SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८२ अनेकान्त [वर्ष १, किरण ५ विना हिंसा नहीं कहला सकती। जो लोग बापल्प के ऊपर भी थोडासा विचार करना है जिसका पालन देख कर ही हिंसा-अहिंसाकी कल्पना कर लेते हैं वे गृहस्थों के द्वारा किया जाता है। भूलते हैं । इस विषयमें भाचार्य अमृतचंद्र की कुछ हिंसाचार प्रकारकी होती है-संकल्पी, पारम्भी, कारिकारें ब्लेखनीय है उद्योगी और विरोधी । विना अपराधके, जान बुझकर, अविषायापि हिहिंसा हिंसाफलभाजनं भवत्येकः। जब किसीजीवके प्राण लिये जाते हैं या उस दुख दिया कस्याप्यपरो हिंसां हिंसाफनभाननं न स्यात् ।। जाता है तो वह मंकल्पी हिंसा कहलाती है, जैसे कसाई एकस्याम्पा हिंसा ददाति काले फलमनम्पम् । पशुवध करता है । माइन-बुहारने में, रोटी बनाने मे, अन्यस्य महाहिंसा खन्पफला भवति परिपाके॥ माने-जाने श्रादि में यत्नाचार रखते हुए भी जो हिंसा कस्यापिदिशति हिंसा हिंसाफलपेकमेव फलकाले होजाती है .वह भारम्भो हिंसा कहलाती है। व्यापार भन्यस्य सैव हिंसा दिशत्यहिंसाफलं विपुलं ॥ आदि कार्य में जो हिंसाहो जाती है उसे उद्योगी हिंसा हिंसाफलमपरस्य तु ददात्यहिंसा तु परिणामे। कहते हैं; जैसे अनाजका ब्यापारी नहीं चाहता कि इतरस्य पुनहिंसा दिशस्यहिंसाफलं नान्यत् ।। अनाज में कीड़े पड़ें और मरें परन्तु प्रयत्न करने पर भवबुध्यहिस्य-सिक-हिंसा-हिंसा फलानि तत्वेन। भी कीड़े पड़ जाते हैं और मर भी जाते हैं । श्रात्मनिस्पषगामानैर्निशक्तप्पा त्यज्यता हिंसा ॥ रक्षा या आत्मीय रक्षा के लिये जो हिंसा की जाती है -पुरुषार्थसिद्धयुपाय। वह विरोधी हिंसा है। 'एक मनुष्य हिंसा (द्रव्यहिंसा) न करके भी हिंसक गृहस्थ स्थावर जीवोंकी हिंसा का त्यागी नहीं है, हो जाता है-अर्थात, हिंसा का फल प्राप्त करता है। सिर्फ त्रस जीवों की हिंसा का त्यागी है। लेकिन त्रस दूसरा मनुष्य हिंसा करके भी हिंसक नहीं होता।। एक जीवों की उपर्यत चार प्रकार की हिंसामेसे बह सिर्फ की थोडीसी हिंसा भी बहुत फल देती है और दूसरेकी संकल्पी हिंसाका त्याग करवाहै।कृषि, युद्धादिमें होने पड़ी भारी हिंसा भी थोड़ा फल देती है। किसी की वाली हिंसासंकल्पी हिंसा नहीं है, इसलिय अहिंसाणुव्रती हिंसा हिंसाका फल देती है और किसीकी अहिंसा ये काम कर सकता है। अहिंसाणुव्रतका निर्दोष पालन हिंसाका फल देती है । हिंस्य (जिसकी हिंसा की जाय) दसरी प्रतिमा में किया जाता है और कृषि भादि का क्या है १ हिंसक कौन है ? हिंसा क्या है? और हिंसा त्याग पाठवीं प्रतिमामें होता है । किसी भी समय जैन काफल क्या है ? इन बातों को अच्छी तरह ममम समाजका प्रत्येक भादमी पाठवी प्रतिमाधारी नहीं हो कर हिंसाका त्याग करना चाहिये ।। सकता । वर्तमान जैनसमाजमें हजार पीछे एक मादमी यहाँ तक सामान्य अहिंसा का विवेचन किया भी मुश्किल से अणुव्रतधारी मिल सकेगा। पाठवीं गया जिसके भीतर महानत भी शामिल है। पाठक प्रविमाधारी तो बहुत ही कम है । जैनियों ने जो कृषि देखेंगे कि इस अहिंसा महानत का स्वरूप भी कितना भादि कार्य बोर रक्खा है वह जैनी होने के कारण व्यापक और म्यवहार्य है। अब हमें चाहिंसा अणुगत नहीं किन्तु व्यापारी होने के कारण छोड़ा है। दक्षिण
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy