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________________ वैशाख, ज्येष्ठ, बीरनि०सं०२४५६] राजा खारवेल और हिमवन्त थेरावली प्रभवित अथवा अशक्य नहीं है। इस विषयमें अवश्य विचारणीय है। यद्यपि इनके सत्तासमयके विद्वान संपादकजी ने भी फुटनोटमें अच्छा खुलासा संबन्धमें श्वेताम्बर और दिगम्बर प्रन्यकार एक मत नहीं कर दिया है जो विद्वानोंके पढ़ने योग्य है । इसी हैं, दिगम्बर संप्रदाय के विद्वान इनको कुन्दकुन्दाचार्यक फिकरेमें लेखक महाशय लिखते हैं कि "इन प्राचार्यों बादमें हुमा मानते हैं तब श्वेताम्बर संप्रदायकी को थेरावली भी दिगम्बर (जिनकल्पी) प्रकट करती पट्टावलियाँ इनको उपर्युक्त श्यामाचार्य के गुरु है। रही बात सवत्र साधुओंकी, सो थेरावलीमें ये अथवा पुरोगामी और पलिस्सह के शिष्य 'स्वाति' मुस्थित, सप्रतिबद्ध, उमास्वाति व श्यामाचार्य प्रभृति प्राचार्य से अभिम मानती हैं । नन्दी घेरावली के बताए हैं। इनमें से पहले दो इस सभामें शामिल नहीं "हारिमगुत्तं साईच वंदमौ हारिमं च सामज" इस हो सकते, यह हम देख चुके । रहे शेष दो, सो ये भी गाथार्धमें बताये हुए स्वाति भाचार्य ही यदि हिमवंत उक्त समामें नहीं पहुँच सकते,क्योंकि उमास्वाति इस थेरावलीके उमास्वाति हैं तब तो उनका वारवेल की घटनाके कई शताब्दी बाद हुए हैं और श्यामाचार्य मभामें शामिल होना कुछ भी आश्चर्यकी बात नहीं है, उनसे भी पीछेके प्राचार्य मालूम होते हैं । अतः थंग. पर इस मंबन्धमें अभी कुछ भी निधित नहीं कहा जा बलीका यह वक्तव्य प्रामाणिक नहीं है।" सकता। श्वेताम्बरीय युगप्रधानपट्टावलियों में एक घेरावली इन देवाचार्य प्रभृति को जिनकल्पी प्रकट और भी उमास्वाति वाचक वीरनिर्वाणसे १११५ के करती है यही तो इसकी प्राचीनताका द्योतक है, यदि आस पासके समयमें हुए बतलाए हैं, आश्चर्य नहीं यह भर्वाचीन कालकी रचना होतीतो दूसरी श्वेताम्ब- कि उमाम्वाति नामके प्राचार्य दो हुए हों और पिछले रीय पट्टावलियोंकी तरह इसमें भी देवाचार्य, बोधि- ममयमें इन दोनोंका अभेद मान लेनेमे यह गहर लिंग, धर्मसेन प्रमुख प्राचार्यों का उल्लेख नहीं होता। उत्पन्न हो गई हो । कुछ भी हो, पर इमसे हिमवन्तरा___ सुस्थित-सूप्रतिबद्धि का ममय निर्वाणसे २५५ में बलीकी प्रामाणिकना कभी मिट नहीं हो सकती। ३२७ पर्यन्त था इस वास्ने इनका खारवेल द्वारा अपनी नमाम लीलों की वृष्टि करनेके बाद वाप प्रस्तुत सभामें शामिल होना किसी तरह अमंगत नही जी ने न्यारवेल के. शके विषयमें अपना अभिप्राय है, यह बात पहिले कही जा चुकी है। उमास्वाति और निश्चित किया है कि 'बाग्वेल सिरि 'ऐल' वंशंका श्यामाचार्यमें मे श्यामाचार्य तो म्वारवेलके ममका- पप था । इम निर्णयमें बारवेल के हाथीगफा वाले लीन थे इसमें कुछ भी शंका नहीं है। क्योंकि श्वे- लेख का ऐरेन' इस शम और जैन हरिवंशम दी नाम्बर जैन पट्टावलियोंमें श्यामाचार्य के यगप्रधानन्य दुई 'ऐलेय' गजा की कथा को प्राधार भत माना है. कालका प्रारंभ नि०म०३३५से माना गया है और जिम पर यह कल्पना भी निर्मूल है, इसका स्पष्ट खुलासा समय उन्हें यगप्रधानका पद मिला उस समय उनको अन्तिम फटनोटमें विद्वान संपादकजी ने ही कर दिया दीक्षा लिए ३५ वर्ष हो चुके थे.इस पास्ते श्यामाचार्य है। इस संबन्धमें यहाँ सिर्फ इतना ही कल्ला पर्याप के सारवेल की समामें शामिल होनेमें कोई विरोध होगा कि प्राचीन समयकी पूर्वदेगीय भाषायोंमें "" नहीं रही मास्वाति की बात, सो यह पान का"" होने का विधान को अवश्य वापर ""
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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