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अनेकान्त
[वर्ष १, किरण ५ पा रहे हैं। मेवाड़-राजधानी उदयपुरमें भामाशाह के करी जी की मरजाद ठेठसूय्या है म्हाजना की जातम्हे वंशज को पंच पंचायत और अन्य विशेष उपलक्षों में बावनी त्या चौका को जीमण वा सीग पुजा होवे सर्वप्रथम गौरव दिया जाता है । समय के उलट फेर जीन्हे पहेली तलक थारे होतो हो सो अगला नगर अथवा कालचक्र की महिमा से भामाशाह के वंशज सेठ बेणीदास करसो कर्यो पर बेदर्याफत तलक थारं माज मेवाइके दीवानपद पर नहीं हैं और नधन का न्हीं करवा दीदो बारू थारी सालसी दीखी सो नगं बल ही उनके पास रह गया है। इसलियेधन कीपजा कर सेठ पेमचन्द ने हुकम की दो सो वी भी अरज के इस दुर्घट समय में उनकी प्रधानता, धन-शक्ति करी अर न्यात हे हकसर मालम हुई सो अब तलक सम्पन्न उनकी जाति बिरादरी के अन्य लोगों को माफक दसतुरके थे थारो कराय्या जाजो प्राप्त थारा अखरती है । किन्तु उनके पुण्यश्लोक पूर्वज भामाशाह बंस को होवेगा जी के तलक हुवा जावेगा पंचानं बी के नाम का गौरव ही ढाल बनकर उनकी रक्षा कररहा हुकुम करदीय्यो है सौ पेली नलकथारे होवेगा। प्रवाहै । भामाशाह के वंशजों की परम्परागत प्रतिष्ठा की नगी म्हेता सेरसीघ संवत् १९१२ जेठसुद १५ बुधे।"x रक्षा के लिये संवत् १९१२ में तत्सामयिक उदयपराधीश इसका अभिप्राय यही है कि-"भामाशाह के मुख्य महाराणा सरूपसिंह को एक ज्ञापत्र निकालना वंशधर की यह प्रतिष्ठा चली आती रही कि, जब महापड़ा था जिमकी नकल ज्यों की त्यों इस प्रकार है:- जनोंमें समस्त जाति-समुदाय का भोजन आदि होता, ___ "श्री रामोजयति
तब सबसे प्रथम उसके तिलक किया जाता था, परन्तु श्री गणेशजीप्रसादान् श्रीएकलिंगजी प्रसादात् पीछे से महाजनों ने उसके वंशवालों के तिलक करना भाले का निशान
बन्द करदिया, तब महागणास्वरुपसिंह ने उसकं कुल [सही]
की अच्छी सेवा का स्मर्ण कर इस विषय की जांच स्वस्तिश्री उदयपुर सुभसुथाने महाराजाधिराज कराई और आज्ञा दी कि-महाजनों की जाति महाराणाजी श्रीसरुपसिंघ जी आदेशात् कावड्या में बावनी (सारी जाति का भोजन ) तथा चौके जेचन्द कुनणो वीरचन्दकस्य अभं थारा बडा वासा का भोजन व सिंहपूजा में पहिले के अनुसार भामो कावड्या ई राजम्हे साम ध्रमासु काम चाकरी तिलक भामाशाह के मुख्य वंशधर के ही किया ___* भामाशाह के घरानेमें चार पीढ़ियों तक दीवान पद रखा। जाय इस विषय का एक परवाना वि० सं० १९१२ राणा उदयसिंहका प्रधान भारमल, प्रतापसिंहका प्रधान मंत्री भामा- ज्येष्ठ सुदी १५ को जयचन्द कुनणा वीरचन्दकावड़िया शाह मौर राणा अमरके समय तीन वर्ष तक भामाशाह ही प्रधान के नाम करदिया, तब से भामाशाह के मुख्य वंशधरक पना रहा । वि. सं. १६५६ माघ सुदी ११ (इ. स. १६०० तिलक होने लगा।" ता. १६ जनवरी को उसका देहान्त हुमा । उसके पीछे महाराण "फिर महाजनों ने महाराणा की उक्त माझा का ने उसके पुत्र जीवाशाह को अपना प्रधान बनाया । उसका देहान्त हो पालन न किया, जिससे वर्तमान महाराणा साहब के जाने पर महाराणा कर्णसिंह ने उसके पुत्र प्रक्षयराज को मंत्री
! समय वि० सं०१९५२ कार्तिक सुदी १२ को मुकदमा नियत किया । इस प्रकार ४ पीलियमें स्वामि-भक भामाशाइके प्रधाम पद रहा (उ.पु.का... ४७५)।
xविसंसार दीपावली-प्रहकार्तिकरु.३.सं.११८२ वि.