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अनेकान्न
भरी पड़ी है। ईडर से १२ मीलके क़रीब, केशरिया (ऋषभदेव ) को जाते हुए मार्ग में एक भीलोडा प्राम है, वहाँका मंदिर अति विशाल ५२ शिम्बरका केशरि गाके मंदिरसे भी बड़ा है । उसके दर्वाजे पर चार खन
लौनी सकलकीर्ति द्वारा पूतिष्ठित है। इस विषय में यदि अधिक खोज की जाय तो जैनियों की बहुत सी पुरातन कीर्तियों का पता चल सकता है और उसमें जैनियोंकी चीनता ही नहीं किन्तु उनकी व्यापकता, समृद्धिता और लोकमान्यता भी सिद्ध होगी। इसके लिये जैनियों का कर्तव्य है कि वे अपना एक जुदा ही पुरातत्व विभाग खोलें और जो शक्ति इधर उधर अना वश्यक काम में लग रही है उसे धर्म तथा समाजका गौरव कायम रखने वाले और मृतप्राय हृदयों में फिर पाय तथा नवजीवनका संचार कराने वाले ऐसे ठंम काम लगाएँ ।
[ वर्ष १, किरण ५
काम शास्त्रों की रक्षा करना मात्र है, जो भाई उन्हें पढ़ना लिखना चाहें उन्हें बिना उम्र उसी समय देना चाहिये। हाँ, यदि उनके बिगड़ जाने या खोये जानेका भय हो तो बाँचने वालों के पाससे कुछ रकम डिपाज़िट के तौर पर ली जा सकती है या अपने विश्वासी आदमियों की देख रेख में उन्हें पढ़ने अथवा नक्कल करने के लिये दिया जा सकता है, जिससे मूल के सुरक्षित रहने में कोई बाधा उपस्थित न हो। बाकी सुरक्षा का यह अर्थ नहीं है कि ग्रंथ किसी भंडारमें यों ही रक्खा हुआ जीर्ण शीर्ण होता रहे और किसीके भी उपयोगमें न श्रावे किंतु उसका अर्थ है सदुपयोग के साथयथा-स्थान क़ायम रहना । परोपकारी आचार्यांन ग्रंथ सबके हितार्थ निर्माण किए हैं. ऐसा समझ कर उनको प्रकाश में लाना चाहिये ।
इस समय हमारे सौभाग्य से दहली के करोलबाग मे 'समन्तभद्राश्रम' खुल गया है जिसके अधिष्ठाना समाज के सुप्रसिद्ध विद्वान पंडित जुगलकिशोरजी मुख्तार हैं, आप निस्पृह होकर तन-मन-धन से इस कार्यमें कटिबद्ध हुए काम कर रहे हैं और जिन महत्व के कार्योंको आप हाथ में लेना चाहते हैं वे श्राश्रमकी विज्ञप्ति नं: १ में दर्ज हैं। यदि इस आश्रमको पूर्णरीत्या द्रव्यसे तथा अपना समय देकर सहायता पहुँचाई गई तो इसके द्वारा इतिहास - पुरातत्त्व का बहुत कुछ उद्धार हो सकेगा। साथ ही, जैनधर्मका प्राचीन गौरव और उसकी समीचीनता भी भले प्रकार सिद्ध हो सकेंगी। मुख्तार साहबको अन्तरंग से इस विषयकी लगन है और उनके विचार तथा खोजें इस विषय में सराहनीय हैं। आशा है समाज जरूर इस ओर ध्यान देगा और इस आश्रम में ऊँचे पैमाने पर पुरातत्वका एक विभाग खोल कर उसे सब ओर से सफल बनानेका पूर्ण उद्योग करेगा
उसी पुरातत्त्वविभागके द्वारा प्राचीन जैन साहित्य hi खोज और उसके उद्धारका कार्य भी होना चाहिये नागोर, आमेर आदिकं प्राचीन शास्त्रभंडारोको खुलखाना चाहिये । यदि पूबंधक न खोलें तो राज्यकी मदद लेकर खुलवाना चाहिये; क्योंकि जैनशास्त्र भले ही किसी के पाम सुरक्षित रखने के लिए सौंपे गये हों परंतु वे उनकी निजी सम्पत्ति कभी नहीं हो सकते, उन पर उन सभी जैनियों का हक है जो उनका सदुपयोग कर सकते हैं। अर्थात्, वे ग्रंथ जैन पब्लिक की सम्पत्ति हैं जो कोई उनको दबा कर अपना ही स्वामित्व रखते हैं, न दूसरो को दिखलाते हैं और न नक़ल करने देते हैं उन्हें 'ज्ञान- दर्शनावरणीय कर्मों का तीव्र भाव और बन्ध तो होगा ही परंतु वर्तमान में वे पबलिक के अपराधी भी हैं। रक्षक मालिक नहीं होता, वह तो पनलिकका एक अनपेड विश्वासी सेवक होता है। उसके पास शास्त्रोंकी अमानत रक्खी गई, इस लिये उसका
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