________________
बैशाख, ज्येष्ठ, वीरनि० सं०२४५६]
जैनधर्मका अहिंसा-तत्त्व
३५२
जैनधर्मका अहिंसा-तत्त्व
[लेखक-श्री० मुनि जिनविजयजी ]
नधर्म के सभी 'आचार' और 'विचार' एकमात्र को समझने के लिए बहुत ही थोड़े मनप्योंने प्रयत्न
हिंसा' के तत्त्व पर रचे गये हैं। यों तो भारत किया है। जैनधर्मकी इस अहिंसाके बारेमें लोगोंमें के ब्राह्मण, बौद्ध आदि सभी प्रसिद्ध धर्मोन अहिंसाको बड़ी अज्ञानता और बेसमझी फैली हुई है। कोई इसे 'परम धरम' माना है और सभी ऋषि, मुनि, साधु, अव्यवहार्य बतलाता है, कोई इसे अनाचरणीय बतमंत इत्यादि उपदेष्टाोंने अहिंसाका महत्त्व और उपा- लाता है, कोई इसे आत्मघातिनी कहता है और कोई दयत्व बतलाया है, तथापि इस तत्त्वको जितना विस्तृत, राष्ट्र नाशिनी कहता है। कोई कहता है कि जैनधर्मकी जितना सुक्ष्म, जितना गहन और जितना आचरणीय अहिंसा ने देशको पराधीन बना दिया और कोई जैनधर्मने बनाया है, उतना अन्य किसीने नहीं। जैन- कहता है कि इसने प्रजाको निर्वीर्य बना दिया है। धर्मकं प्रवर्तकोंने अहिंसा-तत्त्व ............................... इस प्रकार जेनी अहिंसा कोचरमसीमा तक पहुँचादिया : यह लेख श्वेताम्बर जैनममाजके एक प्र- बारमें अनेक मनुष्यों के अनेक है। उन्होंने केवल अहिंसाका : सिद्ध विद्वानका लिखा हुआ है, जो कुछ ममय : कुविचार सुनाई देते हैं । कुछ कथनमात्रहीनहीं किया बल्कि : पहले 'महावीर' पत्रमें प्रकट हुआ था। इससे : वर्ष पहले देशभक्त पंजाब उसका आचरण भी वैसाही : जैनोंके अहिंमा-तत्त्व पर कितना ही प्रकाश : शरी लालाजी तकने भी एक करदिखाया है। औरऔर धर्मों : पड़ता है, और इसलिये इमं भी अहिन्साके ऐसा ही भ्रमात्मक विचार का अन्सिा-तस्व केवल का-: माचित विचागर्थ अाज अनेकान्न-पाठकोंक : प्रकाशित कराया था, जिसमें यिक बनकररह गया है, परन्तु : सामने प्रस्तुत किया जाता है। -मम्पादक : महात्मा गांधीजी द्वारा प्रचाजैनधर्मकाअहिंसातत्त्व-उससे .....
.............. रित अहिंसाके तत्वका विरोध कुछ आगे बढ़कर वाचिक और मानसिकमे भी परे-- किया गया था, और फिर जिसका समाधायक उन
आत्मिकरूप बन गया है। औरोंकी अहिंसाकी मर्यादा स्वयं महात्माजीने दिया था। लालाजी जैमें गहरे मनुष्य, और उससे ज्यादह हुआ तो पशु-पक्षीके जगन् विद्वान और प्रसिद्ध देशनायक होकर तथा जैन माधनक जाकर समाप्त हो जाती है परन्तु जैनी अहिंसा ओंका पूग (?) परिचय रखकर भी जब इस अहिमाकी कोई मर्यादा ही नहीं है । उसकी मर्यादामें सारी विषयमें वैसे प्रान्तविचार रख सकते हैं, तो फिर मचराचर जीव-जातिसमाजाती है औरतोभी बहदैसी अन्य साधारण मनुष्योंकी तो बात ही क्या कही जाय। ही भमित रहती है । वह विश्वकी तरह अमर्याद-अ. हाल ही में, कुछ दिन पहले, जी.के. नरीमान नामक एक नन्त-है और आकाशकी तरह मर्व-पदार्थ-व्यापिनी है। पारसी विद्वानने महात्मा गांधीजीको मम्मोधन कर
परन्तु जैनधर्मके इस महन तत्वके यथार्थ रहस्य एक लेख लिया है, जिसमें उन्होंने जैनोंकी भर्तिमाके