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________________ ३६८ अनेकान्त सिन्दूर-वाला [मूल लेखक - श्री रवीन्द्रनाथजी मैत्र, अनुवादक - श्री धन्यकुमारजी जैन ] (?) की फसल बोकर निधिराम कलकत्तं आता, और वर्षा शुरू होने ही देश लौट जाता। इन है महीना गंमै रोज देखता कि एकचक्षु निधिराम पाठक सिर पराज रंगकी एक छोटीसी पेटी लादे श्रावाज लगाता जा है - "चीना सिन्दूर लेउ, चीना सिन्द्र-कर " और उसके पीछे नंग-धड़ंगे लड़कोक कुंड के झुंड व न्दावन-लेनकी नींद से अलसाती हुई दुपहरीको महमा चौका कर चिल्ला रहे हैं — "काना झीगूर लेड, काना - ॐ र " कब और किस छन्द-यमिक शिशु-कविने मिन्दर बेचने वाले निधिराम के लिए यह अपुर्व स्तुति वारणी पहले-पहले अपने श्रीकण्ठ से निकाली थी, इसे कोई नहीं जानता । शायद स्वयं कविको भी इस बात की सुधि नहीं, लेकिन बहुत दिनों में हर साल नये-नये शिशु कण्ठ एक ही भाषामे - एक ही वाणी में - निधि रामका स्वागत करते आ रहे थे। इस असुन्दर कुरूप म्यागनके लिए निधिराम कभी भी किसी दिन गुस्सा नहीं हुआ, बल्कि देखा गया है कि प्रत्युत्तर में झीगुर जैसी भावाज देकर उसने अपने बच्चे-साथियोंको उलटा बुश ही किया है। वर्ष १, किरण ६, ७ बीस बर्षसे इसी तरह चला आ रहा था। यकायक एक दिन इस नियमका व्यतिक्रम देखकर निधिरामको बड़ा आश्चर्य हुआ। गली में एक जगह कुछ बच्चे इक होकर खेल रहे थे । निधिरामने वहाँ आकर ऊँचे स्वरमं श्रावाज दी -- "चीना सिन्द्र र लेउ, चीना सिन्दृ-ऊर दूरसे दो-एक कण्ठसे परिचित प्रतिध्वनि सुनाई तो दी. लेकिन रोजकी तरह वह जमी नहीं ठीकसं । बच्चाका झुण्ड किसी एक को घेर कर बड़ी मात्र पानी और विनयके साथ चुपचाप खड़ा हुआ उसकी बातें सुन रहा था। निधिराम पास आकर खड़ा हा गया । बात कह रही थी एक लड़की। अपनी नीलाम्बरी साड़ीका आँचल कमरसे लपेट कर हाथ हिलाती हुई वह इस बातको प्रमाणित कर रही थी कि कानको काना और लंगड़े- लूलेको लंगड़ा-लृला नहीं कहना चा हिए, और अगर कोई कहंगा, तो उसके साथ वक्ताक जिन्दगी भर के लिए खट्टी ( शायद असहयोग १ ) हा जायगी; और गुड्डा-गुड्डियोके ब्याह में वह उसे कभी भी न्योता न देगी। समाज व्यूति (या जाति-वहिष्कार)के कठोर दण्डके डरसे, परिचित कण्ठ-ध्वनि सुनकर भी, बच्चों का कुण्ड आज्ञ चुप था, -निधिराम इस बात को समझ गया और वक्ताको एक बार स्वृत्र गौरसे देख वह चुपचाप वहाँ से चल दिया । शामको लौटते वक्त गलीकी मोड़ पर नीले मकान के दरवाजे पर दुपहरीकी शिशु-सभाकी इस नेत्रीके
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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