________________
• १८८
भनेकान्त
[वर्ष १, किरण ३ हूँ और उसके विशिष्ट संस्थापकोंको धन्यवाद देता हूँ मैं आपको धन्यवाद देता हूँ और आश्रम तथा जिन्होंने जैनग्रंथोंके संग्रह और जैनसाहित्यके अनुसं- पत्रको समुन्नत होता हुआ देखना चाहता हूँ। धानका कार्य अपने हाथमें लिया है। ____२५ वा अनितप्रसादजी एम.ए. एल.एल.बी.
'अनकान्त' उस प्रकारका पत्र है जिसकी पबलिक जन हाईकोर्ट, बीकानेरको अर्सेसे जरूरत थी। पहले दो अंक, उन लेखोंकी
" मुझको तो विदित होता है कि बरसों तक गुम समृद्धिता के कारण जो उनमें प्रकट हुए हैं, जैनधर्मके
रूपसे मौनस्थ रह कर अपनी विचारशक्ति और क्षेत्रमें इस पत्रकी स्थायी उपयोगिताका विश्वास दि
व्याख्यानबलको बढ़ा कर 'जैनहितैषी' ही 'अनेलाते हैं । जिन्होंने अब तक इसमें योग दिया है-लेखों
कान्त' का रूप धरके प्रार्दु त हुआ है । विचारसे सहायता की है-वे जैनशास्त्रों के सच्चे प्रेमी और शील जैन-तत्त्वोके वेत्तानों और जैन समाजके परिश्रमशील विद्वान् जान पड़ते हैं । सहिष्णुताका जो हितषियोंका कर्तव्य है कि 'अनकान्त' को अपनाआदर्श इस पत्रन अपने सामने रक्खा है वह सच्चा वें । जिस किसीको भी जैनधर्ममें भक्ति और जैन आदर्श है और उसका सारा श्रेय पत्रके विद्वान् जैनसमाजमें प्रेम है, उसको उचित है कि इस पत्र सम्पादकको प्राप्त है । वास्तवमें आपने इस पत्रको उन
का ग्राहक बने, इसको प्रायोपान्त पढे और पढ़ जैनों तथा अजैनोंके लिये उपयोगी बनानेमें कोई भी
कर उन विषयों पर विचार और मनन करे । इस बात उठा नहीं रक्खी,जो जैनधर्मका अध्ययन करनेमें
पत्रमें गढविषयोंको मथकर तत्त्वका सार निकालने
का प्रयत्न किया गया है। यह पत्र सम्यकदर्शनको __लेख नये कार्यक्रमों के सूचक हैं, जिनकी बाबत ।
दृढ करने, सम्यक्सानको बढ़ाने और सम्यक्चामुझे आशा है कि वे संसार भरके विशिष्ट जैनों द्वारा
रित्रको उन्नत करनेका एक अद्वितीय साधन है।" अंगीकार किये जावेंगे । जैनधर्मके अध्ययनक मार्ग में जो असंख्य कठिनाइयाँ उपस्थित हैं, उनमें से सबसे २६ प्रोफेसर हीरालालजी एम.ए.एलएल.री. अधिक कष्टकर संस्कृत तथा प्राकृत जैनप्रन्थोके गण- अमरावतीदोष-विवेचनात्मक संस्करणों का प्रभाव और मौजदा “ 'अनेकान्त' के अब तक दो अंक प्राप्त हुए। किसी भी भाषामें उनके प्रामाणिक अनुवादीका न अवलोकन कर बड़ा मानन्द हुा । 'जैनहितैषी' होना है। विशाल क्षेत्र पर बिखरी हुई सामग्री को के बन्द हो जानसे जैन-मासिक-पत्रोंमें समाज संग्रह करने वाली डिक्शनरियाँ (शब्दकोश) और जिस कमीका अनुभव कर रहा था उसकी आपने इन्सालोपीडियाएँ (विधा-कोरा) बुरी तरहसे उप- अनकान्त-द्वारा बड़ी ही अच्छी तरहसे पूर्ति करदी युक्त होती हैं और एक 'जैनकैटेलोगस कैटेलोगोरम'को इस हेतु आपको बधाई है । मुझे पूर्ण प्राशा है फौरन पल्स है। मुझे बाशा है कि समन्तभद्राम' कि समन्तभद्राश्रमके उदाच उद्देश्योंकी पूर्तिमें यह और 'भनेकान्त' भापके पटुमेतृत्व में इसके संकलन पत्र बहुत कार्यकरहोगा। मैं वीर-सेवक-संघका कार्य को अपने हायमें लेंगे।
सभासदी फार्म भर कर भेज रहा हूँ। इस संघके