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माघ, वीर नि०सं०२४५६] सबी खोज
१७७ इन्होंने भी भ्रमविध्वंसन और अनुकम्पाकी ढाल बना कोई वासता ही नहीं रहा था, यह भोले शोगोंकी ना रखी है । इस मतने दया और दानका बड़ा अपवाद समझी ही है। किया है।
जैनधर्मके परिरक्षकोंने जैसा पदार्थके सूदग रात __ जैन साधुमें २७ गुण X रहने चाहिये । उसका का विचार किया है उसे देख कर आजकलके फिलाआहार भी ४७ दोषोंसे रहित होना चाहिये । मठधारी सफर बड़े विस्मयमें पड़ जाते हैं, वे कहते हैं कि यतियोंको छोड़ करके बाकी सर्व जैनसाधुओमें कष्ट महावीर स्वामी आज कलकी साइंसके सबसे पहिले सहनेकी अधिक शक्ति पाई जाती है। * जन्मदाता थे। जैनधर्मकी समीक्षा करती बार कई __तेरह पन्थ तथा बाईस टोलाके साधुगण मुँह पर एक सुयोग्य प्रोफेसरोने ऐमा ही कहा है। महावीरस्वापट्टी बाँधते हैं, संवेगी साध हाथ ही में उसे रखते हैं। मीने गोमाल जैसे विपरीत वृत्तियोंको भी उपदेश देकर बाकी साधुओंमें इमका व्यवहार नहीं है, शास्त्रमें इन हिंसाका काफी निवारण किया। का नाम श्रमण है। अन्य सम्प्रदायोमें साधारण लोग भगवान बुद्धदेव और महावीरस्वामीके उपदेश उस इन साधुओंको ढूंढिया कह कर व्यवहार करते हैं, यती समयकी प्रचलित भाषाओंमें ही हुआ करते थे जिससे लोगोंको छोड़ करके। पहिले तो, अधिकांश इसका मबलोग सरलताके साथ समझ लिया करते थे। प्रचार यतियोंने ही किया था।
उस समयकी भाषाओंके व्याकरण हेमेन्द्र तथा संप्रदायोंकी कशमकशीके साथ कुछ लोग यह भी प्राकृतप्रकाशके देखनेमे पता चलता है कि वह भाषा समझने लग गये हैं कि हमारा सनातन धर्मके साथ अपभ्रंशकी सूरतमें पहुँची हुई संस्कृत माषा ही थी। कोई सम्बन्ध नहीं हैं।
उसीको धर्मभाषा बना लेनेके कारण श्रीबुद्ध भग___ कुछ एक संप्रदायोंने तो अपना रूप भी ऐसा ही वान और स्वामी महावीरके सिद्धान्त प्रचलित तो खूब बना लिया है कि मानों इनका सनातनके साथ कभी हुए पर भाषाके सुधारकी ओर ध्यान न पहुँचनेके
कारण संस्कृति की स्थिति और अधिक बिगड़ गयी। ___xगुणोंकी यह सव्या श्वताम्बर सम्प्रदायके अनुसार है। दि. जिससे वेदोंकी भापाका समझना नितान्त कठिन हो स० के अनुसार साधुके २८ मूल गुण हैं । इसी तरह माहारके दोष कर वैदिकोंकी चिन्ताका कारण बन गया । की संख्या भी इसमें ४६ मानी गई है। -सम्पादक
सच्ची खोज
[ले०-श्री पं० दरबारीलालजी न्यायतीथ ] ढूँढता है किसको नादान!
पवित्रता का ढांग छाइदे। भजन गान माला जप छोड़े
मिध्या-मदका शिखर तोड़ दे। अखिल विश्व से आनन मोड़े धूल भरीधरणी पै आजा, दूर हटाअभिमान।। ढूँढता।। किसे पूजता है रेमूरख! बन्द कियेदृग-कान।। ढूँढता॥ ढोंगी! ढोंग दूर कर जप का मूढ़ व्यर्थ पा रहा त्रास है।
शीघ्र हटा मद मिथ्या तप का आँख खोल ईश्वर न पास है। चिथड़े पहिन और चिथड़े वालों का करतभ्यान।।दूँढता। वह है वहाँ जहाँ कष्टोंमें डूबा दीन किसान ।। ढूँढता॥ यदि तेरे कपड़े फट जाएँ। लोह थोड़े जिस के गहने
या उन में धब्बे लग जाएँ।। धूल धूसरित कपड़े पहने
हानि नहीं,मिलकर रह उनमें,वहींबसे भगवान॥ढूँढता'? उनके साथ धूप-वर्षा में रहता है भगवान ॥ ढूढता ॥ - गीतांजलि के प्राचार पर।