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शाख, ज्येष्ठ, वीरनि० सं०२४५६] राजा खारवेल और हिमवन्त रावली
२४५ महाराजा की हैसियत से उन पर हुक्म करता था । सिद्ध होता है कि चेटक विदेहका सत्ताधारी राजा था। यपि काशी और कोशल के राज्य भी उस समय उज्जयनीके चण्डप्रयोत, सिन्ध-सौवीर के उदायन, विदेह राज्यसे सम्मिलित थे पर वहाँ की आन्तरिक वत्स-कौशाम्बीके शतानीक और मगधपति श्रेणिक जैसे शासन-व्यवस्था में विदेहराज का हस्तक्षेप नहीं था। स्वतंत्र सत्ताशाली राजाओं से उसका वैवाहिक संबन्ध अपने राज्यकारोबार में वहां के गणराज्य स्वतंत्र थे। भी यही बता रहा है कि चेटक एक सत्ताशाली गजा था। हाँ. युद्ध जैसे प्रसंगों में वे एक दूसरेकी मदद के लिये लड़ाई के समय 'वजी' जाति का उसके विरुद्ध वाम नियमोंमे बंधे रहते थे, और इसी वजहम उनने कोगिकके पक्षमें मिल जाना भी यही बताता है कि कोणिकके आक्रमणके समय चटकका माथ दिया था। आम पास के गोकी स्वतंत्रतासे प्रभावित होकर ही
चेटक विदेहका परम्परागत गजा था इस बानका वजियन लोगोंने भी चेटकको राज्यधरासे वंचित करने यदापि स्पट उल्लेख हमारे देखने में नहीं पाया. पर टम के लिय मगधपति का पक्ष लिया होगा। इन सब बातो म यह भी निश्चित कैसे मान लिया जाय कि वह पर- कं पयर्यालाचनमे ना यही प्रमाणित होता है कि चेटक परागत राजा नहीं था?, और यह भी कौनमा नियम एक स्वतंत्र-मनावान गजा था | इस हालतम १ कि परम्पगगत राजा हो वही राजा माना जाय और काणिकके माथ की लड़ाईमें रमक पगजित होने पर
मग नहीं ? । लेग्वक महाशय जो यह कहते है कि उसका पुत्र शाभनगज कलिंगके गजा सुलोचनके पांम • चेटक परम्पगगत राजा नहीं था यह बात इतिहास
बाबू कामनाप्रमाद जी ग्वय भी इस विषयमं पहिल मशयामा और स्वयं श्वेताम्बर ग्रंथोंसे सिद्ध है"बिलकुन निगधार किवाली में गगाराज्य था या गजराज्य । इस बातका कछ भी है। नर्कमात्रम कुछ कल्पना करलेना यह इतिहाम नहीं निगाय नही किया जा सकता । नविय इनकी भगवान महाक ' कहा जा सकता। क्या लेग्बक यह बतानकी नकलीफ. नाम पता का निम्न लिग्विन पिका ग्लाएँगे कि चेटक परम्परागत गजा न होना बान ग ममयक अन्य प्रभावशाली राज्य मगधारिभ अपना व किम श्वेताम्बर ग्रंथ लिम्बी अथवा क्या गहक्षिन वने के लिए बहुत मभव है कि इन याने इम का एक
गगाराच्य कायम का लिया हो। किन्न इस विषयमकाई नियामक मी किमी प्राचीन ग्रंध में बना मकन है कि चंटक,
निगायनादिया ना मना बनक. कि. उस जमाने क पौर शानी के नियक्त गष्ट्रपति थं' इस बानका लेग्यर ना मालन न नाच । अनाव भाग न पटक योर ना मिदार्थ चान में पकायें कि किमी प्राधनिक विद्वान के कह देन न किमी पपम बगानी और गदलपरक अधिनि थे। मात्र म चंटक वैशानी के अथवा लिच्छवि यश के म पिनामा प्रगट करने । नियक्त राष्ट्रपति सिद्ध नहीं हो मकन । विदह देश में
भगवान महावीर पृ०६८) गणराज्यकी चर्चा थी इमी आधार पर घंटक को वहाँ पान अब भाप इस लेग्वमें निश्यक माथ लिम्बने है, कि बिह
नाम नाममावाद के स्थान पर प्रकार का पजातवार प. का गणराज अथवा नियन, राष्ट्रपनि मान लेना एक
चलित था। नागारक गधानि नियन। क्या में पई बात है और उसके भंबन्धमें उस वानका माबित करने बाद मास को अब कौन नये प्रमागा मिले, निा प्राधार पर वाले प्रमाण देना बूमरी बात है। बाज नक जोजोबान प्रापन या नियामक निगाय का लिया कि नेम्व नियुक्त पनि चेटक मनन्धमें हमने मोची । न मव में नो यही ।।