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________________ ३४८ अनेकान्त वर्ष १ किरण ६. . गच्चकी मेमतुंगकृत पट्टावली में उल्लेख है। साथ ही, अचल गछकी पहावलीके इस उल्लेख से न केवल वहाँ यह भी लिया है कि 'आर्य सुस्थित-सुप्रतिबुद्ध मारवेल और इन दो स्थविरोंकीसमकालकता ही मिद्ध अधिकतर कलिंग देशमें ही विहार करने थे । परमात है, बल्कि इससे हिमवंत-घेरावली की भी कतिपय बानी भिनुराज,इनका परम भक्त बना हुआ था, और इन का समर्थन होता है। स्थावरयगल के उपदेश में उसने अनेक शासनोमति (९) इस फिकरेमें लेखकका कहना है कि 'एक ना करने वाले धर्म कार्य किय छ । कालग देश में 'शत्रं- देवाचार्य, बद्धिलिंगाचार्य, धर्मसेनाचार्य तथा नक्षत्रा जयावतार' नाम में प्रसिद्ध कुमर पर्वत पर इन्हों ने चार्य श्वेताम्बर नहीं थे, दूसरे ये नितान्त एक दृमर पोटिवारमरिमंत्रा श्रावधान किया था अतएव इनका मभिन्न कालीन होने मे वारवेल की सभा में उनका मुनिगणकीटकशाम्या' उम नाममं प्रसिद्ध हो गया कत्र होना श्रममय है। यह ठीक है कि इन प्राचायाँ या इन दोनों ने अपना नाममुदाय पदिन्न मार का का श्वेताम्बर जैनो की विद्यमान पट्टावलियों में व ममर्पण कर के कमरागार पर अनशन र वीनिवागा नही है. हिमवंत-धंगवलीकारनं भी यह तो lokal म ३२५ वर्ष श्रीननं पर स्वर्गवाम प्रान किया। * ही नही है कि ये स्थविर श्वेताम्बर-मंप्रदायानुयाया • जिसका माग जर दिया गया है. वह अन्न गच्छकी पहा । आंगवलीकार न नी स्पष्ट मिग्व दिया है कि पानीका मूल पाठ डग प्रकार है श्राचार्य जिनकल्प की तुलना करने वाले थे. आ "चम्पापर्ग. स्तभ्यो सुस्थित-सप्रतिबद्धाभिभो हागिरि की शाम्या के स्थविर थे जो स्वयं भी लिन आप गजन्यकुलममुख्य बातमें पासमंवगी श्रीम- कल्प की तुलना करने । गदि नाम दिगम्बर दाय सुहस्तिनां भाप व्रतं जगहनु प्रागंण कालग- पट्टावालयों में मिलने है ना इम में आपत्ति का दशं विहारं कुर्वनाम्तयास्तत्राय परमाईभिक्षु गज. यात ही क्या है ? इम मे तो उलटा अंगवली के लेम्ब भपाऽतीव भान मंजान । नयापदर्शन नन भिक्षु- काही ममर्थन होता है। अब रही उनके नितान्न राजभपनाने ( कानि ) धर्मकायाग्गि शामनाममये भिन्न कालीन होने की बात, मी यह भी श्रापनि वा. कारनानि ताभ्यां च न कालदेशं शनयावना- विक नहीं जान पड़ती. दिगभ्वरीय प्रन्थोके अनुसार गपरनामश्राम नकारपर्वतापरियानाथाभ्या कोटवार देवाचार्य निर्वाणमे ३१५ वर्ष पीछ दश पूर्वधर बन य मारमन्त्रामधनं कृतम । अनम्तीयपरिवारमुनिः नो इस ममय के पहले भी वे विद्यमान थं इसमें ना गण: 'कोटिकशाम्या' भिधानन प्रसिद्धो बभूव । नौ शका ही क्या है ? , बुद्धिलिग का दशवर्ष पूर्वधरत्व द्वापि भातगे निजपरिवार श्रीमदिन्द्रविनसरिभ्य काल निर्वाणसे २५५ से ३१५ वर्ष तक लिखा है, धर्म ममर्प कुमरगिरावनशनं विधाय श्रीवीरप्रनिर्वाणन सेनाचार्य का समय नि० सं० ३२९ लेखक स्वयं कबूल वर्षषु व्यतिक्रान्तेषु स्वर्ग जग्मतुः । भिक्षुराज करते हैं, नक्षत्राचार्य ३४५ में एकादशांगधारी हुए माने भपेन च तत्रोत्सवं निर्माय नदभिधान लेती हो जाते हैं। तो इसके पहले इनकी विद्यमानना स्वयं भ्नपो काग्निौ।" सिद्ध है। इस दशा में बारवेल द्वारा एकत्र की गई मतगीवाचलगढीय-पावली) मभामें इन पाचार्यों का सम्मिलित होना कुछ भी
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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