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________________ [ वर्ष २, किरण ५ (२) 'ऐप्रिक्रिया कर्णाटिका' की ८ वीं जिल्द में प्रकाशित 'नगर' ताल्लुके ४६ वें शिलालेख में भी 'नमाम्वाति' नाम दिया हैतस्वार्थ सूत्रकर्त्तारमास्वाति मुनीश्वरम् | श्रुतके वलिदेशीयं वन्दे गुणमन्दिरम् ॥ और 'औदार्यचिन्तामणि' नामके व्याकरण प्रन्थ में 'श्रीम. नुमामभुरनन्तरपूज्यपादः इस वाक्यमें आपने 'उमा' के साथ 'प्रभु' शब्द लगाकर और भी साफ तौर मे 'उमास्वामी' नामको सूचित किया है । जान पड़ता है कि 'उमास्वाति' की जगह 'उमास्वामी' यह नाम श्रुत (३) नदी 'गुर्वावली' में भी तत्वार्थसूत्र के सागर सुरिका निर्देश किया हुआ है और उनके समय कर्ताका नाम 'उमास्वाति' दिया है। यथातत्वार्थ सूत्रकर्तृत्वप्रकटीकृत सन्मति : । उमास्वामिपदाचार्यो मिथ्यात्वतिमिराँशुमान । * ही यह हिन्दी भाषा आदिके ग्रन्थोंमें प्रचलित हुआ है। और अब उसका प्रचार इतना बढ़ गया कि कुछ विद्वानों को उसके विषय में बिलकुल ही विपर्यास हो गया है और वे यहाँतक लिखनेका साहस करने लगे है कि तत्त्वार्थसत्र के कर्ताका नाम दिगम्बरोके अनुसार 'उमास्वामी' और श्वेताम्बरोके अनुसार 'उमाम्वाति है। Csc अनेकान्त जैन सिद्धान्त भास्कर की ४थी किरण में प्रकाशित श्रीशुभचन्द्राचार्य की गुर्वावली में भी यही नाम है और वाक्य दिया है। और ये शुभचन्द्राचार्य विक्रम की १६ वीं और १७वीं शताब्दी में हो गये हैं। (४) नन्दकी 'पट्टावली' में भी कुन्दकुन्दाचार्य के बाद छटे नम्बर पर 'उमाम्वाति' नाम ही पाया जाता है । (५) बालचन्द्र मुनिकी बनाई हुई तत्वार्थमत्र की कनडी टीका भी ‘उमास्वाति' नामका ही समर्थन करती है और साथ ही उसमें 'गृधपिच्छाचार्य' नाम भी दिया हुआ है । बालचन्द्र मुनि विक्रमकी १३ वी antare विद्वान | (६) विक्रमकी १६ वी शताब्दी पहले का ऐसा कोई प्रभ्थ अथवा शिलालेख आदि अभी तक मेरे देखने में नहीं आया जिसमें तत्वार्थसूत्र के कर्ताका नाम ‘उमास्वामी’ लिया हो । हाँ, १६ वीं शताब्दी के बने हुए सागर सूरि के प्रन्थों में इस नामका प्रयोग जरूर पाया जाता है। श्रुतसागर सूरिने अपनी श्रुतसागरी टीकामें जगह जगह पर यही (उमास्वामी) नाम दिया है *. खेलो जेनहितैषी भाग ६ अंक ७-८ . (७) मेरी गयमे, जब तक कोई प्रबल प्राचीन प्रमाण इस बातका उपलब्ध न जाय कि १६ वी शताब्दी मे पहले भी 'उमास्वामी' नाम प्रचलित था, नत्र तक यही मानना ठीक होगा कि आचार्य महोदय का असली नाम 'उमास्वाति' था और 'उमास्वामी' यह नाम श्रतसागर सूरिका निर्देश किया हुआ है। यदि किसी विद्वान महाशय के पास इसके विरुद्ध कोई प्रमाण मौज़द हो तो उन्हें कृपाकर उसे प्रकट करना चाहिए । (:. १) तत्वार्थसूत्र की उत्पत्ति उमास्वतिकं तस्वार्थमूत्र पर 'तत्वरत्नप्रदीपिका' हुई है, जिसे तत्वार्थ-तात्पर्य-वृत्ति' भी कहते हैं। इस नाम की एक कनडी टीका बालचन्द्र मुनि की बनाई टीका X की प्रस्तावना तत्त्वार्थसूत्र की उत्पत्ति जिस * देखो तत्वार्थसूत्रके मंजी अनुवादकी प्रस्तावना । x यह टीका धाराके जैनसिद्धान्त भवनमें देवनागरी अजरोंमें मौजद है।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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