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________________ वैशाख,ज्येष्ठ, वीरनि०सं० २४५६] मुनि जिनविजयजीका पत्र मुनि जिनविजयजी का पत्र और हिमवत-थेरावली के जाली होने की सूचना GRPAN पटना. ना. ता०१२-४-३० श्रीमान् बाबू जगलकिशोरजी की सेवा में हुए लेखका पाठ और विवरण दिया गया है उसी मादर जयजिनेन्द्र-पूर्वक विदित हो कि-मैं कुछ दिनोंसे किताबको पढ़ कर, उस पर से यह थेरावलि का वर्णन इधर पाया हुआ हूँ । अहमदाबादसे प्राते हुए रास्तेमें बना लिया है । उस कल्पक को भीजायसवालजी के एक दो रोज दिल्ली ठहर कर आपके साथ सत्समागम पाठकी कोई कल्पना नहीं हुई थी इस लिये उस कल्पक का लाभ उठाने की खास इच्छा थी परंतु संयोगवश की थेरावली अप-टू-डेट नहीं बन सकी। खैर। ऐसी वैमा न हो सका। रीति हमारे यहाँ बहुत प्राचीन कालसे चली आ रही है। यहाँ पर मित्रवर श्रीयुत काशीप्रसादजी जायस- इससे इसमें हमें कोई पाश्चर्य पानेकी बात नहीं। वाल से समागम हुआ और उन्होंने अनेकान्तमें पाये आप जान कर प्रमान होंगे कि वारवेलके लेखका हुए खारवेल के लेखोंके विषयमें चर्चा की । जिसमें पुनर्वाचनहम दोनों-मैं और विद्यावारिधि जायसवाल म्वास तौर पर उस लेखके बारेमें विशेष चर्चा हुई जी-साथ मिल कर, हाल में फिर यहाँ पर बहुत परिजिसमें हिमवन्त-थेरावलि के आधार पर कुछ बातें श्रमके साथ कर रहे हैं । यहाँ पर-पटने के म्युजियम लिखी गई हैं । यह थेरावली अहमदाबादमें पण्डित- में इस लेखके सब साधन उपस्थित हैं। सरकार मा. प्रवर श्रीसुखलालजीके प्रबन्धसे हमारे पास पागई थी किंमो लाजिकल डिपार्टमेंटकी तरफमे भाज वक और उसका हमने खूब सुक्ष्मताके माथ वाचन किया। जो जो प्रयत्न इस लेख के संशोधन और मंरक्षण की पढ़ने के माथ ही हमें वह साग ही ग्रन्थ बनावटी रश्मि किये गये उन मबका फलस्वरूप माहित्य यहाँ पालम हो गया और किसने और कम यह गढ़ हाला पर सुरक्षित है । श्रीमान जायसवालजीकी अपनहाथमें उमका भी कुछ हाल मालम हो गया । इन बातों के ली हुई लेखकी असली छापे, और और पुराविदोंकी विशेष उल्लेखकी मैं अभी आवश्यकता नहीं समझता। ली हुई प्रतिकृतियाँ मौर.विलायती मिट्टी पर लियाहुमा मिर्फ इतना ही कह देना उचित होगा कि हिमवन्त- अमूल्य कास्ट इत्यादि सब साधनों.को मामनं रखकर रावलिक कल्पकने, खारवेल के लेखबाली जो किताब पाठकी वाचना को जारही है। रोग४-५ घंटे में, जा. हमारी (प्राचीन जैनलेखसंग्रह प्रथम भाग) पाई यसवालजी और कमेर न्युजियमके क्युरेटर रायमादित ई है और जिममें पं० भगवानलाल निजी के पदे घोषबड़े पैगें बारवेल की एम महालिपिके एक एक
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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