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________________ Xx फाल्गन, वीरनि० सं० २४५६] मंवाडोद्धारक भामाशाह बेचा. कुल-गौरव बेचा साथ ही देश की स्वतंत्रता बेची; अधिकार में करने लगे।पं० झाबरमल्लजीशर्मा सम्पादक वही धन भामाशाहने देशोद्धारके लिये प्रतापको अर्पण दैनिक हिन्दुसंसार ने लिखा है:- "इन धावों में भी कर दिया । भामाशाहका यह अनोखा त्याग धनलोलुपी भामाशाह की वीरता के हाथ देखने का महाराणाको मनुष्यों की बलात् आँखें खोल कर उन्हें देशभक्ति का खूब अवसर मिला और उससे वे बड़े प्रसन्न हुए है। पाठ पढ़ाता है। महाराणाने भामाशाह के भाई ताराचंद x को मालवेमें भामाशाहका जन्म कावड्या संज्ञक सवाल भेज दिया था, उसे शहबाजखां ने जा घेरा । ताराचंद जैनकुल में हुआ था। इसके पिता का नाम भारमल उसके साथ वीरता से लड़ाई करता हुआ वसी के पास था। महाराणा साँगा ने भारमल को वि० सं० १६१० पहुँचा और वहाँ घायल होने के कारण बेहोश होकर ई. स० १५५३ में अलवरसे बुनाकर रणथम्भोरका गिर पड़ा। वसी काराव साईदास देवड़ा घायल ताराचंद किलंद र नियत किया था। पीछेसे जब हाड़ा मरज- को उठाकर अपने किले में लेगया और वहाँ उसकी मल बन्द वाला वहाँ का किलेदार नियत हुआ, उस अच्छी परिचर्या की । इसी प्रकार महाराणा अपने समय भी बहुत सा काम भारमलके ही हाथमें था। प्रबल पराक्रान्त वीरों की सहायता से बराबर आक्रमण वर महाराणा उदयसिंहके प्रधान पद पर प्रतिष्ठित था। करते रहे और संवत १६४३ तक उनका चित्तौड़ और भारमलके स्वर्गवास होने पर गणा प्रतापने भामाशाह माण्डलगढ़को छोड़कर समस्त मेवाड़पर फिरसे अधिको अपना मंत्री नियत किया था। हल्दीघाटी के युद्ध कार होगया । इस विजयमें महाराणा की साहसप्रधान के बाद जब भामाशाह मालवे की ओर चला गया था वीरता के साथ भामाशाह की उदार सहायता और नब उसकी अनुपस्थितिमें रामा सहाणी महाराणाके गजपत सैनिकों का आत्म-बलिदान ही मुख्य कारण प्रधानका कार्य करने लगा था । भामाशाह के आने पर था। आज भामाशाह नहीं है किन्तु उमकी उदारता गमासे प्रधानका कार्य-भार लेकर पुनः भामाशाह को का बखान सर्वत्र बड़े गौरव के साथ किया जाता है।" मोंप दिया गया उसी समय किसी कविका कहा गया प्रायः साढे तीनसौ वर्ष होने को आये, मामाप्राचीन पद्य इस प्रकार है: शाह वंशज आज भी भामाशाहकं नाम पर मम्मान भामो परधानो करे. गमो कीधो रद्द । श्री माझा जी ने भी लिखा है:---महाराणा भामाशाह की भामाशाह के दिये हुए रुपयों का महारा पाकर टोखातिर करता था और वह दिवरक शाही थाने ५२. हमना गणा प्रताप न फिर बिखरा हुइ शाक्त का बटार कर कानेके समय भी राजपूतंकि माथ था । (३० पु. रा. का.. रण-भेरी बजादी । जिसे सुनते ही शत्रुषों के हतय ५० जि० पृ. ४३१) । दहल गए कायरों के प्राण पखेरू उड़ गये, अकबर के - ताराचन्द गांवाद का झकिन भी रहा था और उस समय सादडी में रहता था। उसने सादहीके बाद एक बारादरी और एक होश-भवास जाते रहे । राणाजी और वीर भामाशाह बावड़ी बनवाई, उसके पास ही ताराक्त उसकी चार भारत, एक. अख-शस्त्र से सुसज्जित होकर जगह जगह भाक्रमण खवास, गायने एक गया और उस गये की भारत की करते हुए यवनों द्वारा विजित मेवाड़ को पुनः अपने मूर्तियां पत्थरों पर खुदी हुई हैं। * देखो, उदयपुर राज्य का इतिहास पहनी जिल्द पृष्ठ ४३१ (उ० पु. १. का .जि. ५.१.४.१।।
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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