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________________ शाख, ज्येष्ठ, पीरनि०सं० २४५६] राजा खारवेल और हिमवन्त थेरावली नहीं मिलता । थेरावली किस प्राचार्य ने किस जमाने बाधित है, जैसा कि आगे चलकर प्रकट होगा ।" में लिखी' इस बात पर ऊहापोह तभी हो सकता है कुछ भी सत्यता नहीं रखता, थेरावली वाली हकीकत कि जब वह मूल थेरावली उपलब्ध हो गई हो । केवल का जैन शास्त्रों से कुछ भी असामजस्य सिद्ध नहीं उमके भाषान्तर के आधार पर यह चर्चा किस प्रकार होता और न जैनेतर साहित्य से ही वह बाधित है, निर्दोषरीत्या चल सकती है ? पर लेखक महोदय जैसा कि आगे चलकर बताया जायगा। जरा धैर्य रक्खें, इन सब पहलुओं पर विचार हो हिमवंत-थेरावली में कंवल खारवेल और उसके जायगा, क्योंकि अब मूल स्थविरावली भी हमारे हस्त- वंश का ही उल्लेख नहीं है, बल्कि उस में श्रेणिक, गत हो गई है। कणिक, उदायी, नन्द और मौर्यवंशके राज्यकी कतिपय अब हम कामताप्रसादजी की उन दलीलों की ज्ञातव्य बातों का भी म्फोट किया गया है, और संप्रति क्रमशः समालोचना करेंगे जो उन्होंने 'हिमवन्त थेरा- के समय में किस प्रकार मौर्य राज्य की दो शाम्बायें वली' की खारवेल-विषयक बातों को अप्रामाणिक और हुई तथा संप्रति के बाद विक्रमादित्य पर्यन्त कौन कौन बाधित सिद्ध करने के लिये अपनी तरफ मे उपस्थित उज्जयनी में राजा हुए, इन सब बातों का संक्षिप्त निर्देश की हैं। इम थेरावली में किया गया है। (१) आपका यह कथन ठीक है कि 'चेटकके वंश (३) लेण्वक की तीसरी दलील यह है कि “गजा का जो परिचय थेरावली में दिया है वह अन्यत्र कहीं चेटक के नाम की अपेक्षा किमी 'चेट' वंशका अस्तित्व नहीं मिलता' पर इससे यह कैमे मान लिया जाय कि इम में पहले के किमी माहित्य प्रन्ध या शिलालेख मे कोई भी बात एकसे अधिक प्रन्थों में न मिलने से ही प्रगट नहीं है। और चेटक का वंश लिपिछवि' प्रमिसु अप्रामाणिक या जाली है ? दिगम्बर संप्रदायके मान्य था।" पन्ध मूलाचार अथवा भगवती आराधना का ही यह ठीक है कि चेटक के नाम में किमी वंश का उदाहरण लीजिये, इन दोनों ग्रंथों में ऐसी अनक बातें अस्तित्व कहीं उल्लिम्विन नहीं दम्बा गया, पर इस बार. है जो दूसरे किसी भी दिगम्बराचार्यकृत प्रन्थों में नहीं वेल के लेम्य और धेगवली के संवाद में यह मानने में मिलतीं, क्या हम पछ मकते हैं कि इन दोनों प्रन्यों क्या आपत्ति है कि हम उलंब में ही चेटक वंश का को अप्रामाणिक अथवा जाली ठहगनका बाबुसाहब अस्तित्व मिद्ध हो रहा है । चेटक की युद्ध निमिनक न कभी साहस किया है ? यदि नहीं, तो फिर क्या मृत्यु हुई, उसकी राजधानी वैशाली का नाश हा कारण है कि किसी बात का प्रन्थान्तरसे ममर्थन न और चेटक के वंशजों का अधिकार विदह राज्य पर में होने की वजह से पाप 'हिमवंत-थेरावली' की अप्रा- उठ जाने के बाद वहाँ गणराज्य हो गया ; इन कारणों माणिक ठहराने के लिये दौड़ पड़े है ? म पिछले समय में चेटक और उसके वंश की अधिक (२) लेखक का यह कथन कि " जो अंश प्रकट प्रसिद्धि न रहने से उस की चर्चा प्रन्थों में न मिलती हुआ है उसका सामजस्य केवल जैन शामों से ही हो तो इस में मशंक होने की क्या जान है ? टीक नहीं बैठता, बल्कि जैनेतर साहित्य से भी वह चेटक बड़ा धर्मी गजा था, उस ने शरणागत की रक्षा
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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