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________________ वर्ष १ ॐ अईम् अनेकान्त परमागमस्य बीजं निषिद्ध-जात्यन्ध-सिन्धुर-विधानम् । सकलनय विलसितानां विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ - श्री अमृतचन्द्रसूरिः । समन्तभद्राश्रम, क़रौलबारा, देहली। 'चैत्र, संवत् १९८६ वि०, वीर - निर्वाण सं० २४५६ हृदय की तान [ ले० - पं० दरबारीलाल जी, न्यायतीर्थ ] हृदयमें गूँजे ऐसी तान । न्याय मार्ग से नहीं डरें हम, अनुत्साहको नहीं घरें हम, प्राणिमात्र से प्रेम करें हम, करें देश-उत्थान; हृदय में गूँजे ऐसी तान । दीनोंके सब दुःख दूर हों, कार्य-क्षेत्रमें हम सुशूर हों, अन्यायी के लिये क्रूर हों, रक्खें अपना तान; हृदयमें गूँजे ऐसी तान । कायर-वचन न मुख से बोलें, ज्ञान-सुधारस घट घट घोलें, सत्य- तुला में सब कुछ वोलें, जब तक तनमें प्रान; हृदयमें गूँजे ऐसी तान । निर्बल कहीं न समझे जावें, जगमें कभी न दीन कहावें, विघ्न करोड़ों सिर पर आवें, मेलें सब शुभ आन हृदयमें गूँजे ऐसी खान । vvvvvvvNNNNNNNNN? किरण ५
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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