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________________ वैशाख, ज्येष्ठ, वीरनि०सं० २४५६] तत्त्वार्थसूत्रके प्रणेता उमास्वाति २८७ होगी, यह एक आश्चर्यकारक समस्या है । परन्तु जब थे, वाचनास अर्थात् विद्यापहणकी दृष्टि से जिसके पूर्वकालीन साम्प्रदायिक व्यामोह और ऐतिहासिक गुरु मूल नामक वाचकाचार्य और प्रगुरु महावाचक दृष्टि के अभाव की तरफ ध्यान जाता है तो यह मुन्डपाद थे, जो गोत्रसे कोभीषणि था, और जो ममस्या हल हो जाती है । वा० उमास्वातिके इतिहास. स्वाति पिता और वाली माताका पुत्र था, जिसका विषय में उनकी खुद की रची हुई छ टीसी प्रशस्ति जन्म न्यग्रोधिका में हुआ था और जो उच्चनागर ही एक सच्चा साधन है । उनके नाम के साथ जोड़ी शाखा का था, उस उमास्वाति वाचक ने गुरुपरम्परा हुई दूसरी बहुत मी हक़ीक़तें. दोनों सम्प्रदायों की से प्राप्त हुए श्रेष्ठ आईत उपदेशको भले प्रकार धारण परम्परा में चली आती हैं, परन्तु वे सब अभी परी- करके तथा तुच्छ शास्त्रों द्वारा हतबुद्धि दुःखित लोकका तणीय होने से उन्हें अक्षरशः ठीक नहीं माना जा सकता। उनकी वह संक्षिप्त प्रशस्ति और उसका ८ 'उच्चनगर शाखाका प्राकृत 'उद्यानागर' ऐसा नाम मिलता है। यह शाखा किपी ग्राम या शहर के नाम परमे प्रसिद्ध हूई सार इस प्रकार है: होगी ऐसा तो भले प्रकार दीख पड़ता है । परन्तु यह ग्राम कोनस वाचकमुख्यस्य शिवश्रियःप्रकाशयशस:पशिष्येण। नगर होगा यह निश्चित करना कठिन है । हिन्दुस्तानके भनेक भागा शिष्यग घोषनन्दितमणस्यैकादांगविक्षः । ॥ में नगर नामके या जिनके अन्तमें नगर नाम हो ऐमे नामोंके भनेक वाचनया च महावाचकक्षमणमुण्डपादशिष्यस्य । , वाचनया च महावा , शहर तथा ग्राम हैं। 'बड़नगर' यह गुजरात का पुराना तथा प्रसिद्ध नगर है । बड़का अर्थ मोटा (विशाल) और मोटा अर्थत कदाचित शिष्येण वाचकाचार्यमूलनाम्नः प्रथितकीर्तेः॥२॥ चा ऐसा भी अर्थ होता है। लेकित बनगा यह नाम भी पूर्वदे। न्यग्रोधिका प्रसतेन विहरता परवरे कुममनाम्नि । के उस अथवा उस जैसे नामके शहर पर मे गुजरात में लिया कोभीषणिनास्वातितनयेन वात्सीसतेनाय॑म ॥३ गया है, ऐसी भी विद्वानों की कल्पना है । इससे उच्चनागर शाखाका बड़नगरक माथ ही मम्बन्ध है ऐसा जोर देकर नहीं कहा जा सकता। इसके सिवाय, जिस काल में उच्चनागर शाखा उत्पन्न ई उस काल में बडनगर था कि नहीं और था तो उसके साथ जैनियों का सम्बन्ध कितना था यह भी विचारने की बात है। उचनागर शाखा के उद्भवसमय का जैनाचार्यो का मन्य विहार गगा यमुना की तरफ होने के प्रमाण मिलते है । इसमे बननगर के माथ उच्चनागर शाखा का यस्तत्त्वाधिगमाख्यं ज्ञास्यति चरिष्यते चनत्रोक्तम बनाने की कन्पना सबल नहीं रहती । कनिंघम इस विषय में लिखता है कि "यह भौगोलिक नाम उत्त पश्चिम प्रान्तके माधुनिक बुलन्दशहर के अन्तर्गत 'उन्छनगर' नामके किले के माथ मिलता क्षमण थे और प्रगरु-गुरुके गुरु-वाचकमुख्य शिवश्री वोल्यूम १४, पृष्ट १४७ । हमा है।" देखा, भाकियोलाजिकल सर्व माफ इंडिया रिपोर्ट (७) जैसे कि दिगम्बरों में गृद्धपिच्छ, बलाकपिच्छ * प्रादि तथा नागरोत्पत्ति क निबन्धौ ए... मानाकर नागर गन्द का श्वेताम्बरों में पूर्वविन् , पांचसौ ग्रन्थोंका रचयिता आदि। सम्बध दिखलाते हुए नगर नाम के अनेक ग्रामोंका नंगख करते हैं । [*दिगम्बर साहित्यमें उमास्वातिको 'बलाकपिच्छ' नहीं लिखा: हा इससे यह भी विचारकी सामग्री में पाता है। दवा की गजगतः उनके शिष्यका नाम बलाकपिच्छ जल दिया है। -मम्पादक साहित्यपरिषद की रिपोर्ट । f
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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