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________________ फाल्गन, वीर निःसं०२४५६] महाकवि श्रीहरिचन्द्रका राजनीति-वर्णन । २३९ का मर्म-भेदन करवाती है । तदर्थ सिद्धावपरुपायकै ___ अतः राजा को समयानुकूल धर्म, अर्थ और काम ने सामसाम्राज्यतुलाधिरुह्यते ॥ ३५ ॥ का परस्पराविरोध रूपसे सेवन करना चाहिये । 'राजपुरुष धन देने वाले राजा से उतने प्रसन्न नपो गुरूणां विनयं प्रकाशयन् नहीं रहते जितने मिष्टभाषी से । अतः कार्यमिद्धि के भवेदिहामुत्र च मालास्पदम् । लिये साम-सदृश दूसरा उपाय नहीं है।'x म चाविनीतस्तु तनुनपादिव मुमन्त्रबीजोपचयः कुतोप्यसौ ज्वलनशेषं दहति ग्धमाश्रयम् ॥ ३४ ॥ परपयोगादिह भेदमीयिवान् । 'गुरुजन में विनययुक्त व्यवहार करने वाला राजा सुरक्षणीयो निपुणैः फलार्थिधिइस लोक तथा परलोक में सुखी रहता है और अवि- र्यतः स मिनो न पुनः प्ररोहति ॥३८॥ नीत-उद्धतस्वभाव-राजा अग्नि की तरह देश को 'फलार्थी राजा को गुप्तविचार-मंत्रणा-जो नष्ट करने के बाद अपनी राज्य सत्ताको भी खो बैठता कि कार्य सिद्धि का बीज है बड़े यत्न से गुप्त रखना है । अतः राजा को विनयी होना चाहिये।'x __ चाहिये-किसी भेदिये के द्वारा वह गुप्त विचार: प्रगट धनं ददानोऽपि न तेन तोषकृत न हो जाय । क्योंकि प्रगट हुई मंत्रणा भिन्न-कटेतथा यथा साम समीरयन्नपः। हुए बीज की नरह फलदायी नहीं होती ।* *जनाचार्य सोमदेव भी इसी बातको शब्दछल से दिखलाते प्राचार्य सोमदव भी सामका माहात्म्य बतलाते हुए, हुए कहते हैं लिखते हैं-- योऽनङ्गेनापि जीयते सः कथंपुष्टानामरातीन जयेत् ॥ सामसाध्यं यशसाध्यं न कुर्यात् ॥ नी.बा• ३५१ -नीवा०पृ०३६ । जा कार्य साम से-शान्ति से-सिव होता है उसके लिये अर्थात्-जा राजा मन:-कामदवस पराजित हो जाता है युद्ध न करना चाहिये ।' वह पुष्टांग-राष्ट्र, दुर्ग, कोष, सैन्य प्रादि राजसामग्रीसे बलवान . गुडादमिप्रेतलिचौकोनाम विभुजीत। नी०पा. शत्रुनों को कैंस जीत सकता है ! अनङ्ग से-अशरीर से हारने वाला पुष्टांगको-हट पुष्ट शरीर वाले को-जीत, यह मसभव है। विष भक्षण करेगा। ___ 'यदि गुड़ के खाने मे ही काम हो जाता है तो कौन खिमान x महाकवि भारवि भी, अविनीत राजा का वर्णन करते हुए, प्राचार्य कौटिल्य भी मन्त्र को गुप्त रखने की सम्मति देत लिखत हैं हुए कहते हैं-'मन्त्र भवन (वह स्थान जहां सलाह मशवरा किया मतिमाधिनयममाथिनः समुपेक्षेत समुमति हिषः। जाय ) सब मोर से सुरक्षित तथा गुप्त होना चाहिये । वहां से कोई सुजयः खलुतारगन्तरे विपदन्ता अविनीतसंपदः ॥ भी खबर बाहिर न जा सके । पक्षी तक स स्थानको न देख सके। ___ 'बुद्धिमान पुरुष अविनीत शत्र की उमति की भी उपेक्षाही किंवदंती है कि तोता, मैना, कुत्ता तथा अन्य जीों ने मन्त्र की। क्योंकि अपने अधिकारी वर्ग के साथ असभ्य व्यवहार करने (गुप्त क्विार) को दसर पर प्रगट कर दिया । यही कारण है कि वाला राजा कर्मचारियों में थोड़ा सा भी गाल माल होने पर सरलता संरक्षण तथा प्रबन्ध किये बिना मन्त्रभवन में प्रवेश न करे। मन्त्रसे जीता जा सकता है। सच है, दविनीत की सम्पत्ति भी अन्त में भेदीको मृत्यु दंड दिया जाय । दूत, अमात्य तथा स्वामी लोगों के विनिती लाती है। इशारेमे मन्बभेदका --- गन विचारके मालने का अनुमान करे ।...
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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