबकी बनी हुई है, इस विषयम नांकवार्तिक बन चके थे, परंतु उन्होंने भी बीसों में इस समय कुछ नहीं कह मकता। अधिकांश पट्टाआचार्यों और ग्रन्थकर्ताओं की प्रशंसा प्रमंगमें उमा- वलियों पर निर्माणके ममयादिका कुछ उन्लेग्य नहीं है म्वाति का उल्लेख * परंपग का नहीं समझते थे । एक और मा भी अनभव होता है कि किमी किमी में बात और है आदिपराण, हरिवंशपराग आदिके अंतिम आदि कुछ भाग पीन्द्रग भी शामिल हुआ हैx कतोओंने कुन्दकुन्द का भी उल्लेख नहीं किया है. यह कन्दकन्द तथा उमाम्बातिक संबंध वाल कितने ही एक विचारणीय बात है। शिलालम्ब तथा प्रशाम्तयाँ है परंतु वे सब इम ममय मरी समझमें कन्दकन्द एक वाम आम्नाय या म सामने नहीं हैं। हाँ, श्रवणबेन्गाल के जैन सम्प्रदायके प्रवर्तक थे । इन्होंने जैन-धर्म को वदान्तकं लग्यांका मंगह दम ममय मेरे मामन है, जो माणिकमाँचेमें ढाला था ? जान पड़ता है कि जिनमेन आदि चंदगन्यमाला का २८ वा गन्थ है । इसमें ४०.४२, के समय तक उनका मत सर्वमान्य नहीं हुआ और १३, १७, १८, १०५ और १५८ नंबर के शिलालेग्य मी लिये उनके प्रति उन्हें कोई आदर भाव नहीं था। दोनोंक उल्लेख तथा मम्बंधको लिये हप हैं। पहले पाँचलेग्वों "तत्त्वार्थशास्त्रका गपिन्छापलक्षिम मतदन्वय पदके द्वारा और नं.१०८ में 'वंश नदीय' यादि श्लोक मालम नहीं कहाँका है और कितना गना पाक द्वारा माम्बानिको कदकुंद के वंशम लिया है। है ? तत्वार्थसत्रकी मूल प्रनियांम यह पाया जाना है। प्रकृत वाक्यांका उल्लंग्य 'म्वामी मगन्नभद्र' के १८१५८ कहीं कहीं कुन्दकुन्दको भीगद्धपिच्छ लिखा है। गद्धपिच्छ पर फटनांट में भी किया गया है। इनमें मवम पगना नामक एक और भी आचार्यका उल्लंख है । जनहितेपी शिलालेग्न नं. १७ है, जो शक मं.१.३, कालिावा भाग १० पृष्ठ ३६९ और भाग १५ अंक ६कं कुन्दकुन्द- हुआ है। सम्बंधी लेख पढ़वा कर देख लीजियेगा। ४ उत्तरका यह भाग पहले पत्र (ता.३१-७-२६. ) में दिये * यहां पर कुछ अंश दनेसे छुट गया मालूम होता है। हुए एक दूसरे ही प्रश्न नं.१ मे मम्बन्ला ग्वता है, जिसे उक्त प्रश्नां -सम्पादक में शामिल नहीं किया गया । सम्पादक
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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