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फाल्गुन, वीरनि० सं० २४५६]
पुरानी बातों की खोज की गई है-एक तो यह कि इस तत्वार्थसूत्रके विधाता भेतृत्व-बातृत्वादीनां सम्यगपलब्धये बंदेनतोऽवाचक उमास्वातिको कोई दिगम्बर अथवा निन्हव न।
स्मि ॥ सूत्र ।। “सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि कहनं पाए, ऐसा चतुर पुरुषों को यत्न करना चाहिये। . दुसरं कुन्दकुन्द, इटाचार्य,पननंदी, और उमास्वाति ये माक्षमागेः।।"अत्र बहुवचनत्वात्समुदायार्थधानएक ही व्यक्ति के नाम कल्पित करके जो लोग इस कन्वेन त्रयाणां समुदायो मोक्षमार्गः।" अन्धका असली अथवा आगकर्ता कुंदकुन्दको बतलानं हैं वह ठीक नहीं, वह कुन्दकुन्द हमारे इस तन्वार्थसत्र- "इति तत्वार्थापिगमे मांसशास्त्र सिद्धान्त का प्रसिद्ध उमास्वाति से भिन्न ही व्यक्ति है।
मत्रवृत्तौ दशमोऽध्यायः ॥ १०॥ इम पर से मुझे यह खयाल हुआ था कि शायद । पट्टावलि-वर्णित कुंदकुंदके नामों को लेकर किसी दन्त- "मूलसंघबलात्कारगणे गच्छे गिर्ग शुभे । कथा के आधार पर ही यह कल्पना की गई है। और राजेंद्रमौलि-भट्टार्कः मागत्य-पट्टराडिमां ।। इम लिये मैं उसी वक्त से इस विषय की खोज में था व्यरचीत्कुंदकुंदार्यकनसत्रार्थदीपिकाम् ॥" कि दिगम्बर-साहित्य में किमी जगह पर कुन्दकुन्दा- जहाँ तक मैंने जैनसाहित्य का अन्वेषण किया है चार्यको इस तत्त्वार्थसूत्रका कर्ता लिखा है या कि नहीं।
। और तत्त्वार्थसूत्रकी बहुत सी टीकाओंको देखा है, यह खोज करने पर गत वर्ष बम्बई के ऐलक-पन्नालालमरस्वतीभवन मे 'अहन्प्रत्रवृत्ति' नामका एक ग्रंथ स्वाति'को न लिष्व कर 'कुन्दकुन्द' मुनिको लिखा है।
पहला ही प्रन्थ है जिसमें तत्त्वार्थसूत्रका कर्ता उमाउपलब्ध हुआ, जो कितत्वार्थसत्र की टीका है-'सि- यह ग्रंथ कब बना अथवा राजेंद्रमौलि का अस्तित्व द्धान्तमत्रवृत्ति' भी जिसका नाम है-और जिमे 'रा- ममय क्या है, इसका अभी तक कुछ ठीक पता नहीं जन्द्रमौलि नाम के भट्टारक ने रचा है । इसमें तत्वा- चल सका-इतना नी स्पष्ट है कि आप मूलसंघ-सरधमत्र को स्पष्टतया कुंदकुंदाचार्य की कृति लिखा है । स्वतीगच्छके भट्टारक तथा सागत्य पट्टके अधीश्वर थे। जैसा कि इसके निम्न वाक्यों में प्रकट है:
हाँ; उक्त श्वेताम्बर टिप्पणिकार रत्नसिंह के समयका ___ "अथ भत्सित्रवृत्तिमारभे। तत्रादो मं- विचार करते हुए, राजेंद्रमौलि भाका समयमंभवतः१४गलाद्यानि मंगलमध्यानि मंगलान्तानि च शा- वींशताब्दी या उससे कुछ पहले-पीछे जान पड़ता है। खाणि मध्यंते । तदस्माकं विघ्नघाताय अम्म
मालूम नहीं भट्टारकजीनं किस आधार पर इस तस्वार्थ
सूत्रको कुंदकुन्दाचार्य की कृति बतलाया है ! उपलब्ध दाचार्यों भगवान् कुन्दकुन्दमुनिः स्वेष्ट देवताग
प्राचीन साहित्य परमं तो इसका कुछ भी समर्थन नहीं णोत्कर्षकीर्तनपूर्वकं तत्स्वरूपवस्तुनिर्देशान्म- होता। हो सकता है कि पट्टावली(गर्वावलि)-चणित कंच शिष्टाचारविशिष्टेष्टनीववादं सिद्धान्नी- कुन्दकुन्दकं नामोंमें * गद्धपिच्छ का नाम देख कर कृत्य सद्गुणोपलब्धिफलोपयोग्यवन्दनानकूल- और यह मालूम करके कि उमाम्वनि का दूसरा नाम व्यापारगर्भ मंगलमाचरति
'गृद्धपिच्छाचार्य' है, मापने कुंदकुंद और उमास्वाति
दोनोंको एकही व्यक्ति समझ लिया हो और इसी लिये मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृतां । सातारं विश्वतस्यानां वंदे बदगुणजम्पये ।।
* ततोऽभवत्पंचसुनामधामा श्रीपद्मनंदी मुनिचक्रवर्ती
प्राचार्यकुन्दकुन्दाख्यो बक्रगीवो महामतिः । एतद्गुणोपसचितं समवसनावुपदिर्शन एलाबार्गे गडपिछः पयनन्दीति सन्यते ।। भगवनर्मादास्पं केवखिनं तहगुणानां नेतृत्व
-मन्तिममावती।