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________________ माप, वीर नि०सं०२४५६] भारतीय दर्शनशास्त्र समयकी लहरने जो भीषण बुराइयाँ पैदा कर दी थीं कर नाना भांतिके सौरभसे आनन्दित कर देने वाले भगवान बुद्धने अपनी शक्तियाँ इन्हीं बुराइयोंके विरध अनेक प्रकारके द्रुम तथा नाना भांतिका विश्वरूप, में विशेषरूपसे लगायीं। सब स्वभावसे निवद्ध हैं । प्रत्येकके जुदे जुदे स्वभावसे ___ भगवान् बद्धदेवने किसी पर भी बलप्रयोग नहीं प्रत्येकका अनुभव होता है। किया, न अपने अनुयायियोंको बलप्रयोगकी शिक्षा चौथा उपदेश होता था कि जो भी कुछ स्वभाव दी। उनके यहाँ पशुबलका तो प्रयोग ही नहीं था। से प्रत्याय्य पदार्थ बताया है उसका असली तत्वशून्य उनके उपदेश इतने प्रभावशाली होते थे कि उनके ही है । शुन्यके सिवा और कुछ नहीं । ये विचार इस पिताजीने जिन व्यक्तियोंकोइनसे वैराग्यपरित्याग करानं विश्वमें भावनाचतुष्टयके नामसे प्रसिद्ध हुए । इन के लिये भेजा वे व्यक्ति स्वयं दीक्षित होगये । भगवान चारों भावनाओंको ही मोक्षमार्ग कह कर पुकारा बुद्धदेवके शिष्योंन उनके आदर्शकाजोसंग्रह किया है वह जाने लगा । इस भावनाने भोगैश्वर्य की प्राप्तिको बोद्र-दर्शन परम पुरुषार्थ मानना लोगोंसे छुड़वा दिया। के नामसे विश्वमें विख्यात हुआ। इनके विचारोंका भावनाचतुष्टयके साथ ही साथ इन्होंने यह भी बताया कि केवल प्रत्यक्षसे सब काम नहीं चल सकता विश्व पर इतनाप्रभाव पड़ा कि बहु-संख्यक लोगनास्तिकता को छोड़ कर इनके विचारोंके अनुयायी हो गये। अनुमानको भी मानना परमावश्यक है। बिना इसके माने आप यह भी नहीं कह सकते कि इस कारण हम ____ भगवान बुद्धदेवका सबसे पहला उपदेश तो यह अनुमानको प्रमाण नहीं मानते। है कि-हे अज्ञानोपहत लोगो! जिसे तुम सुख समझ जिस तुम सुख समझ जहाँ कहीं हेतु देनेकी जरूरत होती है वहाँ ही रहे हो यह साक्षात् दुःख रूप है । विषयोंके उपार्जन अनमानका स्वरूप पहुँच जाता है। बिना अनुमानके का परिश्रम वियोगकी चिन्ता किसी समय भी पीछा दसरेके अकथित दुःख सुखोंकी भी प्रतीति नहीं होती। नहीं छोड़ती । तुम उपार्जन करनेमें सहयोग देने वालों यह अनुमानकी ही महिमा है जो दूसरेके सुख से राग तथा विघ्न करने वाले खलोंसे द्वेष करते हुए दुःखोंका अनभव चहरा देखनसे ही हो जाता है। सदा सन्तप्त रहते हो । फिर भी आपको इन दुःख रूप भगवान बद्धदेव "सर्वदुःखम्" कह कर ही चुप विषयमें सुखकी बू आती है यह महान् दुःखका विषय नहीं रहे, किन्तु आपने दुःखरूप कहने के लिये पदार्थों है । भोगैश्वर्यकी सामग्रीमें सुख समझना भूल है। की भी गणना कर डाली थी कि दुःखको (१) रूप यह सब दुःख रूप है । इसलिये इनके उपाजेनकी (२) विज्ञान, (३) वेदना (४) संज्ञा (५) संस्कार, इन चिन्ता छोड़कर शान्तिके उपाय करो। पाँच भागोंमें बांटा जा सकता है । अपने २ परमाणु___ उन्होंने दूसरा उपदेश यह दिया है कि-दुनियाँकी पक्षोंसे बने हुए पृथिवी, वाय, तेज, जल, भौतिक जिन चीजोंको देखकर आप अपनको भूल रहे हैं ये विकारों के साथ विषय और इन्द्रियों के सहित, रूपस्कन्ध सब वस्तुएँ क्षण मात्र ही रहने वाली हैं। पहले क्षण कहलाते हैं। जो भी कुछ देखा था दूसरे क्षण वह उस रूपमें स्थिर प्रवृत्त-विज्ञान तथा आलय-विज्ञान को विज्ञानस्कनहीं रहा है,बदल चका । हम उसके परिवर्तनको नहीं न्ध कहते हैं । वस्तु के अनुभवादि करती बार जो "यह देख सके थे। अमुक वस्तु है" यह अवबोध होता है इसे प्रवृतितीसरा उपदेश था कि-राकापतिके करम्पर्शको विज्ञान कहते हैं, कारण?इसीबोधके पीछे उसमें जानने पाकर दूसरके करस्पशेको न सहनवाली स्तुही, सूय्ये वालेकी प्रवृत्ति होती है। किरणस्पर्शमात्रसे ही खिल जाने वाले कमल, मार्गके मैं जानता हूँ' यह जो अनुगम है इसे पालयपरिश्रम से परिवान्त पथिकको शीतल छायामें बिठा विज्ञान कह कर लोग व्यवहार करते हैं । पात्मज्ञान
SR No.538001
Book TitleAnekant 1930 Book 01 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1930
Total Pages660
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size83 MB
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